कोरोना वायरस की दवा बनाने का पतंजलि का दावा सवालों के घेरे में क्यों है?

वीडियो: बाबा रामदेव की पतंजलि आयुर्वेद ने कोविड-19 के इलाज में शत- प्रतिशत कारगर होने का दावा करते हुए दवा लॉन्च की है. हालांकि आयुष मंत्रालय ने उनके दावों की जांच-पड़ताल होने तक इस दवा का प्रचार बंद करने और बेचने से रोकने का आदेश दिया है.

पतंजलि की ‘कोरोना किट’ वैज्ञानिक तौर से प्रमाणित नहीं, न ही उचित विभागों से अनुमति मिली

पतंजलि आयुर्वेद की कोरोना दवाई किट की प्रमाणिकता पर गंभीर सवाल उठ रहे हैं. कंपनी ने कोरोना के शत-प्रतिशत उपचार का दावा करने वाली इस दवा संबंधी कुछ दस्तावेज़ आयुष मंत्रालय को सौंपे हैं, लेकिन विशेषज्ञों का कहना है कि ये साबित नहीं होता है कि इससे कोविड-19 ठीक हो जाएगा.

सरकार ने कोविड-19 की ‘दवा’ पर पतंजलि से मांगा ब्योरा, जांच पूरी होने तक प्रचार पर रोक

योग गुरु रामदेव ने मंगलवार को 'कोरोनिल' नाम की दवाई लॉन्च करते हुए इसके कोविड-19 के इलाज में शत-प्रतिशत कारगर होने का दावा किया था. इसके बाद आयुष मंत्रालय ने इसके विज्ञापन पर रोक लगाते हुए कंपनी से इसके क्लीनिकल ट्रायल और रिसर्च आदि का ब्योरा देने को कहा है.

होम्योपैथी के ज़रिये कोविड-19 से बचाव का दावा राहत नहीं चिंता की बात है

देश में कोविड-19 महामारी के शुरुआती दौर में आयुष मंत्रालय द्वारा जारी एक परामर्श में आर्सेनिकम एल्बम 30 C नाम की होम्योपैथिक दवा को दिन में तीन बार लेने की सलाह दी गई थी. लेकिन शोध बताते हैं कि ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता कि होम्योपैथी कोविड या किसी भी अन्य मर्ज़ के ख़िलाफ़ कोई सुरक्षा प्रदान करती है.

यूपी: कृषि संसाधन होते हुए भी क्यों पलायन को मजबूर हुईं वनटांगियों की कई पीढ़ियां

उत्तर प्रदेश के गोरखपुर-महराजगंज ज़िले को कभी बेशकीमती साखू-सागौन के जंगल लगाकर आबाद करने वाले वनटांगियों के पास पर्याप्त ज़मीन और कृषि संसाधन थे, लेकिन समय के साथ नई पीढ़ियां उचित आय और आजीविका के अभाव में शहर की राह पकड़ने को विवश हो गईं.

कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच क्वारंटीन सेंटर क्यों बंद कर रही है बिहार सरकार?

बीते सप्ताह बिहार सरकार ने 15 जून के बाद से सभी प्रखंड स्तरीय क्वारंटीन सेंटर्स को बंद करने का आदेश दिया है. दूसरे राज्यों से आ रहे कामगारों में कोविड संक्रमण के बढ़ते मामलों के बीच लिए गए सरकार के इस फ़ैसले पर सवाल उठ रहे हैं. कहा जा रहा है कि इन सेंटर्स की फंड संबंधी गड़बड़ियों के चलते यह निर्णय लिया गया है.

मोदी 2.0 के पहले साल में लोकतंत्र को ही क्वारंटीन कर दिया गया है

लोकतंत्र के प्रति मोदी सरकार का निरादर भाव काफी गहरा और व्यापक है और यह हर उस संस्था तक फैल चुका है, जिसका काम कार्यपालिका की शक्ति पर अंकुश लगाकर उसे नियंत्रण में रखना है.

‘मुंबई से गांव आने के लिए निकले, लेकिन उनका सफ़र रास्ते में ही ख़त्म हो गया’

बीते 26 मई को झांसी से गोरखपुर जा रही एक श्रमिक स्पेशल ट्रेन में सवार आज़मगढ़ के 45 वर्षीय प्रवासी श्रमिक रामभवन मुंबई से अपने परिवार सहित घर लौट रहे थे, जब रास्ते में अचानक उनकी तबियत ख़राब होने लगी. परिजनों का कहना है कि समय पर उचित मेडिकल सहायता न मिलने के कारण उन्होंने कानपुर सेंट्रल स्टेशन पर दम तोड़ दिया.

क्या बिहार में कोरोना से ज़्यादा मौतें क्वारंटीन सेंटर्स में हुई हैं?

बिहार सरकार के आंकड़ों के मुताबिक बुधवार शाम तक राज्य में कोरोना संक्रमण से 25 मौतें हुई हैं. सरकार द्वारा क्वारंटीन सेंटर्स में हुई मौतों के बारे में कोई आंकड़ा जारी नहीं किया गया है, लेकिन मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो अब तक 10 ज़िलों के क्वारंटीन सेंटर्स में 20 से अधिक जानें जा चुकी हैं.

बिहार लौटने वाले लोगों को अब क्वारंटीन नहीं करेगी सरकार, विपक्ष ने की आलोचना

15 जून के बाद बिहार में क्वारंटीन सेंटर्स को बंद किया जाएगा. साथ ही रेलवे स्टेशनों पर थर्मल स्क्रीनिंग भी बंद की जाएगी. राज्य सरकार का फ़ैसला ऐसे समय में आया है जब राज्य में कोरोना संक्रमण के 3,872 पॉजिटिव मामलों में से 2,743 लोग वे हैं जो तीन मई के बाद दूसरे राज्यों से लौटे हैं.

कोरोना काल में अनेकों मनुष्य मानवता से ही ‘मुक्त’ हुए जा रहे हैं…

अतीत में हमने कोरोना से ज़्यादा संहारक महामारियां झेली हैं, वो भी तब, जब हमारे पास आज जैसा ज्ञान-विज्ञान नहीं था लेकिन कभी इतने भयाक्रांत नहीं हुए कि अपने मनुष्य होने पर ही संदेह होने लगे और संक्रमण से बचाव का डर उस हद तक पहुंच जाए, जहां से घर लौटते प्रवासी मज़दूर अवांछनीय नज़र आने लग जाएं!

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अब तक कम से कम 80 लोगों की मौत: आरपीएफ

रेलवे सुरक्षा बल के आंकड़ों के मुताबिक श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में करीब 80 लोगों की मौत 9 मई से 27 मई के बीच हुई है. इनमें चार वर्ष से लेकर 85 वर्ष तक के यात्री शामिल थे.

स्पेशल ट्रेन चलने के बाद भी क्यों श्रमिकों की परेशानियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं?

श्रमिक स्पेशल ट्रेनों में अपने घरों को लौट रहे प्रवासी मज़दूरों को न सिर्फ़ खाने-पीने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है, बल्कि रेलवे द्वारा रूट बदलने के कारण कई दिनों की देरी से वे अपने गंतव्य तक पहुंच पा रहे हैं. इस दौरान भूख-प्यास और भीषण गर्मी के कारण मासूम बच्चों समेत कई लोग दम तोड़ चुके हैं.

लॉकडाउन के दौरान भूख शहरी ग़रीबों की सबसे बड़ी दुश्मन बनकर उभरी है

बीते दो महीनों में दिल्ली में हज़ारों लोगों के बीच खाना और राशन पहुंचाते हुए देखा कि हम भूख के अभूतपूर्व संकट से गुजर रहे हैं. सैकड़ों लोग बेबसी और अनिश्चितता के अंधेरे में जी रहे हैं, उन्हें नहीं पता कि अगला निवाला उन्हें कब और किसके रहमोकरम पर मिलने वाला है.

बिहार: नौकरी के सवाल पर जदयू विधायक ने कहा- जो बाबूजी तुमको पैदा किए, वो रोजगार दिए

मामला बिहार के शेखपुरा का है. शेखपुरा से जदयू विधायक रणधीर कुमार सोनी एक क्वारंटीन सेंटर का दौरा करने पहुंचे थे. वहां क्वारंटीन किए गए प्रवासी मजदूरों ने उनसे पूछा था कि बिहार और केंद्र में मौजूद एनडीए सरकारें रोजगार क्यों पैदा नहीं कर पा रही हैं?

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