मुख्यधारा की पत्रकारिता तो शुरुआती दिनों से ही राम जन्मभूमि आंदोलन का अपने व्यावसायिक हितों के लिए इस्तेमाल करती और ख़ुद भी इस्तेमाल होती रही. 1990-92 में इनकी परस्पर निर्भरता इतनी बढ़ गई कि लोग हिन्दी पत्रकारिता को हिंदू पत्रकारिता कहने लगे.
उच्चतम न्यायालय ने कहा है कि रथयात्रा के लिए भाजपा अगर संशोधित योजना के साथ आती है तो उस पर विचार किया जा सकता है. भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई को रैली और सभाएं करने की अनुमति मिली.
भाजपा पश्चिम बंगाल में लोकतंत्र बचाओ रथयात्रा निकालना चाहती है. इन रथों को करीब डेढ़ महीने में राज्य के 42 संसदीय क्षेत्रों से गुज़रना था.
भाजपा ने तीन रथयात्राएं निकालने की योजना बनाई थी, जिन्हें पश्चिम बंगाल की ममता बनर्जी सरकार ने सांप्रदायिक हिंसा की आशंका के मद्देनज़र अनुमति नहीं दी थी. अदालत ने कहा कि किसी भी नुकसान के लिए भाजपा ज़िम्मेदार होगी.
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने भाजपा को कूच बिहार में ‘रथयात्रा’ निकालने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है. भाजपा ने आदेश के ख़िलाफ़ उच्च न्यायालय की खंडपीठ में शुक्रवार को अपील दाख़िल की.
नीतीश कुमार ने समझने में भूल कर दी कि इस बार उनका सामना पहले की तुलना में शक्तिशाली भाजपा से हुआ है. भाजपा बिहार के हालात का भरपूर फ़ायदा उठा रही है और नीतीश महज़ एक तमाशबीन बनकर रह गए हैं.
अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद वास्तविक मुद्दा नहीं हैं, क्योंकि जनता इस मुद्दे को लेकर शांतिपूर्ण रह रही है. वास्तविक मुद्दा सांप्रदायिकता का विकास और सांप्रदायिक संगठनों द्वारा सांप्रदायिक तनाव को हवा देना है.
यह वह अयोध्या नहीं है जिसको सार्वजनिक कल्पना में विहिप और भाजपा या दिल्ली के तथाकथित लिबरल्स व मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों ने स्थापित किया है. यह एक सामान्य शहर है.
देश के वामपंथी और समाजवादी बौद्धिकों ने धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का पूरा दारोमदार मंडलवादी और आंबेडकरवादी आंदोलनों पर डाल दिया लेकिन इन आंदोलनों ने देश को इतने भ्रष्ट नेता दिए कि उनके पास धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का नैतिक बल ही नहीं बचा.
26 साल पहले आज ही के दिन स्वयं को रामभक्तों की सेना कहने वालों ने एक ऐसा जघन्य कृत्य किया था जिसके कारण पूरी दुनिया के सामने हिंदू धर्म का सिर हमेशा के लिए कुछ नीचे हो गया.