मोदी के अपराध मुक्त राजनीति के वादे का क्या हुआ?

नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने से पहले बिना भेदभाव के एक साल के अंदर जिस संसद को अपराध मुक्त बनाने का वादा किया था वह पांच साल बाद भी पूरा नहीं हुआ. इस दौरान उनकी पार्टी के कई सांसदों और मंत्रियों पर कई गंभीर आरोप लगे मगर आपराधिक मुकदमा चलाने की बात तो दूर, उन्होंने सामान्य नैतिकता के आधार पर किसी का इस्तीफ़ा तक नहीं लिया.

2014 में मोदी ने सपना बेचा था, 2019 में अपनी असफलता बेच रहे हैं

मोदी की बची-खुची राजनीतिक कामयाबी यही है कि विपक्ष के नेता और उनकी सरकारें भी फेल रही हैं. फेल होने वाला हमेशा घर में बताता है कि सब फेल हुए हैं मगर मोहल्ले को बताता है कि वह पास हुआ है, पर रिज़ल्ट किसी को नहीं दिखाता. देश के 50 फीसदी से अधिक छात्रों की यही कहानी आज नरेंद्र मोदी की भी कहानी है.

क्या भाजपा को लगता है कि यूपी में ‘सांप्रदायिकता’ ही आख़िरी सहारा है?

राज्य में चार चरण के मतदान के बाद नरेंद्र मोदी और अमित शाह ने सांप्रदायिकता का नारा बुलंद करने में कोई कसर नहीं छोड़ी, पर यह तो वक़्त ही बताएगा कि उनकी विभिन्न जातियों के हिंदुओं को साथ लाने की ये कोशिश कामयाब होगी या नहीं.