छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खदान परियोजनाओं को मंजूरी देने के ख़िलाफ़ इस साल मार्च से ही विरोध प्रदर्शन चल रहा है. हालांकि, राज्य सरकार ने इन तीन कोयला खदान परियोजना से संबंधित सारी प्रक्रियाएं रोक दी हैं, लेकिन प्रदर्शनकारी इस परियोजना को रद्द करने की मांग पर अड़े हुए हैं.
इस साल मार्च में छत्तीसगढ़ की कांग्रेस नेतृत्व वाली भूपेश बघेल सरकार ने सरगुजा ज़िले में परसा ईस्ट कांते बेसन दूसरे चरण के कोयला खनन के लिए वन भूमि के गैर-वानिकी उपयोग के लिए अंतिम मंज़ूरी दी थी. छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से कहा गया है कि पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन से 1,70,000 हेक्टेयर वन नष्ट हो जाएंगे और मानव-हाथी संघर्ष शुरू हो जाएगा.
छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार ने परसा कोयला खनन परियोजना के लिए हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ों की कटाई और खनन गतिविधि को अंतिम मंज़ूरी दे दी है, जिसके ख़िलाफ़ आदिवासी और कार्यकर्ता ‘चिपको आंदोलन’ जैसा प्रदर्शन कर रहे हैं. कार्यकर्ताओं का कहना है कि पेड़ों की कटाई और खनन से 700 से अधिक लोगों के विस्थापित होने की संभावना है. इससे आदिवासियों की स्वतंत्रता और आजीविका को ख़तरा है.
बस्तर संभाग के बीजापुर ज़िले की स्पोर्ट्स अकादमी के पांच युवा आदिवासी जूडो-कराटे खिलाड़ियों ने सवर्ण जाति के दो कोच पर आरोप लगाया है कि ट्रेनिंग को लेकर ढुलमुल रवैये की बात कहने पर दोनों ने खिलाड़ियों को बुरी तरह पीटा और उसके बाद सभी बच्चों की ट्रेनिंग बंद करवा दी गई.
ऑक्सफैम इंडिया ने भारत में कोविड-19 टीकाकरण अभियान के साथ चुनौतियों पर अपने त्वरित सर्वेक्षण के परिणामों को जारी किया है, जिसमें दावा किया गया है कि कुल जवाब देने वालों में से 30 फ़ीसदी ने धर्म, जाति या बीमारी या स्वास्थ्य स्थिति के आधार पर अस्पतालों में या स्वास्थ्य देखभाल पेशेवरों की ओर से भेदभाव किए जाने की जानकारी दी है.
केंद्र सरकार ने 21 अक्टूबर को छत्तीसगढ़ के परसा कोयला ब्लॉक में खनन के लिए दूसरे चरण की मंज़ूरी दी. सरकार ने कहा कि यह मंज़ूरी राज्य सरकार की सिफ़ारिशों पर आधारित थी. खनन के ख़िलाफ़ अभियान चला रहे संगठन छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन ने कहा है कि यह स्पष्ट है कि सरकार की प्राथमिकता लोग नहीं, बल्कि कॉरपोरेट मुनाफ़ा है. यह क़दम आदिवासी अधिकारों और पर्यावरण पर हमला है.
हसदेव अरण्य जंगल के लिए आंदोलन चला रहे समूहों में से एक छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन की ओर से कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारें अडानी समूह की मदद करने की कोशिश कर रही हैं, जो परसा ब्लॉक के लिए माइन डेवलेपर और ऑपरेटर हैं.आदिवासियों द्वारा उठाए गए मुद्दों को अभी तक स्वीकार नहीं किया गया है. हमारी मांग है कि इस मंज़ूरी को रद्द किया जाए.
सरगुजा ज़िले के अंबिकापुर में फतेहपुर से बीते तीन अक्टूबर को यह पैदल मार्च शुरू हुआ था. इसमें 30 गांवों के आदिवासी समुदायों के लगभग 350 लोग शामिल हैं, जो अपनी मांगों के साथ रायपुर में राज्यपाल व मुख्यमंत्री से मिलेंगे. ये ग्रामीण हसदेव अरण्य क्षेत्र में चल रही और प्रस्तावित कोयला खनन परियोजनाओं का यह कहते हुए विरोध कर रहे हैं कि इससे राज्य के वन इकोसिस्टम को ख़तरा है.
ब्रिटिश मूल के एंथ्रोपोलॉजिस्ट वेरियर एल्विन ऑक्सफोर्ड से पढ़ाई ख़त्म कर एक ईसाई मिशनरी के रूप में भारत आए थे. 1928 में वे पहली बार महात्मा गांधी को सुनकर उनसे काफी प्रभावित हुए और उनके निकट आ गए. गांधी उन्हें अपना पुत्र मानने लगे थे, लेकिन जैसे-जैसे एल्विन आदिवासियों के क़रीब आने लगे, उनके और गांधी के बीच दूरियां बढ़ गईं.
एक ओर कॉरपोरेट्स सभी आर्थिक क्षेत्रों और राज्यों की सीमाओं में अपना काम फैलाने के लिए स्वतंत्र हैंं, वहीं देश भर के किसानों के कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ साथ आ जाने पर भाजपा उनके आंदोलन में फूट डालने का प्रयास कर रही है.
भाषाविद और नामचीन लेखक नॉम चोम्स्की और पत्रकार विजय प्रसाद को शुक्रवार को ‘टाटा लिटरेचर लाइव फेस्टिवल’ में एक सेशन में चोम्स्की की नई किताब पर चर्चा करनी थी, जिसे ऐन समय पर आयोजकों द्वारा 'अप्रत्याशित परिस्थितियों' का हवाला देते हुए रद्द कर दिया गया था.
पश्चिम बंगाल के दौरे पर पहुंचे केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने गुरुवार को बांकुरा में क्रांतिकारी बिरसा मुंडा की प्रतिमा को फूल चढ़ाए थे. आदिवासी संगठनों ने बताया कि वह प्रतिमा मुंडा की नहीं बल्कि एक अनजान आदिवासी शिकारी की है, जिसके बाद शाह इन संगठनों सहित टीएमसी के निशाने पर आ गए.
साल 2006 में नक्सल विरोधी समूह सलवा जुडूम और नक्सलियों के बीच लड़ाई के दौरान नक्सलियों ने छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा ज़िले के एर्राबोर में हमला कर 32 आदिवासियों की हत्या कर दी थी, मरने वालों में महिलाएं और बच्चे भी शामिल थे.
कोरोना वायरस महामारी के चलते केंद्र सरकार द्वारा बनाई गई नीतियों का विश्लेषण करें, तो स्पष्ट रूप से दिखता है कि आदिवासियों और वन निवासियों के अधिकारों और उनकी ज़रूरतों की अनदेखी की गई है.
मोदी सरकार के इस क़दम से देश का कोयला क्षेत्र निजी कंपनियों के लिए खुल जाएगा. प्रधानमंत्री ने कहा कि नीलामी प्रक्रिया की शुरुआत होना देश के कोयला क्षेत्र को ‘दशकों के लॉकडाउन’ से बाहर निकालने जैसा है. हालांकि इन कोयला खदानों के समीप रहने वाले लोगों ने कहा है कि इससे उनका अस्तित्व ख़तरे में पड़ जाएगा.