हीरेन मुखर्जी ने कहा था कि जवाहरलाल नेहरू सफल राजनेता नहीं हो सके क्योंकि राजनीति में सफलता के लिए जो असभ्यता चाहिए, नेहरू उसके सर्वथा अयोग्य थे.
'ग़रीबी हटाओ' के नारे के साथ उस साल इंदिरा की जीत ने कांग्रेस को नई ऊर्जा से भर दिया था. 1971 एक ऐतिहासिक बिंदु था क्योंकि इंदिरा गांधी ने लक्ष्य और दिशा का एक बोध जगाकर सरकार की संस्था में नागरिकों के विश्वास की बहाली का काम किया.
भगत सिंह की पवित्र भूमि, उनका स्वर्ग भारत आज उन्हीं की परिभाषा के मुताबिक नर्क बना दिया गया है. उसे नर्क बना देने वाली ताकतें ही भारत की मालिक बन बैठी हैं. भगत के धर्म को मानने वाले क़ैद में हैं, उन्हीं की तरह. और भगत सिंह की तरह ही उनसे उनकी हंसी छीनी नहीं जा सकी है.
नरेंद्र मोदी को देश की सत्ता संभाले साढ़े छह साल हो चुके हैं और इस दौरान वे लगभग इतनी ही बार रो भी चुके हैं. हालांकि यह उनकी राजनीति ही तय करती है कि उनके आंसुओं को कब बहना है और कब सूख जाना है.
भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा के ख़िलाफ़ धार्मिक भावनाओं को आहत करने और समुदायों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देने के आरोपों के तहत एफआईआर दर्ज की गई है.
'गांधी के रामराज्य के बारे में तुम क्या जानते हो? गांधी के राम के बारे में ही तुम क्या जानते हो? वैसे तुलसी के राम के बारे में ही तुम क्या जानते हो? सावरकर हो या गोलवलकर, उनके हिंदू राष्ट्र का हमारे रामराज्य से क्या लेना-देना?'
जयंती विशेष: जिस दौर में गांधी को ‘चतुर बनिया’ की उपाधि से नवाज़ा जाए, उस दौर में ये लाज़िम हो जाता है कि उनकी कही बातों को फिर समझने की कोशिश की जाए और उससे जो हासिल हो, वो सबके साथ बांटा जाए.
आज हमारे सामने ऐसे नेता हैं जो केवल तीन काम करते हैं: वे भाषण देते हैं, उसके बाद भाषण देते हैं और फिर भाषण देते हैं. सार्वजनिक राजनीति से करनी और कथनी में केवल कथनी बची है. गांधी उस कथनी को करनी में तब्दील करने के लिए ज़रूरी हैं.
आज राष्ट्र को वास्तविक पिता की ज़रूरत है, मेरे जैसे सिर्फ नाम के पिता से काम नहीं चलने वाला है. आज बड़े-बड़े फ़ैसले हो रहे हैं. छप्पन इंच की छाती दिखानी पड़ रही है. ऐसा पिता जो पब्लिक को कभी थप्पड़ दिखाए तो कभी लॉलीपॉप, पर अपने तय किए रास्ते पर ही राष्ट्र को ठेलता जाए. मैं ऐसे राष्ट्रपिता की ज़रूरत कैसे पूरी कर सकता हूं?
वीडियो: भगत सिंह की जयंती पर उनके विचारों पर चर्चा कर रहे हैं प्रोफेसर अपूर्वानंद.
ऐसा लगता है कि भगत सिंह के प्रति श्रद्धा वास्तव में गांधी-नेहरू से घृणा का दूसरा नाम है. जिनके वैचारिक पूर्वज ख़ुद को बचाते हुए अपने अनुयाइयों को भगत सिंह से दूर रहने की सलाह देते हुए दिन गुज़ारते रहे, उन्होंने अपनी कायर हिंसा को उचित ठहराने के लिए आज भगत सिंह को एक ढाल बना लिया है.
भारतीय संविधान में स्पष्ट तौर पर भारत को राज्यों का संघ कहा गया है यानी एक संघ के रूप में सामने आने से पहले भी ये राज्य अस्तित्व में थे. इनमें से एक जम्मू कश्मीर का यह दर्जा ख़त्म करते हुए मोदी सरकार ने संघ की अवधारणा को ही चुनौती दी है.
पाकिस्तान के विदेश मंत्री शाह महमूद कुरैशी ने कहा कि सभी क़ानूनी पहलुओं पर विचार किए जाने के बाद सैद्धांतिक रूप से कश्मीर मुद्दे को अंतर्राष्ट्रीय न्याय अदालत में ले जाने का फैसला किया गया है जहां मानवाधिकार उल्लंघन को केंद्र में रखकर उठाया जाएगा.
कश्मीर मुद्दे पर हो रही प्रोपगेंडा पत्रकारिता पर द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का नज़रिया.
एक तरफ कहा जाता है कि कश्मीर हमारा अभिन्न अंग है, उस लिहाज़ से कश्मीरी भी अभिन्न होने चाहिए थे. तो फिर इस बदलाव की प्रक्रिया में उनसे बात क्यों नहीं की गई? उनकी राय क्यों नहीं पूछी गई?