कोरोना महामारी को लेकर अस्पतालों की दयनीय हालत और राज्य की स्वास्थ्य अव्यस्थताओं पर गुजरात सरकार को फटकार लगाने वाली हाईकोर्ट की पीठ में अचानक बदलाव किए जाने से एक बार फिर 'मास्टर ऑफ रोस्टर' की भूमिका सवालों के घेरे में है.
बीते 11 मई को एक गुजराती समाचार पोर्टल के संपादक को मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को पद से हटाए जाने की अटकलों पर प्रकाशित एक ख़बर के लिए राजद्रोह के आरोप में मामला दर्ज करते हुए हिरासत में लिया गया था. स्थानीय अदालत ने कहा है कि पुलिस द्वारा दिए गए दस्तावेज पढ़ने पर ऐसा कोई गंभीर अपराध नहीं दिखता.
गुजरात हाईकोर्ट के जस्टिस जेबी पर्दीवाला और इलेश जे. वोरा की पीठ ने बीते दिनों कोरोना महामारी को लेकर राज्य सरकार को सही ढंग और जिम्मेदार होकर कार्य करने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्देश दिए थे.
राज्य सरकार द्वारा प्राइवेट लैब में कोविड टेस्ट करवाने के लिए उसकी अनुमति लेना अनिवार्य कर दिया गया है, ऐसे में अहमदाबाद में कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच अस्पतालों में ढेरों कोविड संभावित मरीज़ भर्ती होने के कई दिन बाद भी टेस्ट के लिए इंतज़ार करने को मजबूर हैं.
पिछले दो सप्ताह से सोशल मीडिया पर प्रसारित की जा रही एक विस्तृत 22 सूत्रीय रिपोर्ट में कहा गया है कि अहमदाबाद के अस्पतालों में आवश्यक दवाओं की भारी कमी है.
गुजरात देश में सबसे ज्यादा कोरोना मौतों वाले राज्यों में से एक है, जिसमें से सिविल अस्पताल में 377 मौतें हुई हैं जो कि राज्य की कुल मौतों का लगभग 45 फीसदी है.
गुजरात सरकार ने अदालत में कहा कि राज्य में लगभग 22.5 प्रवासी कामगार हैं और इसमें सिर्फ 7,512 श्रमिक पंजीकृत हैं, इसलिए बाकी लोगों का किराया नहीं दिया जा सकता है.
सोमवार को अहमदाबाद में घर लौटने की मांग को लेकर लगभग सौ मज़दूर सड़कों पर उतर आए और पथराव व तोड़-फोड़ की. इससे पहले रविवार को राजकोट में कामगारों ने गृह राज्य भेजने की मांग को लेकर हिंसक प्रदर्शन किया था, जिसमें एसपी समेत तीन पुलिसकर्मी और एक पत्रकार घायल हुए हैं.
67 वर्षीय मृतक को अहमदाबाद सिविल अस्पताल के कोविड आइसोलेशन वार्ड में 10 मई को भर्ती कराया गया था. 13 मई को उनके कोरोना वायरस से संक्रमित होने की पुष्टि हुई थी, जिसके बाद परिवार के अन्य सदस्यों को भी आइसोलेशन में भेज दिया गया था.
गुजरात हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को याद दिलाया कि राज्य प्रशासन की ये जिम्मेदारी है कि वे सुनिश्चित करें कि उनके नागरिक भूखे न रहें. गुजरात के सूरत शहर में घर भेजे जाने की मांग को लेकर मजदूर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
पुलिस के अनुसार, फेस ऑफ नेशन के संपादक धवल पटेल ने कथित तौर पर 7 मई को एक समाचार लिखा, जिसका शीर्षक था, 'मनसुख मंडाविया को हाई कमांड ने बुलाया, गुजरात में नेतृत्व परिवर्तन की संभावना'. मंडाविया केंद्रीय मंत्री और गुजरात से राज्यसभा सांसद हैं.
सूरत के हज़ीरा औद्योगिक शहर के समीप मोरा गांव का मामला. गुजरात के सूरत शहर में लॉकडाउन की वजह से फंसे प्रवासी मज़दूर घर भेजे जाने की मांग को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं.
वीडियो: गुजरात में कोरोना वायरस महामारी की वजह से स्थिति काफी गंभीर है. अहमदाबाद में महामारी के प्रसार को रोकने के लिए प्रशासन लॉकडाउन को और सख़्त बनाने पर काम कर रहा है.
अहमदाबाद पुलिस के सहायक आयुक्त ने बताया कि उपजिलाधिकारी कार्यालय से भी प्रवासियों के घर भेजे जाने के ऐसे आवेदन स्वीकार किए जा रहे हैं. बृहस्पतिवार को यहां से श्रमिकों की एक बस रवाना हुई थी, इसलिए अफवाह फैल गई कि जो भी घर जाना चाहता है, उन्हें यहां पहुंचना होगा.
महाराष्ट्र और गुजरात के कुछ जिलों में कोरोना वायरस मरीजों की अधिक मृत्यु दर पर चिंता व्यक्त करते हुए केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री हर्षवर्धन ने दोनों राज्यों से कहा कि वे प्रारंभिक निगरानी, संपर्कों का तेजी से पता लगाने और शुरू में ही रोग निदान जैसे कदमों पर ध्यान केंद्रित करें ताकि इन क्षेत्रों में मौत के मामलों में कमी आ सके.