बाबरी विध्वंस: आज़ाद भारत का ख़त्म न होने वाला शर्मनाक अध्याय

इस अपराध की साज़िश रचने वालों ने खूब तरक्की की है और आज वे सत्ता में हैं. एक हिंदू वोट बैंक की कल्पना को साकार करने का अभियान उतनी ही शिद्दत से जारी है.

उत्तर प्रदेश: अयोध्या में कड़ी सुरक्षा, सभी ज़िलों में बनाई गई अस्थायी जेल, स्कूल बंद

राम जन्मभूमि बाबरी मस्जिद ज़मीन विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के मद्देनज़र अयोध्या छावनी में तब्दील. अयोध्या के आसपास के क्षेत्रों में सुरक्षा बढ़ा दी गई है. पूरे उत्तर प्रदेश में सुरक्षा कड़ी की गई. धारा 144 लागू. 21 ज़िलों को संवेदनशील घोषित किया गया.

विहिप ने अयोध्या को रणक्षेत्र बनाया तो ‘हिंदू’ हुई हिंदी पत्रकारिता

मुख्यधारा की पत्रकारिता तो शुरुआती दिनों से ही राम जन्मभूमि आंदोलन का अपने व्यावसायिक हितों के लिए इस्तेमाल करती और ख़ुद भी इस्तेमाल होती रही. 1990-92 में इनकी परस्पर निर्भरता इतनी बढ़ गई कि लोग हिन्दी पत्रकारिता को हिंदू पत्रकारिता कहने लगे.

बाबरी विध्वंस के 25 साल: जलती मशालों के बीच का अकेलापन

बाबरी मस्जिद विध्वंस और उसके बाद के रक्तरंजित दौर की तरफ पच्चीस साल बाद फिर लौटते हुए हम नए सिरे से उस पुराने द्वंद्व से रूबरू होते हैं जो हर ऐसे सांप्रदायिक दावानल के बहाने उठता है.

‘आडवाणी ने हमें कहा कि उन्हें 6 दिसंबर के बाद बाबरी मस्जिद नहीं चाहिए’

‘हम वहां राम मंदिर निर्माण के लिए कारसेवा करने गये थे, मस्जिद गिराने नहीं’, बाबरी मस्जिद विध्वंस में शामिल रहे कारसेवकों ने बताया उनका अनुभव.

संप्रदायवादियों की दिलचस्पी धर्म में नहीं, उसके राजनीतिक इस्तेमाल में है: बिपन चंद्र

अयोध्या मंदिर-मस्जिद विवाद वास्तविक मुद्दा नहीं हैं, क्योंकि जनता इस मुद्दे को लेकर शांतिपूर्ण रह रही है. वास्तविक मुद्दा सांप्रदायिकता का विकास और सांप्रदायिक संगठनों द्वारा सांप्रदायिक तनाव को हवा देना है.

अयोध्या एक शहर का नाम है जिसमें इंसान रहते हैं

यह वह अयोध्या नहीं है जिसको सार्वजनिक कल्पना में विहिप और भाजपा या दिल्ली के तथाकथित लिबरल्स व मार्क्सवादी बुद्धिजीवियों ने स्थापित किया है. यह एक सामान्य शहर है.

अयोध्या विवाद: इस देश की राजनीति धर्मनिरपेक्ष विरासत और संकल्प भूल चुकी है

देश के वामपंथी और समाजवादी बौद्धिकों ने धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का पूरा दारोमदार मंडलवादी और आंबेडकरवादी आंदोलनों पर डाल दिया लेकिन इन आंदोलनों ने देश को इतने भ्रष्ट नेता दिए कि उनके पास धर्मनिरपेक्षता की रक्षा का नैतिक बल ही नहीं बचा.

अगर राम मंदिर बन भी जाता है तो इससे आम हिंदू की ज़िंदगी में रत्ती भर फ़र्क नहीं पड़ेगा

राम मंदिर था या नहीं, ये बहस अनंत काल तक चलाई जा सकती है, लेकिन मुद्दा इतिहास का नहीं बल्कि धर्म के नाम पर बरगलाने का है.