राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के आंकड़े के अनुसार, देश का वास्तविक जीडीपी वित्त वर्ष 2020-21 में घटकर 135 लाख करोड़ रुपये रहा, जो मार्च 2020 को समाप्त वित्त वर्ष में 145 लाख करोड़ रुपये था. वहीं 2020-21 के दौरान राजकोषीय घाटा जीडीपी का 9.3 प्रतिशत रहा, जो 9.5 प्रतिशत के संशोधित अनुमान से कम है. हालांकि फरवरी 2020 में पेश बजट के दौरान इसके 3.5 प्रतिशत रहने का अनुमान जताया गया था. सरकार ने कुल प्राप्तियों के मुक़ाबले दोगुने से भी
संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक आयोग द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार, भारत की आर्थिक वृद्धि दर 2021-22 में सात प्रतिशत रहने का अनुमान है जबकि चालू वित्त वर्ष (2020-21) में महामारी और सामान्य कारोबारी गतिविधियों पर उसके प्रभाव के कारण इसमें 7.7 प्रतिशत से अधिक गिरावट का अनुमान है.
अर्थशास्त्री अरुण कुमार ने कहा कि देश की आर्थिक वृद्धि में उतनी तेज़ी से सुधार नहीं आ रहा है जैसा सरकार दिखा रही है. आरबीआई का अनुमान है कि इस वित्त वर्ष में देश की अर्थव्यवस्था में 7.5 प्रतिशत की गिरावट आएगी, वहीं राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय 7.7 प्रतिशत की गिरावट का अनुमान लगाया है.
राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा बीते बृहस्पतिवार को जारी राष्ट्रीय आय के पहले अग्रिम अनुमान में कहा गया है कि कृषि और जनउपयोगी सेवाओं मसलन बिजली और गैस आपूर्ति को छोड़कर अर्थव्यस्था के अन्य सभी क्षेत्रों में गिरावट आने का अनुमान है. मुख्य रूप से विनिर्माण और सेवा क्षेत्र के ख़राब प्रदर्शन की वजह से अर्थव्यवस्था में यह गिरावट आएगी.
आने वाले समय में बेहतर उपभोक्ता मांग से इसमें और सुधार की उम्मीद जताई जा रही है. चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में जीडीपी में 23.9 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी. अगर दो तिमाहियों में अर्थव्यवस्था में गिरावट रहे तो उस अर्थव्यवस्था को मंदी में कहा जाता है.
आरबीआई के रिसर्चर द्वारा तैयार की गई अध्ययन रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत तकनीकी रूप से 2020-21 की पहली छमाही में अपने इतिहास में पहली बार आर्थिक मंदी में चला गया है.
हाल ही में अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने अनुमान जताया था कि भारत की जीडीपी 2020 में -10.3 फीसदी रह सकती है जबकि उनके अनुमान के मुताबिक़ साल 2021 में प्रति व्यक्ति जीडीपी के मामले में बांग्लादेश भारत को पीछे छोड़ देगा.
मौद्रिक नीति समिति की तीन दिन चली समीक्षा बैठक के बाद आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने कहा कि अप्रैल-जून तिमाही में अर्थव्यवस्था में आई गिरावट अब पीछे रह गई है और उम्मीद की किरण दिखने लगी है. इससे पहले विश्व बैंक ने भी चालू वित्त वर्ष में देश की जीडीपी में 9.6 प्रतिशत गिरावट का अनुमान लगाया है.
शेयरधारकों को लिखे पत्र में भारतीय उद्योगपति कुमार मंगलम बिड़ला ने कहा कि भारत में कोविड-19 ऐसे समय आया है, जबकि वैश्विक अनिश्चितता तथा घरेलू वित्तीय प्रणाली पर दबाव की वजह से आर्थिक परिस्थितियां पहले से सुस्त थीं.
इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च द्वारा जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्नाटक, झारखंड, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद पर लॉकडाउन का सबसे गहरा असर दिख सकता है. वहीं, मध्य प्रदेश, पंजाब, बिहार, आंध्र प्रदेश और उत्तर प्रदेश में इसका असर सबसे कम रह सकता है.
भारतीय रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन की टिप्पणी इस संबंध में महत्वपूर्ण है कि राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय द्वारा शुक्रवार को जारी आंकड़े के अनुसार भारत की आर्थिक वृद्धि दर चालू वित्त वर्ष की अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में 4.7 प्रतिशत रही जो करीब सात साल का न्यूनतम स्तर है.
कांग्रेस ने मौजूदा वित्त वर्ष की तीसरी तिमाही में आर्थिक विकास दर के 4.7 फीसदी रहने को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधा और दावा किया कि आंकड़ों से स्पष्ट है कि ‘करो-ना’ वायरस ने इस सरकार को पंगु बना दिया है.
नरेंद्र मोदी सरकार में मुख्य आर्थिक सलाहकार रहते हुए अरविंद सुब्रमण्यन ने दिसंबर 2014 में दोहरे बैलंस शीट की समस्या उठाई थी, जिसमें निजी उद्योगपतियों द्वारा लिए गए कर्ज बैंकों के एनपीए बन रहे थे. सुब्रमण्यन ने कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था एक बार फिर से दोहरे बैलेंस शीट के संकट से जूझ रही है.
आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने कहा कि भारत आर्थिक मंदी के घेरे में है. आर्थिक सुस्ती को दूर करने की शुरुआत के लिए यह जरूरी है कि मोदी सरकार सबसे पहले समस्या को स्वीकार करे.
चालू वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर 4.5 प्रतिशत रहने को पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने नाकाफ़ी बताया. उन्होंने यह भी जोड़ा कि अर्थव्यवस्था की स्थिति चिंताजनक है लेकिन हमारे समाज की स्थिति ज्यादा चिंताजनक है.