दिल्ली स्थित अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीप गुलेरिया ने कहा कि जब तक बड़ी संख्या में आबादी का टीकाकरण नहीं हो जाता, तब तक कोविड-उपयुक्त व्यवहार का आक्रामक तरीके से पालन करने की आवश्यकता है. उन्होंने संक्रमण के मामलों में बड़ी वृद्धि होने पर कड़ी निगरानी और क्षेत्र-विशेष में लॉकडाउन की आवश्यकता पर ज़ोर दिया.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा है कि बेहद दुख की बात है कि केंद्र सरकार ने इस समिति को ख़ारिज कर दिया है. उन्होंने आरोप लगाया कि यह सिर्फ़ दिल्ली की बात नहीं है, बल्कि पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र और झारखंड सहित कई अन्य राज्यों की बात है, जहां केंद्र, राज्य सरकारों के काम में बाधा डाल रहा है.
हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने कहा कि कोरोनिल किट की आधी लागत पतंजलि और आधी हरियाणा सरकार के ‘कोविड रिलीफ फंड’ ने वहन की है. रामदेव की एलोपैथी के ख़िलाफ़ टिप्पणी को लेकर उठ रहे विवाद के बीच हरियाणा सरकार ने यह घोषणा की गई है. रामदेव ने एलोपैथी को एक स्टुपिड और दिवालिया साइंस बताया था.
देश में कोरोना महामारी के दौरान चिकित्सा सुविधाओं की कमी के चलते कुछ लोगों ने अपने संबंधियों के लिए विदेशों से ऑक्सीजन कंसन्ट्रेटर मंगा दिया था, जिस पर केंद्र सरकार ने एक मई से 12 प्रतिशत एकीकृत जीएसटी लगा दिया था. दिल्ली हाईकोर्ट ने केंद्र के इस क़दम को असंवैधानिक क़रार देते हुए इस संबंध में जारी की गई अधिसूचना को ख़ारिज कर दिया है.
मोदी सरकार द्वारा कोरोना वायरस को लेकर बनाए गए वैज्ञानिक सलाहकार समूह के अध्यक्ष शाहिद जमील ने पिछले कुछ महीनों में कई बार इस बात को लेकर नाराज़गी ज़ाहिर की थी कि कोरोना संक्रमण को लेकर नीतियां बनाते वक़्त विज्ञान को तरजीह नहीं दी जा रही है, जो अत्यधिक चिंता का विषय है.
कोरोना की दूसरी लहर के प्रकोप के दौरान दवा, ऑक्सीजन आदि की कमी जानलेवा साबित हो रही है, लेकिन एक वर्ग ऐसा भी है, जिसे अस्पताल की चौखट और इलाज तक सहज पहुंच भी मयस्सर नहीं है.
इस कठिन वक़्त में सरकारों की काहिली तो अपनी जगह पर है ही, लोगों का आदमियत से परे होते जाना भी पीड़ितों की तकलीफों में कई गुनी वृद्धि कर रहा है. इसके चलते एक और बड़ा सवाल विकट होकर सामने आ गया है कि क्या इस महामारी के जाते-जाते हम इंसान भी रह जाएंगे?
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार की लचर तैयारियों पर कड़ी फटकार लगाते हुए कहा कि जब सरकार शहरों में ही कोरोना को नियंत्रित करने की जद्दोजहद कर रही है, तो ऐसे में गांव में कोरोना टेस्टिंग और इलाज काफी मुश्किल काम होगा.
आंध्र प्रदेश के तिरुपति स्थित सरकारी रुइया अस्पताल में सोमवार देर रात हुआ हादसा. परिजनों का आरोप है कि ऑक्सीजन सप्लाई 25 से 45 मिनट के लिए बाधित हुई थी. वहीं डीएम ने कहा है कि ऑक्सीजन की आपूर्ति पांच मिनट के भीतर बहाल हो गई थी.
इंडियन ओवरसीज़ कांग्रेस के प्रमुख सैम पित्रोदा ने कहा कि भारत में आम दिनों में औसतन 30 हज़ार लोगों की मौत होती है. ऐसे में कोरोना से अगर प्रतिदिन 3,000 अतिरिक्त लोगों की मौत हो रही है तो फिर अंतिम संस्कार के लिए कतारें नहीं लगनी चाहिए थी. इसका मतलब यह है कि मरने वालों का जो आंकड़ा बताया जा रहा है, वह सही नहीं है.
बीते 30 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जिस तरह से केंद्र सरकार की वर्तमान वैक्सीन नीति को बनाया गया है, इससे प्रथमदृष्टया जनता के स्वास्थ्य के अधिकार को क्षति पहुंचेगी, जो कि संविधान के अनुच्छेद 21 का एक अभिन्न तत्व है. सुप्रीम कोर्ट ने वैक्सीन निर्माता कंपनियों द्वारा अलग-अलग कीमत तय करने के संबंध में केंद्र से जानकारी मांगी थी.
बनासकांठा ज़िले में एक गौशाला में ‘वेदालक्षणा पंचगव्य आयुर्वेद कोविड आइसोलेशन सेंटर’ शुरू हुआ है, जहां हल्के लक्षण वाले कोरोना मरीज़ों का दूध, घी और गोमूत्र से बनी दवाइयों से इलाज करने का दावा किया गया है. वहीं एक भाजपा विधायक सुरेंद्र सिंह ने दावा किया है कि हर सुबह खाली पेट गोमूत्र पीने से कोरोना वायरस ख़त्म हो जाएगा, हालांकि इस बात का कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय मेडिकल जर्नल लांसेट ने अपने संपादकीय में मोदी सरकार की आलोचना करते हुए लिखा है कि बार-बार चेतावनी देने के बाद भी सरकार लापरवाह बनी रही और भारत को कोरोना विजयी घोषित कर दिया. जर्नल ने आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि आगामी अगस्त तक भारत में करीब 10 लाख कोरोना मौतें हो सकती हैं.
कोविड-19 संक्रमित मरीज़ों के इलाज के लिए समर्पित निजी और सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं में भर्ती के लिए संशोधित राष्ट्रीय नीति में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा कि किसी भी मरीज़ को ऑक्सीजन या आवश्यक दवाओं आदि समेत किसी भी मद में सेवा देने से इनकार नहीं किया जा सकता, भले ही वह किसी दूसरे शहर का ही क्यों न हो.
इलाहाबाद हाईकोर्ट को बताया गया कि हाल के समय में सरकार का ध्यान बड़े शहरों पर रहा है और छोटे ज़िले एवं शहर दुर्भाग्य से नज़रअंदाज़ कर दिए गए और मीडिया ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया. अब ग्रामीण इलाकों में महामारी का प्रकोप बढ़ते हुए देखा जा रहा है और उचित चिकित्सा सुविधा के अभाव में स्थिति ख़राब हुई है.