1 जुलाई 2024 को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में दावा किया था कि अग्निवीर योजना को 158 संगठनों से चर्चा के बाद लागू किया गया था. लेकिन रक्षा मंत्रालय ने आरटीआई आवेदन के जवाब में एक भी संगठन का नाम नहीं बताया, और कहा कि यह प्रश्न 'अस्पष्ट और काल्पनिक' है.
इस योजना ने इन गांवों और युवाओं का जीवन किस तरह प्रभावित किया है? क्या अब ये फौजियों के गांव नहीं कहलाए जाएंगे? जीवन का एकमात्र सपना बिखर जाने के बाद ये युवक अब क्या कर रहे हैं? क्या सेना को इस योजना की आवश्यकता है? क्या सेना के आधुनिकीकरण के लिए यह एक अनिवार्य कदम है?
इन प्रश्नों की पड़ताल के लिए द वायर ने देश के ऐसे कई इलाकों की यात्रा की. इस सिलसिले में पहली क़िस्त हरियाणा
गोरखपुर के जिस सहसरांव ग्राउंड में पसीना बहाने के बाद 3,800 लड़के और 28 लड़कियों का चयन पिछले ढाई दशकों में सेना व अर्धसैनिक बल में हुआ, वह आज वीरान है. अग्निपथ योजना के कारण युवाओं में सेना का उत्साह ख़त्म हो गया है.
बीते महीने केंद्रीय गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय ने लोकसभा में बताया था कि देश के केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल और असम राइफल्स में कॉन्स्टेबल/राइफलमैन के पद पर भर्ती में पूर्व अग्निवीरों के लिए 10% रिक्तियों को आरक्षित करने का निर्णय लिया गया है. एक प्रावधान ऊपरी आयु सीमा में छूट और शारीरिक दक्षता परीक्षा से छूट का भी किया गया है.
अग्निवीरों की भर्ती प्रक्रिया के तहत सेना में जाने के इच्छुक उम्मीदवारों को पहले फिजिकल फिटनेस टेस्ट से गुज़रना होता था, जिसके बाद मेडिकल टेस्ट होता था. अंतिम चरण में उन्हें कॉमन एंट्रेंस एग्जामिनेशन (सीईई) पास करना होता था. अब बदली हुई प्रक्रिया में सबसे पहले सीईई पास करना होगा, जिसके बाद अन्य दोनों टेस्ट होंगे.