हर मौसम आजकल कोई न कोई शोक संदेश लेकर आता है

प्रकृति विरोधी विकास हमें विनाश की और ले जा रहा है. पहाड़ों को काटने, नदियों को बांधने और जंगलों को मिटाने का मतलब विकास नहीं है, यह ख़ुद को मिटाने की भौतिक तैयारी है. हमारी शिक्षा ने हमें अपने परिवेश और पर्यावरण से बहुत दूर कर दिया है. ये जंगल, पर्वत और झरने हमें अध्यात्म का विषय लगते हैं, पर इससे पहले ये भूगोल का विषय हैं.

अधिक जानलेवा बनते जा रहे हैं भू-स्खलन

भू-स्खलन ख़तरनाक है ही पर यदि बाढ़, भूकंप आदि अन्य आपदाओं को साथ मिलाकर देख जाए तो यह और भी जानलेवा हो जाते हैं, तिस पर अपनी लापरवाहियों से हमने इस संभावना को और बढ़ा दिया तो इसकी बहुत महंगी कीमत चुकानी पड़ेगी.