कोरोना महामारी की दूसरी लहर के दौरान गंगा में बहते शवों को देखकर गुजराती कवियत्री पारुल खक्कर ने एक कविता लिखी थी. गुजरात साहित्य अकादमी के आधिकारिक प्रकाशन में इसे लेकर कहा गया है कि शब्दों का उन ताकतों द्वारा दुरुपयोग किया गया, जो केंद्र और उसकी राष्ट्रवादी विचारधारा की विरोधी हैं.
पारुल खक्कर की कविता एक पारंपरिक गुजराती हिंदू मन का विस्फोट है. उसमें तात्कालिकता का आवेग है, कविता रचने का कोई कलात्मक प्रयास नहीं. वह शोक गीत है, मर्सिया है. गुजरात के समाज में ऐसी कविता अगर फूट पड़े तो अस्वाभाविक लगना ही स्वाभाविक है.
गंगा में बहे शवों को देखकर व्यथित हुई गुजराती कवियत्री पारुल खक्कर ने अपने दुख को चौदह पंक्तियों की की कविता की शक्ल दी, जिसे लेखकों के साथ-साथ आमजनों ने भी पसंद किया. हालांकि इसके बाद मूल रूप से गैऱ राजनीतिक पारुल सत्तारूढ़ भाजपा की ट्रोल आर्मी के निशाने गईं.
यूनाइटेड नेशंस वर्किंग ग्रुप ऑन आर्बिट्रेरी डिटेंशन ने कहा कि जामिया मिलिया इस्लामिया की छात्रा सफूरा ज़रगर की मेडिकल स्थिति को देखते हुए गंभीर से भी गंभीर आरोप में भी तत्काल गिरफ़्तारी की कोई ज़रूरत नहीं थी. निकाय ने भारत से उनकी हिरासत की परिस्थितियों पर एक स्वतंत्र जांच सुनिश्चित करने को कहा है.
हिंदुत्व की विचारधारा का आधुनिक दुनिया से कोई लेना-देना नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय हस्तियों द्वारा किसान आंदोलन को मिले समर्थन के बाद कई भारतीय कलाकारों और खेल हस्तियों ने केंद्र सरकार के समर्थन वाले हैशटैग के साथ जवाबी ट्वीट किए थे. महाराष्ट्र के गृह मंत्री अनिल देशमुख ने कहा है कि राज्य का ख़ुफ़िया विभाग कुछ हस्तियों पर ट्वीट के लिए दबाव डाले जाने के आरोपों की जांच करेगा.
देश में तीन कृषि कानूनों के विरोध में 70 दिनों से चल रहे किसान आंदोलन का रिहाना, ग्रेटा थनबर्ग के अलावा अमेरिकी उपराष्ट्रपति कमला हैरिस की भतीजी मीना हैरिस, यूट्यूबर लिली सिंह सहित कई लोगों ने समर्थन जताया था. उनके इस कदम के लिए रिहाना और अन्य लोगों को सोशल मीडिया पर एक वर्ग ने ट्रोल किया.
सोसाइटी के वॉट्सऐप ग्रुप में वो महिलाएं अमूमन घर-गृहस्थी से जुड़े मसले साझा किया करती थीं. पता नहीं ये कब और कैसे हुआ कि अपनी ज़िंदगी की तमाम फ़िक्रें छोड़ बॉलीवुड के नेपोटिज़्म को ख़त्म करना, सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय मांगना और आलिया भट्ट को नेस्तनाबूद कर देना इन औरतों का मक़सद बन गया.
जामिया मिलिया इस्लामिया की छात्रा सफूरा जरगर के वकील ने कोर्ट से अपील की कि उन्हें मानवीय आधार पर ज़मानत दी जाए, क्योंकि वो 21 हफ्ते की गर्भवती हैं और पॉली सिस्टिक ओवरियन डिसऑर्डर से पीड़ित हैं.
सच्चाई यह है कि साल 2018 में सफूरा की शादी एक कश्मीरी युवक से हुई थी. सफूरा और उनका परिवार पहले से ही उनकी गर्भावस्था से वाकिफ था और यही वजह थी कि उनके वकील ने सफूरा की गर्भावस्था को ध्यान में रखते हुए अप्रैल में ही उनकी जमानत की गुहार लगाई थी.
इंटरनेट पर ट्रोल्स की तादाद इतनी हो चुकी है कि लगता नहीं कि वे जल्दी यहां से जाने वाले हैं. लेकिन अगर उनकी चरित्रगत ग्रंथियां, उनके तरीके और तकनीकें समझ लें, तो अपनी मानसिक शांति और संतुलन खोए बिना उनके उत्पात और हमलों का सामना कर पाएंगे.
सरकार ने संदेश दिया है कि गाली और धमकियां देने वाले हमारे लोग हैं. इनको कुछ नहीं होना चाहिए. उसकी यह कार्रवाई एक ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ अफसर को हतोत्साहित करती है और लंपटों की जमात को उत्साहित करती है.
मुद्दा ये नहीं है कि आप किसका समर्थन करते हैं. आप बिल्कुल उन्हीं को चुने जिसका आपको मन है, लेकिन ये उम्मीद ज़रूर है कि आप अपने विवेक पर पर्दा न डालें.
विदेश मंत्री के लिए यह अच्छा अवसर था कि वे सामने आकर लगातार ट्विटर पर ट्रोलिंग का शिकार हो रही महिलाओं के प्रति अपना समर्थन जतातीं, लेकिन उनकी विनम्र प्रतिक्रिया दिखाती है कि उन्होंने ये अपमान का घूंट पी लिया है.
कांग्रेस नेता प्रियंका चतुर्वेदी के नाम से चल रहे एक फेक ट्वीट के जवाब में अभद्र टिप्पणी करने वाले इस व्यक्ति पर गृह मंत्रालय के निर्देश के बाद पोक्सो सहित विभिन्न धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया था.