भीमा-कोरेगांव: नवलखा की नज़रबंदी ख़त्म करने के ख़िलाफ़ शीर्ष अदालत पहुंची महाराष्ट्र सरकार

बीते एक अक्टूबर को दिल्ली हाईकोर्ट ने गौतम नवलखा की नज़रबंदी ख़त्म कर दी थी. भीमा-कोरेगांव हिंसा के संबंध में बीते 28 अगस्त को गौतम नवलखा समेत पांच कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार करने के बाद सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर नज़रबंद रखा गया है.

भीमा-कोरेगांव हिंसा: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कार्यकर्ता गौतम नवलखा की नज़रबंदी ख़त्म की

गौतम नवलखा ने कहा कि नज़रबंदी के दौरान, पाबंदियां लागू होने के बावजूद इस अवधि को अच्छी तरह से इस्तेमाल किया, इसलिए मुझे कोई शिकायत नहीं है.

भीमा-कोरेगांव मामला: सुप्रीम कोर्ट ने एसआईटी जांच की मांग को किया ख़ारिज

भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस बीते 29 अगस्त से नज़रबंद हैं.

भीमा-कोरेगांव हिंसा: न्यायालय में कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी पर सुनवाई पूरी, फैसला बाद में

भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस बीते 29 अगस्त से नज़रबंद हैं.

यदि साक्ष्य गढ़े गए तो विशेष जांच का आदेश दिया जा सकता है: कार्यकर्ता गिरफ़्तारी मामले पर सुप्रीम कोर्ट

भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस की नज़रबंदी की अवधि 19 सितंबर तक बढ़ी.

सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारियों का उद्देश्य राजनीतिक लाभ लेना है

भीमा कोरगांव हिंसा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की कथित साज़िश रचने के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के बाद से एल्गार परिषद चर्चा में है. एल्गार परिषद के माओवादी कनेक्शन समेत तमाम दूसरे आरोपों पर इसके आयोजक और बॉम्बे हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल का पक्ष.

भीमा-कोरेगांव हिंसा: सामाजिक कार्यकर्ताओं की नज़रबंदी की अवधि 17 सितंबर तक बढ़ी

भीमा-कोरेगांव में हुई हिंसा के संबंध में माओवादियों से कथित संबंधों को लेकर कवि वरवरा राव, अधिवक्ता सुधा भारद्वाज, सामाजिक कार्यकर्ता अरुण फरेरा, गौतम नवलखा और वर्णन गोंसाल्विस को नज़रबंद किया गया है.

क्या ‘मैं भी अर्बन नक्सल’ का नारा बुनियादी सवालों से दूर ले जा रहा है?

सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हालिया कार्रवाई के ख़िलाफ़ जो जनाक्रोश उभरा है उसमें ‘नक्सल’ शब्द और इसके पीछे के ठोस ऐतिहासिक संदर्भों को बार-बार सामने रखना ज़रूरी है ताकि यह शब्द महज़ एक आपराधिक प्रवृत्ति के तौर पर ही न देखा जाए बल्कि इसके पीछे मौजूद सरकारों की मंशा भी उजागर होती रहे.

भीमा-कोरेगांव हिंसा: 12 सितंबर तक नज़रबंद रहेंगे पांचों सामाजिक कार्यकर्ता

सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने महाराष्ट्र सरकार से कहा कि आप अपने पुलिस अधिकारियों को अधिक ज़िम्मेदार बनने के लिए कहें. मामला हमारे पास है और हम पुलिस अधिकारियों से यह नहीं सुनना चाहते कि उच्चतम न्यायालय गलत है.

मीडिया बोल, एपिसोड 65: नोटबंदी, नज़रबंदी और मीडिया

मीडिया बोल की 65वीं कड़ी में उर्मिलेश नोटबंदी पर रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट, सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी और मीडिया पर सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार शीतल प्रसाद सिंह और द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु से चर्चा कर रहे हैं.

कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी का मामला विचाराधीन, तो पुलिस ने कैसे की प्रेस कॉन्फ्रेंस: हाईकोर्ट

बॉम्बे हाईकोर्ट पूछा कि पुलिस ऐसे दस्तावेज़ों को इस तरह पढ़कर कैसे सुना सकती है जिनका इस्तेमाल मामले में साक्ष्य के तौर पर किया जा सकता है.

मैं भी ‘अर्बन नक्सल’ हूं!

दलितों और पिछड़ों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर, उन पर ‘माओवादी’ का लेबल लगाकर सरकार दलित महत्वकांक्षाओं का अपमान करती है, साथ ही दूसरी ओर दलित मुद्दों के प्रति संवेदनशील दिखने का स्वांग भी रचती है.

‘प्रतिरोध की हर आवाज़ का अपराधीकरण कर रही है सरकार’

वीडियो: भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में देश के विभिन्न हिस्सों से हुई सामाजिक कार्यकताओं की गिरफ्तारी पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ वरदराजन से मीनाक्षी तिवारी की बातचीत.

संपादकीय: सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी देश में लोकतंत्र की चिंताजनक स्थिति का संकेत है

जैसे-जैसे 2019 आम चुनाव क़रीब आ रहे हैं, एक नई कहानी को बढ़ावा दिया जा रहा है- कि दुश्मन देश के अंदर ही हैं और ये न केवल सरकार और उसकी नीतियों, बल्कि देश के ही ख़िलाफ़ हैं.

जन गण मन की बात, एपिसोड 296: नोटबंदी पर आरबीआई की रिपोर्ट और सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी

जन गण मन की बात की 296वीं कड़ी में विनोद दुआ नोटबंदी पर आरबीआई की ​हालिया रिपोर्ट और भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामले में देश के विभिन्न हिस्सों से गिरफ़्तार किए गए सामाजिक कार्यकर्ताओं पर चर्चा कर रहे हैं.

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