आज जिन लोगों को अरुण जेटली ‘संस्थानिक बाधा’ बता रहे हैं, उन्हें यूपीए-2 के शासनकाल के समय भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने पर भाजपा ने सिर-आंखों पर बिठाया था.
जस्टिस रंजन गोगोई और जस्टिस मदन बी लोकुर ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा को लिखा पत्र.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा कि इस देश में कोई भी संस्थान सुरक्षित नहीं है, भले ही वो न्यायपालिका ही क्यों न हो. भारत की छवि अपराध और बलात्कार वाले देश की बन गई है.
जज लोया की मौत की एसआईटी जांच की मांग वाली याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट द्वारा खारिज किए जाने के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी शुरू हो गई है.
मुख्य न्यायाधीश के मुक़दमों के आवंटन के अधिकार को चुनौती देने वाली इस जनहित याचिका को पूर्व क़ानून मंत्री शांति भूषण ने दायर किया है.
उच्चतम न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायमूर्ति चेलमेश्वर ने मामलों के आवंटन संबंधी पूर्व क़ानून मंत्री की जनहित याचिका को सूचीबद्ध करने से इनकार कर दिया.
सीजेआई दीपक मिश्रा, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने मामलों के आवंटन के संबंध में दायर याचिका को ख़ारिज करते हुए कहा कि सीजेआई कार्यालय के पास विशेष अधिकार हैं.
पर्यावरण और जनता के लाभ लिए जमा क़रीब एक लाख करोड़ रुपये की राशि किसी और मद में ख़र्च होने ने नाराज़ न्यायालय ने कहा कि यह धन जनता की भलाई के लिए है, सरकार की भलाई के लिए नहीं.
केंद्र सरकार पर न्यायिक नियुक्तियों को प्रभावित करने के आरोप लग रहे हैं. बीते कुछ सालों में हुई नियुक्तियों पर गौर करें तो ऐसे कई गंभीर सवाल खड़े होते हैं जो भविष्य की एक ख़तरनाक तस्वीर बनाते हैं.
विधेयक के मुताबिक किसी लोकसेवक के ख़िलाफ़ मुक़दमे के लिए सरकार की मंज़ूरी आवश्यक बताई गई थी. साथ ही मीडिया द्वारा सरकार के जांच आदेश से पहले किसी का नाम छापने पर सज़ा का प्रावधान था.
याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता इंदिरा जयसिंह ने कहा कि महाराष्ट्र सरकार द्वारा पेश जांच रिपोर्ट में कई विसंगतियां हैं, जिससे जज लोया की मौत पर संदेह किया जा सकता है.
पिछले महीने न्यायालय के चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में संवेदनशील जनहित याचिकाओं और महत्वपूर्ण मुक़दमे वरिष्ठता के मामले में जूनियर न्यायाधीशों को आवंटित किए जाने पर सवाल उठाए थे.
ऐसा नहीं है कि न्यायपालिका में जारी गड़बड़ियों से आम आदमी बेख़बर हो, लेकिन न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार आमतौर पर अवमानना के डर से कभी भी सार्वजनिक बहस का मुद्दा नहीं बन सका.
न्यायमूर्ति जे. चेलमेश्वर सुप्रीम कोर्ट के उन चार वरिष्ठतम न्यायाधीशों में से एक हैं जिन्होंने हाल ही में मामलों के आवंटन समेत कई समस्याओं को उठाते हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी.
पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता अरुण शौरी ने सुप्रीम कोर्ट के हालिया घटनाक्रम, न्यायपालिका की स्वतंत्रता और मीडिया की दशा पर द वायर से बातचीत की. यह साक्षात्कार ईमेल के ज़रिये किया गया.