एनजीओ ‘मदर टेरेसा वेलफेयर ट्रस्ट’ द्वारा संचालित जमशेदपुर ज़िले के एक बाल आश्रय गृह की दो नाबालिग आदिवासी लड़कियों ने संचालक समेत अन्य पर यौन उत्पीड़न सहित कई गंभीर आरोप लगाए हैं. आश्रय गृह से 40 बच्चों को जमशेदपुर के ही दूसरे आश्रय गृह में भेजे जाने के दौरान उनमें से दो बच्चियां लापता हो गई थीं. इनका अब तक पता नहीं लग सका है.
मामला जमशेदपुर ज़िले के राज्य पंजीकृत महिला आश्रयगृह का है, जहां दो नाबालिग आदिवासी लड़कियों ने संचालक समेत अन्य पर चार सालों से यौन उत्पीड़न और प्रताड़ना समेत कई गंभीर आरोप लगाए हैं. पुलिस के अनुसार, मामले में एफआईआर दर्ज हो गई है और आश्रयगृह के बच्चों को स्थानांतरित किया जा रहा है.
इस साल जनवरी में राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) ने सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर से जुड़े बच्चों के दो आश्रय गृहों को लेकर बुनियादी ढांचे, वित्त पोषण और संचालन लाइसेंस में अनियमितताओं की सूचना दी थी. साथ ही यहां यौन शोषण की संभावना को भी व्यक्त किया था. दिल्ली हाईकोर्ट में चल रहे मामले में दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने बताया है कि एनसीपीसीआर के आरोपों में सबूतों और योग्यता की कमी है.
आदेश में कहा गया है कि ज़िला प्रशासन परोपकार के कामों का स्वागत करता है. हालांकि दान या नकद के रूप में इस तरह के कार्यों में अक्सर लाउडस्पीकर, सार्वजनिक सभा, घर-घर का दौरा किया जाता है. साथ ही सोशल मीडिया कवरेज के लिए दानदाताओं के नाम के साथ विशेष रूप से बनाए गए राहत किट/पैकेट का उपयोग होता है. यह दान से जुड़े उद्देश्य और पवित्रता को कमज़ोर करती है.
आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने दो आवेदन दायर कर इस विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन विधेयक, 2020 से जुड़े कैबिनेट नोट, पत्राचार और फाइल नोटिंग्स की प्रति मांगी थी. आरोप है कि इस संशोधन क़ानून के चलते कई एनजीओ के काम में बाधा आ रही है.
महिला का आरोप है कि उनकी शादी साल 2019 में एक व्यक्ति से जबरन कराई गई थी. उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि उनके मायके वालों की तरफ से उसके सेक्सुअल ओरिएंटेशन का इलाज कराने के लिए दबाव बनाया जा रहा है.
राष्ट्रीय बाल संरक्षण अधिकार आयोग की शिकायत पर ‘उम्मीद अमन घर’ और ‘खुशी रेनबॉ होम’ इन एनजीओ में कथित नियमों के उल्लंघनों के लिए मामला दर्ज किया है. ये एनजीओ पूर्व आईएएस अधिकारी एवं सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर द्वारा संचालित हैं.
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त मिशेल बैशलेट ने भारत में मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी को लेकर भी चिंता ज़ाहिर की है. उनकी टिप्पणी पर भारत की ओर से कहा गया है कि मानवाधिकार के नाम पर क़ानून का उल्लंघन माफ़ नहीं किया जा सकता.
एनएचआरसी की एडवाइज़री में कहा गया है कि सेक्स वर्कर्स को अनौपचारिक कामगार के तौर पर मान्यता दी जानी चाहिए और सार्वजनिक वितरण प्रणाली के तहत राशन जैसी कल्याणकारी योजनाओं का लाभ उन तक पहुंचाने के लिए उन्हें अस्थायी दस्तावेज जारी किया जाना चाहिए. कोरोना वायरस लॉकडाउन के कारण इनकी दयनीय स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह क़दम उठाया गया है.
कई ग़ैर सरकारी संगठनों और कार्यकर्ताओं का मानना है कि नए एफसीआरए संशोधनों के कारण उनके काम में बाधा आएगी और कई लोगों को अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़ सकता है. इस विधेयक के प्रावधानों से छोटे एनजीओ के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा.
वीडियो: बीते 20 सितंबर को विपक्ष ने लोकसभा में पेश किए गए एफसीआरए यानी विदेशी अंशदान (विनियमन) संशोधन विधेयक का विरोध यह कहते हुए किया कि सरकार इसके जरिये ‘आलोचकों पर निशाना’ साधना चाह रही है. इस क़ानून और इसके प्रभावों के बारे में बता रहे हैं द वायर के डिप्टी एडिटर गौरव विवेक भटनागर.
गैस पीड़ित निराश्रित पेंशन भोगी संघर्ष मोर्चा के अध्यक्ष ने बताया कि केंद्र सरकार के 30 करोड़ रुपये की सहायता से 2011 में 4,998 विधवा महिलाओं के लिए पेंशन शुरू की थी, जो दिसंबर 2019 से नहीं मिल रही है. इस मांग को लेकर कुछ महिलाएं क्रमिक भूख हड़ताल पर हैं.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने डॉक्टरों और चिकित्साकर्मियों को एहतियात बरतने के लिए रेड अलर्ट जारी करते हुए कहा है कि वरिष्ठ और युवा डॉक्टर समान रूप से कोरोना संक्रमित हो रहे हैं, लेकिन वरिष्ठों की मृत्यु दर अधिक है.
इससे पहले कोरोना वायरस की रोकथाम में लगे स्वास्थ्यकर्मियों के लिए आवास और क्वारंटीन सुविधा को लेकर उच्चतम न्यायालय में दाख़िल एक अन्य याचिका के जवाब में केंद्र सरकार की ओर से कहा गया था कि संक्रमण से बचाव की अंतिम ज़िम्मेदारी स्वास्थ्यकर्मियों की है.
कोरोना संक्रमण के मद्देनज़र हुए लॉकडाउन ने हज़ारों कामगारों पर आजीविका का संकट ला दिया है, जिससे उनकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी चलनी मुश्किल हो गई है. इन कामगारों में सेक्स वर्कर्स भी शामिल हैं.