एल्गार परिषद में कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी गलत, पुलिस कार्रवाई की एसआईटी से जांच हो: पवार

एनसीपी प्रमुख शरद पवार ने कहा, 'राजद्रोह के आरोप में कार्यकर्ताओं को जेल भेजना गलत है. लोकतंत्र में अपनी असहमति का सख्ती से विरोध दर्ज कराने की इजाजत है. यह पुलिस आयुक्त और कुछ अधिकारियों द्वारा शक्ति का दुरुपयोग है.'

भीमा-कोरेगांव: एनसीपी नेताओं ने कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज मामले वापस लिए जाने की मांग की

महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे लिखे पत्र में एनसीपी नेता और विधायक धनंजय मुंडे ने दावा किया कि राज्य की पिछली देवेंद्र फड़णवीस सरकार ने सामाजिक कार्यकर्ताओं समेत भीमा-कोरेगांव घटनाक्रम में शामिल लोगों के खिलाफ ‘झूठे’ मामले दर्ज किए थे.

भीमा कोरेगांव: बॉम्बे हाईकोर्ट ने गोंसाल्विस से पूछा, ‘आपने घर पर ‘वार एंड पीस’ किताब क्यों रखी थी?’

बॉम्बे हाईकोर्ट ने एल्गार परिषद-भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी वर्णन गोंसाल्विस और अन्य की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि 'वार एंड पीस' जैसी किताबें राज्य के खिलाफ सामग्री की ओर इशारा करते हैं. 'वार एंड पीस' रूस के प्रसिद्ध लेखक लियो टॉल्सटॉय का उपन्यास है.

भीमा कोरेगांव: सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के एक साल बाद…

कार्यकर्ताओं के वकीलों का कहना है कि पुलिस की ओर से गिरफ़्तारी के बाद से ही मामले को लटकाने और बचाव पक्ष के जानकारियों तक पहुंचने के हर प्रयास को विफल करने की कोशिश की जा रही है.

भीमा-कोरेगांव हिंसा: सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस की चार्जशीट में देरी को स्वीकारा

बॉम्बे हाईकोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस को चार्जशीट दायर करने के लिए अतिरिक्त समय देने से इनकार किया था. शीर्ष अदालत ने उसे ख़ारिज कर दिया और कहा कि अब जब चार्जशीट दायर हो चुकी है, तो मामले में गिरफ़्तार पांच कार्यकर्ता नियमित ज़मानत की मांग कर सकते हैं.

भीमा-कोरेगांवः सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ्तारी पर रोक 22 फरवरी तक बढ़ी

एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में बॉम्बे उच्च न्यायालय ने तेलतुम्बड़े को 14 और 18 फरवरी को जांच अधिकारियों के सामने पेश होने का आदेश दिया.

भीमा-कोरेगांवः सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ्तारी पर 12 फरवरी तक रोक

बॉम्बे उच्च न्यायालय ने आनंद तेलतुम्बड़े की अग्रिम ज़मानत संबंधी याचिका पर सुनवाई 11 फरवरी तक के लिए स्थगित कर दी.

अदालत ने आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ़्तारी को ग़ैरक़ानूनी कहा, रिहा करने का आदेश

पुणे पुलिस ने भीमा-कोरेगांव हिंसा और माओवादियों से कथित संबंधों के आरोप में सुप्रीम कोर्ट से मिली अंतरिम सुरक्षा के बावजूद शनिवार को आनंद तेलतुम्बड़े को गिरफ्तार कर लिया था.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा गिरफ़्तारी से सुरक्षा मिलने पर भी आनंद तेलतुम्बड़े गिरफ़्तार

भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बीते 14 जनवरी को दलित शिक्षाविद् और सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की गिरफ़्तारी से अंतरिम सुरक्षा की अवधि चार सप्ताह और बढ़ा दी थी.

सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े की अग्रिम ज़मानत याचिका पुणे की अदालत ने ख़ारिज की

सामाजिक कार्यकर्ता आनंद तेलतुम्बड़े को एल्गार परिषद/भीमा-कोरेगांव हिंसा में कथित भूमिका और माओवादियों से कथित संबंधों के मामले में आरोपी बनाया गया है.

आनंद तेलतुम्बड़े को गिरफ़्तार करने की कोशिश इस राजतंत्र के बढ़ते अहंकार का सबूत है

राजतंत्र हम सबको इतना मूर्ख समझ रहा है कि हम विश्वास कर लेंगे कि सामाजिक कार्यकर्ता इस देश में हिंसा की साज़िश कर रहे हैं. यह कहने वाले वे हैं जो दिन-रात मुसलमानों, ईसाईयों और सताए जा रहे लोगों के हक़ में काम करने वालों को शहरी माओवादी कहकर नफ़रत और हिंसा भड़काते रहते हैं.

सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारियों का उद्देश्य राजनीतिक लाभ लेना है

भीमा कोरगांव हिंसा और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की कथित साज़िश रचने के आरोप में सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी के बाद से एल्गार परिषद चर्चा में है. एल्गार परिषद के माओवादी कनेक्शन समेत तमाम दूसरे आरोपों पर इसके आयोजक और बॉम्बे हाईकोर्ट के रिटायर्ड जस्टिस बीजी कोलसे पाटिल का पक्ष.

क्या ‘मैं भी अर्बन नक्सल’ का नारा बुनियादी सवालों से दूर ले जा रहा है?

सामाजिक कार्यकर्ताओं पर हालिया कार्रवाई के ख़िलाफ़ जो जनाक्रोश उभरा है उसमें ‘नक्सल’ शब्द और इसके पीछे के ठोस ऐतिहासिक संदर्भों को बार-बार सामने रखना ज़रूरी है ताकि यह शब्द महज़ एक आपराधिक प्रवृत्ति के तौर पर ही न देखा जाए बल्कि इसके पीछे मौजूद सरकारों की मंशा भी उजागर होती रहे.

मीडिया बोल, एपिसोड 65: नोटबंदी, नज़रबंदी और मीडिया

मीडिया बोल की 65वीं कड़ी में उर्मिलेश नोटबंदी पर रिज़र्व बैंक की रिपोर्ट, सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ़्तारी और मीडिया पर सामाजिक कार्यकर्ता और पत्रकार शीतल प्रसाद सिंह और द वायर के संस्थापक संपादक एमके वेणु से चर्चा कर रहे हैं.

मैं भी ‘अर्बन नक्सल’ हूं!

दलितों और पिछड़ों के लिए काम करने वाले कार्यकर्ताओं को गिरफ़्तार कर, उन पर ‘माओवादी’ का लेबल लगाकर सरकार दलित महत्वकांक्षाओं का अपमान करती है, साथ ही दूसरी ओर दलित मुद्दों के प्रति संवेदनशील दिखने का स्वांग भी रचती है.