म्यामांर: आम चुनाव के आधिकारिक परिणाम में आंग सान सू की की पार्टी को पूर्ण बहुमत

म्यांमार के संघीय चुनाव आयोग के अनुसार, आंग सान सू की की पार्टी ‘नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी’ ने संसद के दोनों सदनों में 346 सीटें जीतकर दूसरी बार सत्ता पा ली है. सेना द्वारा समर्थित मुख्य विपक्षी दल यूएसडीपी ने चुनाव में धोखाधड़ी का आरोप लगाया है, लेकिन चुनाव आयोग ने उसके आरोप और मतदान फिर से कराने की मांग को ख़ारिज कर दिया है.

मीडिया बोल, एपिसोड 89: सबसे लंबे चुनाव के फंडे

मीडिया बोल की 89वीं कड़ी में उर्मिलेश लोकसभा चुनाव की तारीख़ों की घोषणा पर वरिष्ठ पत्रकार आरती जेरथ, जागरण इंस्टिट्यूट ऑफ मैनेजमेंट के निदेशक एनआर मोहंती और एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के सह-संस्थापक जगदीप छोकर से चर्चा कर रहे हैं.

जन गण मन की बात, एपिसोड 282: डीएनए प्रोफाइलिंग बिल और लोकसभा चुनाव

जन गण मन की बात की 281वीं कड़ी में विनोद दुआ राज्यसभा में पेश हुए डीएनए प्रोफाइलिंग बिल और लोकसभा चुनाव के समय से पहले होने की संभावना पर चर्चा कर रहे हैं.

क्या देश में वाकई ‘भगवा’ लहर चल रही है?

आंकड़ों पर ग़ौर करें तो भाजपा समर्थकों का यह दावा पूरी तरह से सही नहीं दिखता है. देश की कुल 4,139 विधानसभा सीटों में से सिर्फ़ 1,516 सीटें यानी करीब 37 फीसदी ही भाजपा के पास हैं और सिर्फ़ दस राज्यों में भाजपा की बहुमत वाली सरकार है.

चुनाव आयोग को पता है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में क्या चल रहा है?

कर्नाटक चुनाव के समय वहां के मीडिया में राज्य के सत्ता पक्ष और केंद्र के सत्ता पक्ष के बीच कैसा संतुलन है, इसकी समीक्षा रोज़ होनी चाहिए थी. चुनाव आयोग कब सीखेगा कि मीडिया कवरेज और बयानों पर कार्रवाई करने और नज़र रखने का काम चुनाव के दौरान होना चाहिए न कि चुनाव बीत जाने के तीन साल बाद.

भाजपा अगर कर्नाटक हारी तो क्या नवंबर में ही आम चुनाव हो जाएंगे?

कर्नाटक की बाज़ी अगर हाथ से छूटी तो इससे पैदा माहौल से राजस्थान व मध्यप्रदेश जैसे मुश्किल राज्यों में भाजपा के लिए अपनी सरकारें बचा पाना मुश्किल होगा. अगर राज्यों में सरकारें गिरने का सिलसिला आगे बढ़ा तो 2019 में मोदी अकेले दम पर हालात बेकाबू होने से नहीं बचा पाएंगे.

घटती लोकप्रियता से घबराकर संघ परिवार एक बार फिर ध्रुवीकरण के खेल में जुट गया है

हिंदू वोटों को ध्रुवीकृत करने के लिए कोशिशें तेज़ हो गई हैं. इस खेल में संघ परिवार माहिर है और ऐसी कोशिशों ने अतीत में भी इसे लाभ पहुंचाया है.

जब चुनावी लोकतंत्र में ज़ब्त हो गई फ़िराक़ गोरखपुरी की ज़मानत

चुनाव में हार के बाद जब पीएम जवाहर लाल नेहरू से उनकी भेंट हुई तो नेहरू ने पूछा, सहाय साहब कैसे हैं? फ़िराक़ गोरखपुरी का जवाब था, ‘सहाय’ कहां, अब तो बस ‘हाय’ रह गया है.