लोकसभा चुनाव 2019 से जुड़ीं सभी महत्वपूर्ण ख़बरें.
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लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह, सोनिया गांधी, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, स्मृति ईरानी सहित कई दिग्गजों की किस्मत दांव पर लगी है.
पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस ने पलटवार करते हुए मोदी पर ख़रीद-फ़रोख़्त करने का आरोप लगाया और कहा कि वह चुनाव आयोग से इसकी शिकायत करेगी.
विपक्षी पार्टियों के नेताओं के एक समूह ने इस मामले में मुख्य चुनाव आयोग सुनील अरोड़ा से मुलाकात की और मांग की है कि बैलेट पेपर से या तो भाजपा का नाम हटाया जाए, या फिर अन्य पार्टियों का नाम भी लिखा जाए.
चुनाव आयोग का संवैधानिक दायित्व केवल आदर्श आचार संहिता ही नहीं बल्कि जनप्रतिनिधि क़ानून को भी बरक़रार रखना है, जिसके तहत प्रधानमंत्री सहित विभिन्न भाजपा नेताओं के नफ़रत भरे भाषण अपराध की श्रेणी में आते हैं.
तृणमूल कांग्रेस ने भाजपा के थीम सॉन्ग को लेकर चुनाव आयोग से शिकायत की थी, जिसके बाद चुनाव आयोग ने भाजपा सांसद बाबुल सुप्रियो को कारण बताओ नोटिस जारी किया था.
राष्ट्रवाद और सैन्य बलों को चुनाव प्रचार में घसीटकर उनका राजनीतिक फायदा उठाने की कोशिश मतदाताओं को आकर्षित करने की गारंटी नहीं है और इसका उलटा असर भी हो सकता है. चुनाव की तैयारी कर रहीं पार्टियों की रणनीति देखते हुए यह साफ़ हो रहा है कि कोई भी अपनी निर्णायक जीत को लेकर आश्वस्त नहीं है.
पश्चिम बंगाल के भाजपा अध्यक्ष दिलीप घोष ने कहा कि राज्य में पार्टी के पास लोकसभा चुनाव में लड़ने और जीतने लायक उम्मीदवारों की कमी है. भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने राज्य की 42 लोकसभा सीटों में से 23 जीतने का लक्ष्य तय किया है.
तृणमूल कांग्रेस ने इस बार लोकसभा चुनाव में 17 सीटों पर महिलाओं को मैदान में उतारा है. इसके साथ ही 10 मौजूदा सांसदों को टिकट नहीं दिया गया है.
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि लोगों को सच से वंचित रखा जा रहा है क्योंकि राष्ट्रीय मीडिया का एक तबका नरेंद्र मोदी को सपोर्ट कर रहा है. यह शर्म की बात है कि मोदी देश के प्रधानमंत्री हैं.
पश्चिम बंगाल में सारधा चिटफंड घोटाले को लेकर बीते दिनों पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार और केंद्र की मोदी सरकार में तीन दिन चले सियासी ड्रामे के बीच उन लोगों का एक बार भी ज़िक्र नहीं आया जिनकी ज़िंदगियां इसकी वजह से बर्बाद हो गईं.
एक नागरिक और कार्यकर्ता के रूप में सतर्क रहना चाहिए कि राजनीति चंद परिवारों के हाथ में न रह जाए. लेकिन इस सवाल पर बहस करने योग्य न तो अमित शाह हैं, न नरेंद्र मोदी और न राहुल गांधी. सिर्फ जनता इसकी योग्यता रखती है. जब तक ये नेता कोई साफ़ लाइन नहीं लेते हैं, परिवारवाद के नाम पर इनकी बकवास न सुनें.
मोदी सरकार का पिछले साढ़े चार साल का अनुभव यह बताने के लिए काफ़ी है कि एक नेता या एक वर्चस्वशाली पार्टी के इर्द-गिर्द बनी सरकारें घमंडी और अक्खड़ जैसा व्यवहार करने लगती हैं और आलोचनाओं को लेकर कठोर हो जाती हैं.