सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस कुरियन जोसेफ ने कहा कि भारत के संविधान की व्याख्या पर क़ानून के मूलभूत सवालों के मद्देनज़र और इसके मौलिक अधिकारों पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों को ध्यान में रखते हुए इन विषयों को संविधान पीठ द्वारा सुना जाना चाहिए.
देश भर के क़रीब डेढ़ हज़ार वकीलों ने अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रशांत भूषण को दोषी ठहराए जाने पर कहा कि अवमानना का डर दिखाकर यदि वकीलों को चुप कराया जाता है, तो इससे कोर्ट की ताकत और स्वतंत्रता प्रभावित होगी.
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के ख़िलाफ़ चल रहे साल 2009 के अवमानना मामले के संबंध में सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सवाल तय किए हैं. भूषण की ओर से पेश हुए वकील ने कहा है कि जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने से अवमानना का मामला नहीं बनता है.
प्रशांत भूषण ने मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे और सुप्रीम कोर्ट को लेकर दो ट्वीट किए थे, जिसे लेकर अवमानना कार्यवाही चल रही थी. सुप्रीम कोर्ट 20 अगस्त को सज़ा पर सुनवाई करेगा और वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण की दलीलों को सुनेगा.
पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और कार्यकर्ता एवं वकील प्रशांत भूषण ने याचिका दायर कर अदालत की अवमानना क़ानून, 1971 को चुनौती दी थी और कहा था कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और समानता के अधिकार का उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के साल 2009 के अवमानना मामले की वह विस्तृत सुनवाई करेगा. प्रशांत भूषण पर एक अन्य अवमानना मामला चल रहा है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि उनके दो ट्वीट के कारण न्यायपालिका का अपमान हुआ है.
सुप्रीम कोर्ट प्रशासन ने पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी, वरिष्ठ पत्रकार एन. राम और कार्यकर्ता एवं वकील प्रशांत भूषण की तरफ से दायर याचिका के संबंध में अधिकारियों से स्पष्टीकरण मांगा है कि इस मामले को जस्टिस अरुण मिश्रा की पीठ के सामने क्यों सूचीबद्ध नहीं किया गया?
प्रशांत भूषण के ट्वीट्स पर अदालत की अवमानना के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने अपना फ़ैसला सुरक्षित रख लिया है. भूषण ने अदालत में अपने बचाव में कहा कि उनके ट्वीट न्यायाधीशों के ख़िलाफ़ उनके व्यक्तिगत स्तर पर आचरण को लेकर थे और इससे न्याय प्रशासन में बाधा उत्पन्न नहीं होती है.
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण द्वारा 2009 में तहलका मैगज़ीन को दिए साक्षात्कार में सुप्रीम कोर्ट के जजों के ख़िलाफ़ ग़लत टिप्पणी करने का आरोप है, जिसके लिए शीर्ष अदालत ने उन्हें और पत्रिका के पूर्व संपादक तरुण तेजपाल को माफ़ीनामा जारी करने को कहा था
शीर्ष अदालत ने वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण के ट्वीट्स को लेकर उन्हें अवमानना का नोटिस जारी किया था. भूषण ने इसके जवाब में दिए हलफनामे में कहा कि सीजेआई को सुप्रीम कोर्ट मान लेना और कोर्ट को सीजेआई मान लेना भारत के सर्वोच्च न्यायालय की संस्था को कमज़ोर करना है.
अदालत की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 2 (सी) (i) को इस आधार पर चुनौती दी गई है कि यह अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होने के साथ अस्पष्ट, व्यक्तिपरक और स्पष्ट तौर पर मनमाना है.
पूर्व जजों, नौकरशाहों, राजनयिकों, नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि प्रशांत भूषण लगातार समाज के कमज़ोर वर्गो के अधिकारों के लिए संघर्ष करते आ रहे हैं. उन्होंने अपना जीवन उन सभी को क़ानूनी मदद उपलब्ध कराने में लगा दिया, जो सहजता से न्याय पाने में सक्षम नहीं थे.
साल 2009 में प्रशांत भूषण ने तहलका पत्रिका को दिए एक इंटरव्यू में कथित तौर पर सुप्रीम कोर्ट के जजों के ख़िलाफ़ ग़लत टिप्पणी की थी. एक कथित अपमानजनक ट्वीट करने के लिए भूषण के ख़िलाफ़ शीर्ष अदालत में ही एक और अवमानना कार्रवाई चल रही है.
जस्टिस अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने बुधवार को प्रशांत भूषण को नोटिस जारी करते हुए उनसे इस संबंध में विस्तृत जवाब देने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई पांच अगस्त को होगी. भूषण के ख़िलाफ़ साल 2009 से लंबित पड़े अवमानना के एक अन्य मामले की सुनवाई के लिए भी 24 जुलाई की तारीख़ तय की गई है.
वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण, पूर्व आईएएस अधिकारी कन्नन गोपीनाथन और नेशनल हेराल्ड की पत्रकार एश्लिन मैथ्यू के खिलाफ यह एफआईआर गुजरात के राजकोट में दर्ज की गई है.