यह देश किसानों का क़र्ज़दार है

क़र्ज़माफी को किसानों को दिए गए खैरात के तौर पर न देख कर उस क़र्ज़ के एक छोटे से हिस्से की अदायगी के तौर पर देखा जाना चाहिए, जो हम पर बकाया है.

फसल अच्छी होने के बावजदू हमारा किसान हताश क्यों है?

शायद ही ऐसा कोई दिन बीतता है, जब देश के किसी न किसी कोने से किसानों की आत्महत्या की खबरें न आती हों. हार किसानों की नहीं हुई है. ये हार अर्थशास्त्रियों और नीति-निर्माताओं की है, जिन्होंने किसानों को मझधार में छोड़ दिया है.