मेरा जीवन क्षणिक है, मैं इस अनंत में एक कण हूं लेकिन मैं हूं और मेरे होने का अर्थ है, अपने बारे में यह नवलजी का विश्वास था और इसका प्रमाण वे तमाम प्रकाशित और अप्रकाशित कृतियां हैं, जिनमें वे जीवित हैं.
इस देश में कोई भी बोल-बोलकर कुछ भी बेच सकता है, कुछ भी खरीद सकता है. मसलन वो लोगों का ज़मीर खरीद लेता है, सपने बेच देता है. जो नहीं बोल पाता, उसे इस देश में मूर्ख समझा जाता है, शायद इसीलिए कम बोलने वाले, सच्चे, ईमानदार और प्रकृति के साथ चलने वाले किसी भी समुदाय को कमज़ोर समझा जाता है.
बीते रविवार को अभिनेत्री कंगना रनौत ने ट्विटर पर भारत में जाति-व्यवस्था, आरक्षण और भेदभाव को लेकर टिप्पणियां की थीं.
प्रसिद्ध राजनीतिशास्त्री और सीएसडीएस के संस्थापक सदस्यों में से एक रामाश्रय राय के लेखन में सैद्धांतिक गहराई और व्यावहारिक समझ का अनूठा संगम देखने को मिलता है. एक ओर वे समकालीन विचारकों से संवाद करते हैं, वहीं दूसरी ओर पाठकों को भारतीय राजनीति की ज़मीनी हक़ीक़त से भी रूबरू कराते चलते हैं.
हरिशंकर परसाई व्यंग्य के विषय में ख़ुद कहा करते थे कि व्यंग्य जीवन से साक्षात्कार करता है, जीवन की आलोचना करता है, विसंगतियों, अत्याचारों, मिथ्याचारों और पाखंडों का पर्दाफाश करता है. उनकी रचनाएं उनके इस कथ्य की गवाह हैं.
सोसाइटी के वॉट्सऐप ग्रुप में वो महिलाएं अमूमन घर-गृहस्थी से जुड़े मसले साझा किया करती थीं. पता नहीं ये कब और कैसे हुआ कि अपनी ज़िंदगी की तमाम फ़िक्रें छोड़ बॉलीवुड के नेपोटिज़्म को ख़त्म करना, सुशांत सिंह राजपूत के लिए न्याय मांगना और आलिया भट्ट को नेस्तनाबूद कर देना इन औरतों का मक़सद बन गया.
अब जब देश में सारी व्यवस्थाएं धीरे-धीरे खुलने लगी हैं, तब ऐसा दिखाने की कोशिश हो रही है कि भूख और रोजी-रोटी की समस्या ख़त्म हो गई है. जबकि सच्चाई इसके बिल्कुल विपरीत है.
पेरियार ने कहा था, 'हमें यह मानना होगा कि स्वराज तभी संभव है, जब पर्याप्त आत्मसम्मान हो, अन्यथा यह अपने आप में संदिग्ध मसला है.' भारतीय संविधान की उद्देशिका बताती है कि भारत अब एक संप्रभु और स्वाधीन राष्ट्र है, लेकिन इसे अभी 'स्वतंत्र' बनाया जाना बचा हुआ है.
साक्षात्कार: भारतीय उपमहाद्वीप के बंटवारे का जो असर समाज पर पड़ा, उसकी पीड़ा सिनेमा के परदे पर भी नज़र आई. एमएस सथ्यू की 'गर्म हवा' विभाजन पर बनी सर्वश्रेष्ठ फिल्मों में से एक है. इस फिल्म समेत सथ्यू से उनके विभिन्न अनुभवों पर द वायर के संस्थापक संपादक सिद्धार्थ भाटिया की बातचीत.
भारतीय उपमहाद्वीप के विभाजन के बाद से अब तक के अनुभव बताते हैं कि बंटवारा कोई हल नहीं बल्कि ख़ुद अपने आप में ही एक समस्या साबित हुआ है.
अमूल मक्खन के लोकप्रिय विज्ञापन कश्मीर के दर्जे में परिवर्तन से लेकर चीनी उत्पादों के बहिष्कार तक के मुद्दे पर सरकार के रवैये के साथ हामी भरते नज़र आते हैं.
विश्व आदिवासी दिवस: मूल निवासियों की पहचान उनकी अपनी विशेष भाषा और संस्कृति से होती है, लेकिन बीते कुछ समय से ये चलन-सा बनता नज़र आया है कि आदिवासी क्षेत्र के लोग मुख्यधारा की शिक्षा मिलते ही अपनी भाषा, संस्कृति और परंपराओं को हेय दृष्टि से देखने लगते हैं.
किसी भी संगठित धर्म में गया आदिवासी अपनी मूल पहचान बचाए रखने के नाम पर प्रकृति से जुड़े उत्सवों में हिस्सा लेकर इस भ्रम में रहता है कि वह ज़मीन से जुड़ा हुआ है. लेकिन क्या वह कभी ये महसूस करता है कि अपनी संस्कृति, भाषा आदि को लेकर उसका नज़रिया कैसे कथित मुख्यधारा के नज़रिये जैसा हो जाता है?
बुधवार रात से अब तक तरन तारण में 63, अमृतसर में 12 और गुरदासपुर के बटाला में 11 मौतें हुईं हैं. मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने कहा कि जहरीली शराब के उत्पादन और बिक्री को रोकने में पुलिस और आबकारी विभाग की नाकामी शर्मनाक है.
बीते बुधवार को पेशावर में ईश निंदा के आरोपी एक अमेरिकी नागरिक की अदालत में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. अमेरिका ने इस पर कार्रवाई की मांग की है. शुक्रवार को पेशावर में हत्या के आरोपी के समर्थन में हज़ारों लोगों ने प्रदर्शन कर उसकी रिहाई की मांग की है.