वर्तमान आर्थिक स्थिति में भारत वैश्विक कंपनियों के लिए एक कम आकर्षक बाज़ार बन रहा है, जिसके संरचनात्मक रूप से ठीक होने में समय लग सकता है. कई वैश्विक ब्रांड भारत में या तो बड़े पैमाने पर निवेश घटाना चाहते हैं या अर्थव्यवस्था को देखते हुए आगे विस्तार के लिए निवेश नहीं कर रहे हैं.
चीन में कामगारों के बढ़ते वेतन और अमेरिका के साथ इसके ट्रेड वॉर के बाद कई मल्टीनेशनल कंपनियों ने वहां से अपने मैन्युफैक्चरिंग बेस शिफ्ट करने शुरू कर दिए थे, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद अप्रैल 2018 से लेकर अगस्त 2019 के बीच ऐसी कंपनियों में से सिर्फ तीन ही भारत आईं.
माकपा नेता सीताराम येचुरी ने कहा कि अर्थव्यवस्था डूब रही है और हर मामले में गरीब भारतीयों की सामान्य गुजर-बसर मुश्किल हुई है. वहीं, कांग्रेस ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश की वृद्धि दर कम रहने को लेकर सरकार पर निशाना साधा है.
औद्योगिक नीति एवं संवर्द्धन विभाग के अनुसार, 2017-18 में देश में एफडीआई प्रवाह तीन प्रतिशत बढ़ा. जबकि 2016-17 में वृद्धि दर 8.67, 2015-16 में 29, 2014-15 में 27 और 2013-14 में 8 प्रतिशत रही थी.