झारखंड में ईसाई संगठन और चर्च राज्य सरकार के रवैये पर लगातार सवाल खड़े कर रहे हैं. जबकि कुछ घटनाओं को केंद्र में रखकर भाजपा तथा आरएसएस-विहिप भी मिशनरी संस्थाओं पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है.
झारखंड में सार्वजनिक वितरण प्रणाली में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर की व्यवस्था फेल होने के बाद राज्य सरकार ने इसे वापस ले लिया है. पिछले साल अक्टूबर में रांची के नगड़ी ब्लॉक में इसे पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर लागू किया गया था.
झारखंड के मुख्यमंत्री रघुबर दास ने सामाजिक कार्यकर्ता स्वामी अग्निवेश से मारपीट मामले की जांच के आदेश दिए हैं.
झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल मरांडी ने आरोप लगाया है कि उनकी पार्टी के छह विधायकों को भाजपा में शामिल होने के लिए 11 करोड़ रुपये दिए गए थे. वहीं भाजपा ने आरोपों को निराधार बताते हुए मरांडी के ख़िलाफ़ मानहानि का केस करने की चेतावनी दी.
झारखंड में भूमि अधिग्रहण क़ानून में संशोधन के ख़िलाफ़ आदिवासी संगठनों, विपक्षी दलों तथा जनता का गुस्सा फूट पड़ा है. आरोप है कि कॉरपोरेट घराने तथा पूंजीपतियों को लाभ पहुंचाने के लिए प्रदेश की भाजपा सरकार ने यह क़दम उठाया है.
चतरा के इटखोरी में कचरा बीनने का काम करती थी महिला. बेटे ने बताया कि वह चार दिन से भूखी थीं. झारखंड के ही गिरिडीह ज़िले में रविवार को कथित तौर पर भूख से एक और महिला की मौत हो गई थी.
गिरिडीह ज़िले के मंगरगड्डी गांव में रहने वाली महिला का परिवार छह महीने से मांगकर पेट भर रहा था. प्रभारी उपायुक्त ने कहा कि भूख से नहीं हुई मौत. प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी और मुखिया ने मौत की वजह भूख बताई.
पत्थलगड़ी आंदोलन के रूप में जनता द्वारा अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रभावी इस्तेमाल ने कई ऐसे सवाल उठाए हैं, जिनका जवाब देना सरकारों के लिए मुश्किल हो गया है.
कुछेक अपवाद छोड़ दिए जाएं तो संविधान लागू होने के बाद से आज तक किसी भी राज्य के राज्यपाल ने पांचवीं अनुसूची के तहत मिले अपने अधिकारों और दायित्वों का निर्वहन आदिवासियों के पक्ष में करने में कोई रुचि नहीं दिखाई है.
ग्राउंड रिपोर्ट: झारखंड के कई आदिवासी इलाकों में इन दिनों पत्थलगड़ी की मुहिम छिड़ी है. ग्रामसभाओं में आदिवासी गोलबंद हो रहे हैं और पत्थलगड़ी के माध्यम से स्वशासन की मांग कर रहे हैं.
ग्राउंड रिपोर्ट: झारखंड में पिछले साल सार्वजनिक वितरण प्रणाली में डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (डीबीटी) की व्यवस्था लागू की है, लेकिन ग्रामीणों के लिए इसका लाभ ले पाना अब भी दूर की कौड़ी साबित हो रहा है.
झारखंड में कथित तौर पर भुखमरी से हो रही मौतों ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के कार्यान्वयन की गंभीर त्रुटियों के चलते लोगों के जीने के अधिकार के हनन को उजागर किया है.
कई बार पत्र-पत्रिकाओं के लेख आपको बता सकते हैं कि हमारे सपनों का झारखंड सपने से भी आगे जा चुका है पर इस सपने की सच्चाई देखनी हो तो गांव की पगडंडी पर आइये.
ग्राउंड रिपोर्ट: बिहार से अलग राज्य बनने के बाद लगा था कि झारखंड आर्थिक समृ़द्धि की नई परिभाषाएं गढ़ेगा लेकिन 17 साल बाद भी राज्य से कथित भूख से मरने जैसी ख़बरें ही सुर्खियां बन रही हैं.
भाजपा की रघुबर दास सरकार के बड़े बोलों के बावजूद राज्य में मनरेगा मज़दूरों को नियत समय पर भुगतान मिलने जैसे कई अधिकारों का व्यापक स्तर पर उल्लंघन हो रहा है.