पुण्यतिथि

‘जितने हरामखोर थे कुर्बो-जवार में, परधान बन के आ गए अगली कतार में’

हिंदी कविता में जब कुछ बड़े कवियों की धूम मची थी, अदम गोंडवी अपने श्रोताओं और पाठकों को गांवों की उन तंग गलियों में ले गए जहां जीवन उत्पीड़न का शिकार हो रहा था.

‘साहिर की शख़्सियत और उनकी शायरी एक-दूसरे में हूबहू उतर गए थे’

पुण्यतिथि विशेष: यह भी एक क़िस्म की विडंबना ही है कि जिस साहिर के कलाम गुनगुनाकर अनगिनत इश्क़ परवान चढ़े, उसकी अपनी ज़िंदगी में कोई इश्क़ मुकम्मल न हुआ.

आज अगर लोहिया होते तो गैर-भाजपावाद का आह्वान करते

लोहिया ने नेहरू जैसे प्रधानमंत्री को यह कहकर निरुत्तर कर दिया था कि आम आदमी तीन आने रोज़ पर गुज़र करता है, जबकि प्रधानमंत्री पर रोज़ाना 25 हज़ार रुपये ख़र्च होते हैं.

कहते हैं उनको जयप्रकाश जो नहीं मरण से डरता है…

आपातकाल की चर्चा तब तक पूरी नहीं होती जब तक स्वाधीनता संग्राम सेनानी और प्रसिद्ध समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की चर्चा न की जाए.