शनिवार (20 जुलाई) और रविवार (21 जुलाई) को तीन राज्यों- उत्तर प्रदेश, राजस्थान और पश्चिम बंगाल में मालगाड़ियों के पटरी से उतरने की घटनाएं हुईं, जिनके कारण रेल यातायात बाधित रहा.
सड़क दुर्घटना में किसी की मृत्यु के बाद जुटी भीड़ का आक्रोश केवल दोषी वाहनचालक के ख़िलाफ़ नहीं है, बल्कि यातायात को नियंत्रित करने में विफलता के लिए सरकार के ख़िलाफ़ भी है, और यह भी साबित करता है कि मनुष्य का मोल अभी बरक़रार है. बंगाल की सांस्कृतिक-राजनीतिक बारीकियों पर केंद्रित इस स्तंभ की पहली क़िस्त.
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के रिपोर्ट के अनुसार, देश में 2020 में यातायात संबंधी दुर्घटनाओं की संख्या 3,68,828 रही, जो 2021 में बढ़कर 4,22,659 हो गई. इन यातायात दुर्घटनाओं में 2021 के दौरान 3,73,884 लोग घायल हुए और 1,73,860 लोगों की मौत हो गई. उत्तर प्रदेश में सर्वाधिक 24,711 लोगों की मौत हुई.
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार, 2020 में 30.1 प्रतिशत मौतें और 26 प्रतिशत चोट की घटनाएं हेलमेट और 11 प्रतिशत से अधिक मौतें और घायल होने की घटनाएं सीट बेल्ट का उपयोग न करने के कारण हुईं.
रेलवे ने एक बयान में कहा है कि एक मई से अब तक 542 श्रमिक स्पेशल ट्रेनें चलाई गई हैं और लॉकडाउन के कारण देश के विभिन्न हिस्सों में फंसे 6.48 लाख प्रवासियों को उनके घर पहुंचाया है.
मामला उत्तर प्रदेश के आगरा ज़िले का है. लखनऊ से दिल्ली जा रही बस में करीब 50 लोग सवार थे. हादसे में जान गंवाने वाले 29 लोगों में एक डेढ़ साल की बच्ची भी है. 18 लोग घायल हो गए हैं.
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा कि नगर निगम, भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण और उनके लिए काम करने वाले संस्थान या राज्यों के सड़क विभाग इन मौतों के लिए ज़िम्मेदार होंगे क्योंकि वे ही सड़कों का ठीक से रखरखाव नहीं कर रहे हैं.