दिल्ली हाईकोर्ट की एक पीठ ने वैवाहिक बलात्कार को अपराध घोषित करने के मामले में खंडित फ़ैसला दिया, जहां एक जज ने आईपीसी की धारा 375 (बलात्कार) के तहत दिए गए अपवाद के प्रावधान को समाप्त करने का समर्थन किया, जबकि दूसरे न्यायाधीश ने कहा कि यह असंवैधानिक नहीं है. कार्यकर्ताओं ने इस निर्णय पर निराशा ज़ाहिर की है.
दिल्ली हाईकोर्ट बलात्कार क़ानून के तहत पतियों को दी गई छूट को ख़त्म करने के अनुरोध वाली याचिकाएं सुन रहा है. सात फरवरी को इस संबंध में अपना रुख़ स्पष्ट करने के लिए केंद्र को दो हफ्ते का समय दिया गया था. अब और समय मांगे जाने के अनुरोध को अस्वीकार करते हुए कोर्ट ने अपना निर्णय सुरक्षित रख लिया है.
दिल्ली हाईकोर्ट वर्तमान में मैरिटल रेप को अपराध क़रार देने के अनुरोध की याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 375 की संवैधानिकता को यह कहते हुए चुनौती दी है कि यह विवाहित महिलाओं के साथ उनके पतियों द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न के मामले में भेदभाव करती है.
दिल्ली हाईकोर्ट उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें उन्होंने मैरिटल रेप को अपराध क़रार देने का अनुरोध किया गया है. सोमवार की सुनवाई में खंडपीठ का नेतृत्व कर रहे जस्टिस राजीव शकधर ने कहा कि केंद्र को ‘हां या नहीं’ में जवाब देना होगा, क्योंकि ऐसे मामलों में विचार-विमर्श कभी समाप्त नहीं होता है.
दिल्ली हाईकोर्ट कई ग़ैर-सरकारी संगठनों की उस याचिका पर सुनवाई कर रहा है, जिसमें उन्होंने मैरिटल रेप को अपराध क़रार देने का अनुरोध किया है. याचिकाकर्ताओं ने आईपीसी की धारा 375 की संवैधानिकता को यह कहते हुए चुनौती दी है कि यह विवाहित महिलाओं के साथ उनके पतियों द्वारा किए गए यौन उत्पीड़न के मामले में भेदभाव करती है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अनेक नीतियां अंग्रेजों के साम्राज्यवादी शासन से निकली हैं और उनसे असंतोष ज़ाहिर करने वालों को एक ख़तरे के तौर पर देखती हैं, ठीक वैसे ही जैसे अंग्रेज़ देखा करते थे.
ईशा फाउंडेशन के जग्गी वासुदेव के योग आश्रम से अपनी ज़मीन वापस लेने के लिए कोयंबटूर की मुताम्मा लंबे समय से लड़ाई लड़ रही हैं.