दिग्गज सोशल मीडिया मंचों और ऑनलाइन न्यूज़ मीडिया के साथ नये नियमों को लेकर विवादास्पद बहस ऐसे मौके पर हो रही है जब नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री के तौर पर सामने आई अब तक की सबसे बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं. ऐसे में आलोचनाओं के दमन में लगी सरकार ने टेक कंपनियों से दो-दो हाथ कर खु़ुद को अपने ही बुने चक्रव्यूह में फंसा लिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली हाईकोर्ट के 21 मई के आदेश के ख़िलाफ़ वित्त मंत्रालय की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह रोक लगाई. दिल्ली हाईकोर्ट के व्यक्तिगत इस्तेमाल के लिए लोगों द्वारा आयातित ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर पर केंद्र सरकार द्वारा लगाए जा रहे एकीकृत वस्तु एवं सेवा कर (आईजीएसटी) को असंवैधानिक क़रार दिया गया था.
दिल्ली हाईकोर्ट ने भाजपा सांसद गौतम गंभीर के पास बड़ी मात्रा में फैबीफ्लू मिलने की जांच करने वाले औषधि नियामक की रिपोर्ट ख़ारिज करते हुए कहा कि इस संस्था से अदालत का भरोसा डगमगा गया है. कोर्ट ने यह भी कहा कि ख़ुद को मददगार दिखाने के लिए हालात का फायदा उठाने की प्रवृत्ति की कड़ी निंदा होनी चाहिए.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कोविड-19 से जुड़ी बीमारी ब्लैक फंगस की दवा की किल्लत और मरीज़ों को हो रहीं दिक्कतों से जुड़ीं याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की. साथ ही केंद्र को संबंधित दवाओं के आयात की मौजूदा स्थिति और खेप के कब तक आने की संभावना है, इस पर विवरण पेश करने का निर्देश दिया है.
टि्वटर ने अब तक आईटी मंत्रालय को उसके मुख्य अनुपालन अधिकारी का ब्योरा नहीं दिया है. हालांकि उसने नोडल संपर्क और शिकायत अधिकारी के तौर पर एक विधि कंपनी के वकील का नाम दिया है. नए नियमों के तहत यह व्यक्ति सोशल मीडिया कंपनी का कर्मचारी होना चाहिए, जो भारत में कार्यरत हो.
वॉट्सऐप का कहना है कि नए सोशल मीडिया नियम भारत के संविधान में दिए गोपनीयता के अधिकारों का उल्लंघन करते हैं. कंपनी के इस मुक़दमे ने मोदी सरकार और फेसबुक, गूगल की मूल कंपनी अल्फाबेट और ट्विटर जैसी दिग्गज तकनीकी कंपनियों के बीच पहले से मौजूद तनाव को और बढ़ा दिया है.
सुदर्शन न्यूज़ चैनल ने फ़लस्तीन पर इज़रायल के हमले का समर्थन करते हुए अपने एक कार्यक्रम ‘बिंदास बोल’ में सऊदी अरब की एक मस्जिद पर मिसाइल दागते हुए दिखाया था. ऐसा करने के लिए चैनल ने रूपांतरित ग्राफिक का सहारा लिया था. चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हानके ने शो में कहा था कि इज़रायल का समर्थन करें क्योंकि वह अपने दुश्मनों और जिहादियों की सही तरीके से हत्या कर रहा है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि भाजपा सांसद गौतम गंभीर अच्छी मंशा से दवाएं बांट रहे थे, लेकिन महामारी के बीच उनके द्वारा उठाए गए इस क़दम को अदालत 'ज़िम्मेदाराना व्यवहार' नहीं मानती है. कोर्ट ने आम आदमी पार्टी के दो विधायकों के ख़िलाफ़ भी जांच के आदेश दिए हैं.
समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए दिल्ली हाईकोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गई है. इससे पहले केंद्र सरकार ने अदालत में ऐसे विवाह का विरोध करते हुए कहा था कि हमारा समाज, हमारा कानून और हमारे नैतिक मूल्य इसकी मंजूरी नहीं देते. सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में अपने एक फैसले में समलैंगिक यौन संबंध को सहमति प्रदान की थी, लेकिन इसमें समलैंगिकों की शादी का ज़िक्र नहीं था.
देश में कोरोना महामारी के दौरान चिकित्सा सुविधाओं की कमी के चलते कुछ लोगों ने अपने संबंधियों के लिए विदेशों से ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर मंगा दिया था, जिस पर केंद्र सरकार ने एक मई से 12 प्रतिशत एकीकृत जीएसटी लगा दिया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र के इस क़दम को असंवैधानिक क़रार देते हुए इस संबंध में जारी की गई अधिसूचना को ख़ारिज कर दिया है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने सरकार की उस अधिसूचना को भी ख़ारिज कर दिया, जिसमें में कहा गया था कि व्यक्तिगत उपयोग के लिए आयातित ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर पर 12 प्रतिशत एकीकृत जीएसटी लगेगा. अदालत ने कहा कि सरकार को कम से कम युद्ध, अकाल, बाढ़, महामारी के समय में करों के बोझ को कम करना चाहिए या कम से कम कम रखना चाहिए. इस तरह का दृष्टिकोण एक व्यक्ति को गरिमा का जीवन जीने की अनुमति देता है, जो संविधान के अनुच्छेद
किसान आंदोलन को लेकर सोशल मीडिया पर जारी एक टूलकिट में संलिप्तता के आरोप में बीते 13 फरवरी को पर्यावरण कार्यकर्ता दिशा रवि को गिरफ़्तार किया गया था. अदालत ने बीते 17 मार्च को दिशा रवि की याचिका पर जवाब दाख़िल करने के लिए केंद्र सरकार को आख़िरी मौका दिया था. आरोप है कि किसान आंदोलन का पूरा घटनाक्रम टूलकिट में बताई गई कथित योजना से मिलता-जुलता है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने देश में रूसी वैक्सीन स्पुतनिक वी के उत्पादन संबंधी याचिका को सुनते हुए कहा कि जब केंद्र के पास लाखों टीकों की खुराक प्राप्त करने का अवसर है तब भी कोई दिमाग नहीं लगा रहा है, जबकि सरकार को इसे एक अवसर के तौर पर अपनाना चाहिए.
भाजपा सांसद गौतम गंभीर और भारतीय युवा कांग्रेस के अध्यक्ष श्रीनिवास बी. वी. समेत कई नेताओं पर कोविड-19 दवाओं और अन्य राहत सामग्रियों की जमाखोरी के आरोप लगे थे. दिल्ली पुलिस ने उन्हें क्लीनचिट दे दिया था. हाईकोर्ट ने कहा है कि महामारी के दौरान नेताओं को दवाएं ख़रीदने और अपनी छवि बनाने के लिए जमाखोरी करने की कोई ज़रूरत नहीं थी.
दिल्ली हाईकोर्ट की पीठ ने कहा कि सरकार को नया सोचने की ज़रूरत है. एक ही संदेश बजाने की जगह अलग-अलग संदेश तैयार करने चाहिए. अदालत ने कहा कि टीवी प्रस्तोता और निर्माताओं से लोगों को जागरूक करने के लिए कार्यक्रम बनाने और अमिताभ बच्चन जैसे लोकप्रिय लोगों से इसमें मदद करने को कहा जा सकता है.