भारत में अक्सर न्यायिक आज़ादी के रास्ते में कार्यपालिका और कभी-कभी विधायिका द्वारा बाधा डालने की संभावनाएं देखी जाती हैं, लेकिन जब न्यायपालिका के भीतर के लोग ही अन्य शाखाओं के सामने झुक जाते हैं, तो स्थिति बिल्कुल अलग हो जाती है.
उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्ति को प्रभावित करने वाले महत्वपूर्ण फैसले और प्रस्ताव मुख्य न्यायाधीश द्वारा कॉलेजियम की सहमति दरकिनार करते हुए मनमाने और अनौपचारिक तरीके से लिए जा रहे हैं.
मामले की सुनवाई के लिए गठित पांच जजों की संविधान पीठ के गठन को लेकर अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सवाल उठाए. पीठ के जबाव से संतुष्ट न होने पर सिब्बल ने याचिका वापस ले ली.
राज्यसभा के उपसभापति के फ़ैसले को चुनौती देने वाली याचिका दायर करने वाले दो कांग्रेस सांसदों को जस्टिस चेलमेश्वर और जस्टिस एसके कौल की पीठ ने मंगलवार को आने को कहा.