हिंदुस्तान में जो व्यक्ति जितना ज़्यादा ताकतवर और प्रसिद्ध है, उसके सत्ता के पक्ष में बयान देने की संभावना उतनी ज़्यादा रहती है. चाहे वे फिल्म स्टार हों या बिज़नेसमैन, सभी ने सत्तारूढ़ दल के साथ खड़े होने की अपनी वजहें तलाश ली हैं.
साल 1913 में आज ही के दिन (03 मई) भारत की पहली फीचर फिल्म राजा हरिश्चंद्र प्रदर्शित की गई थी. इस मूक फिल्म को दादा साहेब फाल्के ने बनाया था.
विनोद खन्ना के हिस्से में ज़्यादातर इल्ज़ाम ही आए पर जो ज़िंदगी उन्होंने गुज़ारी, फिल्मी दुनिया की चकाचौंध के बीच उसे चुन पाना बेहद मुश्किल होता है.
अपने ज़माने के दिग्गज फिल्म अभिनेता और सांसद विनोद खन्ना का बृहस्पतिवार सुबह मुंबई के एक अस्पताल में कैंसर से निधन हो गया. वह 70 साल के थे.
बीते ज़माने की मशहूर अभिनेत्री आशा पारेख ने कहा है कि केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी का यह बयान कि पद्मभूषण पुरस्कार पाने के लिए मैं उनके पीछे पड़ी थी, काफी दुखद था.
संघ ब्रिगेड द्वारा उनकी विचारधारा के ख़िलाफ़ उठने वाली हर आवाज़ को दबाने के लिए हरसंभव कोशिश की जा रही है.
सेंसर बोर्ड ने अलंकृता श्रीवास्तव की फिल्म 'लिपस्टिक अंडर माय बुरख़ा' को सर्टिफिकेट देने से इनकार कर दिया है.
आज ये फिल्मों और किताबों के बारे में है, कल ये पत्रकारिता या किसी और बारे में होगा. आज़ादी में हो रही इस दख़लअंदाज़ी के ख़िलाफ़ खड़ा होना अब ज़रूरी हो गया है.
बदलते दौर के भौतिक चमक-दमक को तो भोजपुरी सिनेमा खूब दिखाता है, पर सामाजिक -सांस्कृतिक मूल्यों की जड़ता से नहीं भिड़ता. वह एक बड़े विभ्रम का शिकार है.
मैं इस सिस्टम से नाराज हूं. मुझे इस पर गुस्सा है क्योंकि ये सिर्फ दिखावा करता है कि इसे हमारी फिक्र है पर असलियत इसके उलट है.