तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लिए जाने का विभिन्न किसान नेताओं और राजनीतिक नेताओं ने स्वागत किया है. भाकियू नेता राकेश टिकैत ने कहा कि संसद में क़ानून को निरस्त होने के बाद ही वे आंदोलन वापस लेंगे. वहीं, कांग्रेस ने भाजपा पर हमला करते हुए पूछा कि क़ानूनों के चलते सैकड़ों लोगों की जान जाने की ज़िम्मेदारी कौन लेगा.
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास योजना की भी आलोचना यह कहते हुए कि एक नए संसद भवन के बजाय एक विश्व स्तरीय कॉलेज बनाना बेहतर होगा. उन्होंने यह भी कहा कि वे किसानों के आंदोलन का समर्थन करने के लिए अपने पद से हटने को तैयार हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तीनों कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चुनौती लंबित है, फिर भी न्यायालय विरोध के अधिकार के विरुद्ध नहीं है लेकिन अंततः कोई समाधान निकालना होगा. इस पर किसान संगठनों की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने कहा कि रोड को किसानों द्वारा नहीं, बल्कि पुलिस द्वारा ब्लॉक किया गया है.
मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने सरकार से अपील की है कि वह प्रदर्शनकारी किसानों की मांगें मान ले. उन्होंने जम्मू कश्मीर में आतंकियों द्वारा मारे गए नागरिकों को लेकर चिंता ज़ाहिर करते हुए यह भी कहा कि जब वे कश्मीर के गवर्नर थे तो आतंकी श्रीनगर के 50 किलोमीटर के दायरे में घुसने की हिम्मत नहीं करते थे.
केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय कुमार मिश्रा का कुछ दिनों पहले किसानों को दी गई चेतावनी का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें उन्हें यह कहते सुना जा सकता है कि ‘सामना करो आकर, हम आपको सुधार देंगे, दो मिनट लगेगा केवल.’ इसी के बाद लखीमपुर खीरी ज़िले में बीते तीन अक्टूबर को प्रदर्शन कर रहे किसानों के समूह पर कथित तौर पर केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के बेटे द्वारा वाहन चढ़ा देने से चार किसानों समेत आठ
वीडियो: उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश से लखीमपुर खीरी हिंसा की जांच कराने को कहा है. साथ ही घटना में जिन किसानों की मौत हुई, उनके परिवारों को 45-45 लाख रुपये की आर्थिक सहायता और परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने की घोषणा की गई है. घायल किसानों को 10 लाख रुपये दिए जाएंगे.
सुप्रीम कोर्ट ने तीन नए कृषि क़ानूनों के विरोध में किसान संगठन की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें जंतर मंतर पर ‘सत्याग्रह’ करने की अनुमति देने की मांग की गई है.
मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने रविवार को भाजपा किसान मोर्चा की एक बैठक के दौरान यह टिप्पणी की. विपक्षी दलों का आरोप है कि वे भाजपा के समर्थकों से केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों को विरोध कर रहे किसानों पर हमले के लिए कह रहे थे. वहीं, एसकेएम ने कहा कि सरकार 'हत्या के इरादे' से काम कर रही है, जबकि किसान आंदोलन ने स्पष्ट रूप से शांति और अहिंसा के मूल्यों को बनाए रखा है.
सुप्रीम कोर्ट यूपी गेट पर दिल्ली-उत्तर प्रदेश सीमा पर बाधित की गई सड़क खोलने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई कर रहा है. कोर्ट ने कहा कि केंद्र व संबंधित राज्य सरकारों को इसका समाधान निकालना चाहिए. उधर, प्रदर्शनकारी किसान बार-बार इस बात पर ज़ोर दे रहे हैं कि नाकाबंदी पुलिस बैरिकेड्स के चलते है. उन्होंने विरोध स्थल को ऐसे व्यवस्थित किया है कि यातायात सुचारू रूप से चल सके.
वीडियो: संयुक्त किसान मोर्चा ने केंद्र के तीन कृषि क़ानूनों के विरोध में बीते 27 सितंबर को ‘भारत बंद’ का आयोजन किया था. द वायर के याक़ूत अली और सिराज अली ने इसी दिन हरियाणा के बहादुरगढ़ रेलवे स्टेशन पर रेलवे ट्रैक पर बैठे किसानों से बात की.
छत्तीसगढ़ के गरियाबंद ज़िले में किसान महापंचायत को संबोधित करते हुए भाकियू नेता राकेश टिकैत ने युवाओं से भूमि, फसल और आने वाली पीढ़ी को बचाने के लिए किसानों के विरोध प्रदर्शन में शामिल होने की अपील की. उन्होंने कहा कि देश को युवाओं द्वारा क्रांति की ज़रूरत है.
वीडियो: केंद्र सरकार के विवादास्पद कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ चल रहे आंदोलन के तहत किसान संगठनों ने बीते 27 सितंबर को देशव्यापी भारत बंद का आयोजन किया था. इसे लेकर स्वतंत्र कृषि-नीति विश्लेषक इंद्र शेखर सिंह से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी ने बातचीत की.
वीडियो: कृषि क़ानूनों के खि़लाफ़ बीते 27 सितंबर को भारत बंद के दौरान राजस्थान-हरियाणा सीमा पर स्थित शाहजहांपुर में मौजूद किसानों से द वायर के इंद्र शेखर सिंह ने आंदोलन की चुनौतियों और बाधाओं पर बातचीत की.
तीन विवादित कृषि क़ानूनों के विरोध में दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने इस प्रदर्शन के 10 महीने पूरे होने और राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद के इन क़ानूनों पर मुहर लगाने के एक साल पूरा होने के मौके पर ‘भारत बंद’ का आयोजन किया था.
दिल्ली की सीमाओं पर कृषि क़ानूनों के ख़िलाफ़ किसानों के आंदोलन की अगुवाई रह रहे संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से कहा गया है कि किसान शांतिपूर्ण तरीके से देश की खाद्य एवं कृषि प्रणाली पर उद्योग घरानों के क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ विरोध दर्ज करा रहे हैं. उनकी मांगें स्पष्ट हैं, जिसकी जानकारी मोदी सरकार को है और जो हठपूर्वक किसानों की जायज़ मांगों को नहीं मानने पर अड़ी है.