नल जल योजना में स्रोत से लेकर गांव की हद तक पानी पहुंचाने का काम कंपनियों को सौंपा गया है. कोई गारंटी नहीं कि कंपनी आपूर्ति के मूल जल-स्रोत पर अपना हक़ नहीं जताएगी. एकाधिकार हुआ तो सिंचाई आदि के लिए पानी से इनकार किया जा सकता है, वसूली भी हो सकती है. मोदी सरकार की अन्य कई योजनाओं की तरह नल-जल का एजेंडा काॅरपोरेट नहीं होगा, इसकी क्या गारंटी है?
विधानसभा में विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा रखे गए कटौती प्रस्ताव में कहा गया कि 2019-20 में अगस्त तक हिमाचल प्रदेश में जल जीवन मिशन के तहत ख़र्च किए गए कुल 939 करोड़ रुपये में से जल शक्ति मंत्री के निर्वाचन क्षेत्र में 263 करोड़ और मुख्यमंत्री के क्षेत्र में 181 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे. इस पर मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने कहा कि उनके निर्वाचन क्षेत्र को विकास की सख़्त ज़रूरत थी.
गुजरात सरकार ने इस साल कुल 11.15 लाख परिवारों में नल लगाने का प्रस्ताव जल शक्ति मंत्रालय के पास भेजा था, जिसमें सिर्फ़ 62,043 एससी/एसटी परिवार शामिल हैं. इसे लेकर मंत्रालय ने नाराज़गी जताई है और प्रस्ताव में बदलाव करने के लिए कहा है.