विशेष रिपोर्ट: कृषि क़ानूनों के विरोध के बीच ख़ुद को 'किसान हितैषी' बताते हुए मोदी सरकार ने फसल बीमा योजना की सफलता के दावे किए हैं. हालांकि दस्तावेज़ दर्शाते हैं कि इस बीच किसानों द्वारा दायर किए गए फसल बीमा दावों को ख़ारिज करने की संख्या में नौ गुना की बढ़ोतरी हुई है, जहां एचडीएफसी ने 86, टाटा ने 90 और रिलायंस ने 61 फीसदी दावों को ख़ारिज किया है.
केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर द्वारा राज्यसभा में पेश किए गए आंकड़ों के अनुसार, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत साल 2017-18 में किसानों के 92,869 दावों को ख़ारिज किया था. इसके अगले ही साल 2018-19 में आंकड़ा दोगुनी से भी ज्यादा हो गया है और इस दौरान 2.04 लाख दावों को ख़ारिज किया गया.
विशेष रिपोर्ट: कृषि मंत्रालय ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के अलावा कृषि लोन पर ब्याज सब्सिडी, राज्यों को दाल वितरण, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना जैसी कई महत्वपूर्ण योजनाओं के बजट को बढ़ाने की मांग की थी, लेकिन वित्त मंत्रालय द्वारा इन मांगों को ख़ारिज कर दिया गया.
कृषि मंत्रालय से आरटीआई के तहत प्राप्त जानकारी के मुताबिक़ 2019-20 रबी सीज़न के लिए फसल बीमा योजना के तहत कुल 3,750 करोड़ रुपये के दावे किए गए थे, जिसमें समयसीमा बीत जाने के बाद भी अब तक केवल 775 करोड़ रुपये का भुगतान हुआ है.
याचिका में कहा गया है कि बीमा कंपनियां मानसिक स्वास्थ्य देखरेख अधिनियम 2007 की धारा 21(4) का उल्लंघन कर रही हैं, जिसके तहत हर बीमाकर्ता को शारीरिक बीमारियों के इलाज के आधार पर ही मानसिक बीमारियों के इलाज के लिए प्रावधान बनाना अनिवार्य है.
हाल ही में मोदी सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में कई बदलावों को मंजूरी दी है. इसके तहत केंद्र ने अपनी प्रीमियम सब्सिडी को घटा ली है. विशेषज्ञों का कहना है कि इससे राज्यों पर काफी भार बढ़ सकता है.
विशेष रिपोर्ट: केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने इसके कारणों का पता लगाने के लिए राज्य सरकारों के साथ मिलकर जांच शुरू की है. इसके अलावा किसानों के 5,000 करोड़ रुपये से ज़्यादा के दावे का भुगतान नहीं किया जा सका है, जबकि दावा भुगतान की समय-सीमा काफी पहले ही पूरी हो चुकी है.
द वायर एक्सक्लूसिव: आरटीआई के जरिए प्राप्त किए गए आंकड़ों के मुताबिक 12,867 करोड़ के कुल अनुमानित दावे में से अब तक 7,696 करोड़ रुपये का ही भुगतान किया गया है. जबकि, खरीफ 2018 सीजन के लिए बीमा कंपनियों ने कुल 20,747 करोड़ रुपये का प्रीमियम इकट्ठा किया था.
भारतीय बीमा विनियामक और विकास प्राधिकरण की रिपोर्ट के मुताबिक मार्च 2018 तक में फसल बीमा के तहत कार्यरत सरकारी कंपनियों को 4,085 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है. इसमें से सबसे बड़ा घाटा एआईसी को हुआ है.
वरिष्ठ भाजपा नेता मुरली मनोहर जोशी की अगुवाई वाली संसदीय समिति ने कहा है कि किसानों को फसल बीमा योजनाओं की ओर आकर्षित करने के लिए इनमें पर्याप्त पूंजी आवंटन की ज़रूरत है.
विशेष रिपोर्ट: बीमा कंपनियों को अक्टूबर 2018 तक 66,242 करोड़ रुपये का प्रीमियम मिल चुका है. एक तरफ कंपनियों को समय पर प्रीमियम मिल रहा है, वहीं दूसरी ओर किसानों के क्लेम का भुगतान कई महीनों से लंबित पड़ा है.
द वायर एक्सक्लूसिव: आरटीआई से मिली जानकारी के मुताबिक प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत कंपनियों को पहले की बीमा योजनाओं के मुक़ाबले 36,848 करोड़ रुपये का ज़्यादा प्रीमियम मिला है जबकि कवर किए गए किसानों की संख्या में सिर्फ़ 0.42 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
नाबार्ड के हालिया अध्ययन के मुताबिक भारत में 10.07 करोड़ किसानों में से 52.5 प्रतिशत क़र्ज़ में दबे हुए हैं. वर्ष 2017 में एक किसान परिवार की कुल मासिक आय 8,931 रुपये थी.
वेदर रिस्क मैनेजमेंट सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड (डब्ल्यूआरएमएस) कंपनी के एक सर्वे में यह बात सामने आई कि सिर्फ 28.7 प्रतिशत किसानों को ही प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की जानकारी है.
दो हज़ार करोड़ के फंड के साथ पचास करोड़ लोगों को बीमा देने की करामात भारत में ही हो सकती है. यहां के लोग ठगे जाने में माहिर हैं. दो बजट पहले एक लाख बीमा देने का ऐलान हुआ था, आज तक उसका पता नहीं है.