जहां बॉलीवुड के अधिकतर अभिनेता सच से मुंह मोड़ने और चुप्पी ओढ़ने के लिए जाने जाते हैं, वहीं मुखरता नसीरुद्दीन शाह की पहचान रही है. उनका व्यक्तित्व उन्हें फिल्म इंडस्ट्री की उस भीड़ से अलग करता है, जिसके लिए शक्तिशाली की शरण में जाना, गिड़गिड़ाते हुए माफ़ी मांगना और कभी भी मन की बात न कहना एक रिवाज़-सा बन चुका है.
देश में निचले सामाजिक स्तर तक भय व अविश्वास का ऐसा माहौल बना दिया गया है कि प्रतिरोध की सारी आवाजें घुटकर रह गईं और अब ऊपरी स्तर पर कोई आमिर ख़ान अपना डर या नसीरुद्दीन शाह ग़ुस्सा जताने लगता है, तो उनका मुंह नोंचने की सिरफिरी कोशिशें शुरू कर दी जाती हैं.
अजमेर साहित्य महोत्सव के संयोजक ने बताया कि नसीरुद्दीन शाह को कार्यक्रम का उद्घाटन करना था लेकिन उनके बयान के बाद कुछ स्थानीय लोगों के विरोध के चलते वह नहीं आए.