विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) के लिए सरकार के 24,000 करोड़ रुपये के ‘पीएम-जनमन’ पैकेज के कार्यान्वयन के लिए जनसंख्या की जानकारी महत्वपूर्ण है. हालांकि सरकार पिछले तीन महीनों में कुल पीवीटीजी आबादी के लिए तीन भिन्न अनुमानों पर पहुंची है. अधिकारियों का कहना है कि ये आंकड़े अंतिम नहीं हैं.
नरेंद्र मोदी सरकार के तहत भारत के आंकड़ा संग्रह और उन्हें जारी करने के तंत्र की आलोचना की गई है, क्योंकि सरकार ने अप्रिय आंकड़ों के कारण कई रिपोर्टों को गुप्त रखने की कोशिश की है. 2021 की जनगणना, जिसे कोविड-19 महामारी के कारण स्थगित कर दिया गया था, अभी भी नहीं हुई है.
वीडियो: देश में जातिगत जनगणना की मांग तेज़ हो गई है. इस मुद्दे पर सीएसडीएस में प्रोफेसर अभय दुबे, वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, दिल्ली विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर लक्ष्मण यादव और सतीश देशपांडे से आरफ़ा खानम शेरवानी की बातचीत.
समय-समय पर देश में जातिगत जनगणना की मांग तेज़ होती है, लेकिन यह फिर मंद पड़ जाती है. इस बार भी जातिगत जनगणना को लेकर क्षेत्रीय पार्टियां मुखर होकर सामने आ रही हैं और केंद्र सरकार पर दबाव बना रही हैं कि जातिगत जनगणना कराई जाए.
मोदी सरकार ने अपने पिछले कार्यकाल में राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया था. सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश जी. रोहिणी की अध्यक्षता में ओबीसी समुदाय के उप-वर्गीकरण के लिए एक आयोग का गठन किया गया है, ताकि कमजोर वर्गों तक आरक्षण की पहुंच बढ़ाई जा सके.
इसके साथ ही केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने 2021 में होनी वाली जनगणना को डिजिटल माध्यम यानी कि मोबाइल ऐप के ज़रिये कराने की बात कही है.
देश में 1931 की जनगणना में आखिरी बार एकत्रित किए गए जातिगत आंकड़ों के आधार पर तैयार की गई मंडल आयोग की सिफारिशों पर तत्त्कालीन वीपी सिंह सरकार ने ओबीसी के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की थी.