यूरोपीय संसद की विदेश मामलों की समिति द्वारा एक रिपोर्ट में भारत में मानवाधिकार रक्षकों और पत्रकारों के लिए असुरक्षित कामकाजी माहौल, भारतीय महिलाओं और अल्पसंख्यक समूहों द्वारा सामना की जाने वाली कठिन परिस्थितियों और जाति आधारित भेदभाव के बारे में कई टिप्पणियां की गई हैं.
स्वेच्छा से खुद के चुने हुए लोगों से मिलने की इच्छा रखने के कारण यूरोपीय संघ के राजनयिकों ने जम्मू कश्मीर का यह दौरा टाल दिया. वे राज्य के तीन पूर्व मुख्यमंत्रियों फारुक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती से भी मुलाकात करना चाहते हैं, जो 5 अगस्त को राज्य का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद से ही हिरासत में हैं.
केवल एक तानाशाह सरकार विपक्षी नेताओं के किसी राज्य में जाने पर रोक लगाकर विदेशी सांसदों को वहां ले जाती है.
कश्मीर में यूरोपीय सांसदों के दल के दौरे को कथित रूप से फंड देने वाला इंटरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर नॉन-अलाइंड स्टडीज़, श्रीवास्तव समूह का हिस्सा है. इसकी वेबसाइट पर इसके कई कारोबार होने की बात कही गई है. हालांकि दस्तावेज़ ऐसा कोई बिज़नेस नहीं दिखाते, जिससे वे यूरोपीय सांसदों को भारत बुलाने और प्रधानमंत्री से मुलाकात करवाने में समर्थ दिखें.
केंद्र सरकार द्वारा अनुच्छेद 370 के अधिकतर प्रावधानों को ख़त्म किए जाने के बाद जम्मू कश्मीर के हालात जानने के लिए श्रीनगर पहुंचे यूरोपीय दल में शामिल जर्मनी के सांसद निकोलस फेस्ट ने यह बात कही है.
भारत को एक इंटरनेशनल बिज़नेस ब्रोकर के ज़रिये विदेशी सांसदों के कश्मीर आने की भूमिका तैयार करने की ज़रूरत क्यों पड़ी? जो सांसद बुलाए गए हैं वे धुर दक्षिणपंथी दलों के हैं. इनमें से कोई ऐसी पार्टी से नहीं है जिनकी सरकार हो या प्रमुख आवाज़ रखते हों. तो भारत ने कश्मीर पर एक कमज़ोर पक्ष को क्यों चुना? क्या प्रमुख दलों से मनमुताबिक साथ नहीं मिला?
जम्मू कश्मीर के दो दिवसीय दौरे पर आए यूरोपीय संघ के सांसदों ने कहा कि हमें फासीवादी कहकर हमारी छवि को ख़राब किया जा रहा है.
ब्रिटेन की लिबरल डेमोक्रेट्स पार्टी के सांसद क्रिस डेविस का कहना है कि कश्मीर यात्रा के लिए उन्हें दिए गए निमंत्रण को भारत सरकार ने वापस ले लिया क्योंकि उन्होंने बिना पुलिस सुरक्षा के स्थानीय लोगों से बात करने की इच्छा जताई थी.
अनुच्छेद 370 हटने के बाद पहली बार 27 यूरोपीय सांसदों का दल जम्मू कश्मीर के दौरे पर है, जबकि अब तक किसी भी विदेशी पत्रकार, अधिकारी या नेता को वहां जाने की अनुमति नहीं दी गई है. मीडिया बोल की इस कड़ी में उर्मिलेश इस मुद्दे पर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष और द हिंदू की पॉलिटिकल एडिटर पूर्णिमा जोशी से चर्चा कर रहे हैं.
कश्मीर जाने वाले 27 यूरोपीय सांसदों में से अधिकतर दक्षिणपंथी दलों से जुड़े हुए हैं. अनुच्छेद 370 हटने के बाद केंद्र सरकार ने अब तक किसी भी विदेशी पत्रकार, अधिकारी या राजनयिक को जम्मू कश्मीर जाने की अनुमति नहीं दी है.