मई के आख़िरी सप्ताह में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना मरीजों पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के परीक्षण पर रोक लगाई थी. अब मेडिकल जर्नल द लांसेट द्वारा उसके कोविड-19 के इलाज में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के लाभों पर सवाल उठाने वाले अध्ययन पर चिंता जताए जाने के बाद यह क़दम उठाया गया है.
आईसीएमआर के अध्ययन में यह भी पाया गया कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और दवाओं के विपरित प्रभाव के बीच कोई खास संबंध नहीं है.
कोरोना वायरस से संक्रमित मरीज़ों पर हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा के परीक्षण पर हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अस्थायी तौर पर रोक लगा दी है. हालांकि भारत सरकार का कहना है कि इसके इस्तेमाल के बारे में देश में पर्याप्त अनुभव है, विभिन्न अध्ययन इसके उपयोग को सही ठहराते हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने कहा कि मेडिकल जर्नल द लैंसेट में पिछले सप्ताह प्रकाशित एक अध्ययन में दिखाया गया था कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन लेने वाले लोगों में इसे न लेने वाले लोगों की तुलना में हृदय की समस्याओं और मौत का अधिक खतरा है.
मेडिकल जर्नल द लैंसेट में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि कोविड-19 मरीजों पर मलेरिया रोधी क्लोरोक्वीन या हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवाओं का इस्तेमाल क्लिनिकल ट्रायल्स के अलावा नहीं किया जाना चाहिए. इससे हृदय संबंधी परेशानियों के साथ मौत का खतरा भी बढ़ जाता है.
अमेरिका के खाद्य एवं औषधि प्रशासन ने कहा कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन और क्लोरोक्वीन दवाओं का इस्तेमाल केवल अस्पतालों या क्लिनिकल परीक्षणों में किया जाना चाहिए.
कोविड-19 मरीजों के उपचार में हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के उपयोग को जोर-शोर से बढ़ावा देने वाले अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने कहा कि वह इन रिपोर्टों पर गौर करेंगे.
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, कोरोना वायरस से मरने वालों में 42.2 फीसदी की उम्र 75 आयुवर्ग से अधिक है. 33.1 फीसदी लोग 60-75 आयुवर्ग के, 10.3 फीसदी लोग 45-60 आयुवर्ग और 14.4 फीसदी लोग 45 साल से कम उम्र के थे.
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले सप्ताह प्रधानमंत्री नरेंद मोदी से ‘हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन’ दवाई की खेप अमेरिका भेजने की अनुमति देने के लिए कहा था. भारत द्वारा इसकी बढ़ती मांग के चलते निर्यात पर रोक थी. सोमवार को राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि अगर भारत ने ये दवा नहीं दी, तो यक़ीनन उन्हें इसके नतीजे भुगतने होंगे.