एनएसएसओ की रिपोर्ट के अनुसार 1993-94 के बाद 2017-18 देश में पुरुष कामगारों की संख्या में गिरावट आई है, साथ ही 2011-12 की तुलना में रोज़गार अवसर बहुत कम हुए हैं. यह एनएसएसओ की वही रिपोर्ट है, जिसे केंद्र सरकार ने हाल ही में जारी होने से रोका था.
रेलवे के आंकड़ों के मुताबिक खलासी और हेल्पर के पदों के लिए आवेदन करने वाले 4,19,137 उम्मीदवारों के पास बीटेक और 40,751 उम्मीदवारों के पास इंजीनियरिंग में मास्टर्स डिग्री है.
देश-विदेश की शीर्ष वित्तीय संस्थाओं से जुड़े अर्थशास्त्रियों ने कहा कि वित्तीय आंकड़े नीतियां बनाने और जनता की भलाई के लिए महत्वपूर्ण है. इसलिए ज़रूरी है कि इन आंकड़ों को इकठ्ठा और प्रसारित करने वाली संस्थाएं राजनीतिक हस्तक्षेप का शिकार न हों और इनकी विश्वसनीयता बनी रहे.
आगामी लोकसभा चुनावों से पहले रोज़गार को लेकर यह तीसरी रिपोर्ट है जिसे मोदी सरकार ने दबा दिया है. इससे पहले उसने बेरोज़गारी पर एनएसएसओ की रिपोर्ट और श्रम ब्यूरो की नौकरियों और बेरोज़गारी से जुड़ी छठवीं सालाना रिपोर्ट को भी जारी होने से रोक दिया था.
भाजपा ने आम चुनाव में राष्ट्रवाद और पाकिस्तान से ख़तरे को मुद्दा बनाने का मंच सजा दिया है. वो चाहती है कि विपक्ष उनके उग्रता के जाल में फंसे, क्योंकि विपक्षी दल उसकी उग्रता को मात नहीं दे सकते. विपक्ष को यह समझना होगा कि जनता में रोजगार, कृषि संकट, दलित-आदिवासी और अल्पसंख्यकों पर बढ़ते अत्याचार जैसे मुद्दों को लेकर काफी बेचैनी है और वे इनका हल चाहते हैं.
भारतीय अर्थव्यवस्था निगरानी केंद्र की मंगलवार को जारी रिपोर्ट के अनुसार, इस साल फरवरी में बेरोज़गारी दर 7.2 फीसदी हो गई जो कि सितंबर 2016 के बाद सबसे अधिक है. पिछले साल फरवरी में यह आंकड़ा 5.9 फीसदी था.
नीति आयोग ने गुरुवार को श्रम मंत्रालय से सर्वेक्षण की प्रक्रिया शुरू करने और 27 फरवरी को इसके निष्कर्षों को पेश करने को कहा ताकि इसे मार्च के पहले सप्ताह में साझा किया जा सके.
नरेंद्र मोदी सरकार की पिछली कई योजनाओं की तरह यह नई योजना भी दिखाती है कि लुटियन दिल्ली असली भारत की सच्चाई से कितनी दूर है.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि देश में रोज़गार का सृजन होने के बजाय रोज़गार के नुकसान वाली स्थिति बन गई है. ग्रामीण क्षेत्र के लोगों के क़र्ज़ बढ़ रहे हैं और शहरी अव्यवस्था से भविष्य की बेहतर आकांक्षा रखने वाले युवाओं में असंतोष पैदा हो रहा है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद के अध्यक्ष बिबेक देबरॉय ने कहा कि वास्तविक मुद्दा रोज़गार की संख्या का नहीं बल्कि रोज़गारों की गुणवत्ता और वेतन दरों का है.
वीडियो: राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय (एनएसएसओ) की रिपोर्ट में सामने आया है कि देश में बीते 45 सालों में 2017-18 में सबसे अधिक बेरोज़गारी रही है. रोज़गार की स्थिति पर द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु का नज़रिया.
राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण कार्यालय ने ये आंकड़े जुलाई 2017 से जून 2018 के बीच जुटाए हैं. नवंबर 2016 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा नोटबंदी की घोषणा के बाद देश में रोजगार की स्थिति पर आया यह पहला सर्वेक्षण है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी आयोग से इस्तीफ़ा देते हुए कार्यकारी अध्यक्ष पीसी मोहनन ने कहा कि सरकार आयोग के काम को गंभीरता से नहीं ले रही है और सदस्यों की सलाह को नज़रअंदाज़ कर रही है.
क्रिसिल की यह रिपोर्ट ऐसे समय में आई है जब सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी ने सिर्फ 2018 में ही 1.10 करोड़ नौकरियां समाप्त होने की बात कही है.
एक कार्यक्रम में केंद्रीय मंत्री ने कहा, 'आंकड़े रोज़गार में बढ़ोतरी को दिखानें में असमर्थ हैं. युवाओं को भविष्य के लिए कौशल विकसित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और नौकरी चाहने वालों के बजाय नौकरी निर्माता बनने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए.'