राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की सिर्फ भाषा बदली है, विचार नहीं

बीते कुछ दिनों से आरएसएस नेताओं की भाषा बदली दिख रही है लेकिन बदलाव संघ के एजेंडा पर कभी रहा नहीं है. यह तथ्य किसी से छिपा नहीं है कि संघ ने ‘अराजनीतिक होने की राजनीति’ करते हुए अपने स्वयंसेवकों को सत्ता के शीर्ष तक पहुंचाया है और कैसे वे लोकतंत्र व संविधान के गुणों व मूल्यों से खिलवाड़ कर रहे हैं.

उत्तर प्रदेश: बसपा की भाजपा से हिंदुत्व का एजेंडा छीनने की कोशिशें क्या रंग लाएंगी

जब भी धर्मनिरपेक्षता को चुनाव मैदान से बाहर का रास्ता दिखाकर मुकाबले को असली-नकली, सच्चे-झूठे, सॉफ्ट या हार्ड हिंदुत्व के बीच सीमित किया जाता है, उसका कट्टर स्वरूप ही जीतता है. उत्तर प्रदेश में बसपा को इस एजेंडा पर आगे बढ़ने से पहले पिछले उदाहरणों को देखना चाहिए.

बाबा साहेब के सपनों को साकार करने के लिए जातिवादी व्यवस्था के विरुद्ध मुहिम तेज़ करनी होगी

कोई भी राजनीतिक दल जाति व्यवस्था के अंत का बीड़ा नहीं उठाना चाहता है, न ही कोई सामाजिक आंदोलन इस दिशा में अग्रसर है. बल्कि, जाति आधारित संघों का विस्तार तेज़ी से हो रहा है. यह राष्ट्र एवं समाज के लिए एक घातक संकेत है.

आंबेडकर ने संस्कृत को आधिकारिक भाषा बनाने का प्रस्ताव दिया था: प्रधान न्यायाधीश बोबडे

देश के प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा ​है कि आंबेडकर की राय थी कि चूंकि उत्तर भारत में तमिल स्वीकार्य नहीं होगी और इसका विरोध हो सकता है जैसे कि दक्षिण भारत में हिंदी का विरोध होता है. लेकिन उत्तर भारत या दक्षिण भारत में संस्कृत का विरोध होने की कम आशंका थी और यही कारण है कि उन्होंने ऐसा प्रस्ताव दिया किंतु इस पर कामयाबी नहीं मिली

बंधुत्व के बिना स्वतंत्रता और समानता हासिल करना असंभव है

जाति एक ऐसी बाधा है जो एक समाज का निर्माण नहीं होने देती. राष्ट्र बनकर भी नहीं बन पाता क्योंकि हम एक दूसरे के प्रति उत्तरदायी नहीं होते. एकजुटता या बंधुत्व के अभाव में सामाजिक संपदा का निर्माण भी नहीं हो पाता.

यूपी: ‘मैंने जो कहा उसके लिए सरकार मुझे जेल भेज दे, लेकिन स्कूल से दुश्मनी न निकाले’

23 मार्च को गोरखपुर के बांसगांव के भीमराव आंबेडकर पूर्व माध्यमिक विद्यालय के प्रबंधक दीपक कुमार कन्नौजिया ने एक वीडियो में कोरोना के मद्देनज़र स्कूल बंद करने के चलते होने वाली परेशानियों का हवाला देते हुए सरकार के निर्णय पर सवाल उठाए थे. अब इसी वीडियो के चलते उनके स्कूल की मान्यता रद्द की जा रही है.

यूपी: दबंगों के डर से दो महीने से छिपकर रह रहे हैं आंबेडकर के विचारों पर गीत गाने वाले दंपति

ग़ाज़ीपुर ज़िले के विशाल ग़ाज़ीपुरी और उनकी पत्नी सपना दलित व बहुजन विचारकों की शिक्षाओं को गीत के माध्यम से पेश करते हैं. बीते अक्टूबर में इन गीतों से नाराज़ क्षेत्र के कुछ दबंगों ने उनके स्टूडियो में आगज़नी की और जान से मारने की धमकी दी. पुलिस में शिकायत दर्ज होने के बावजूद विशाल परिवार समेत छिपकर रहने को मजबूर हैं.

भारत के अधिकतर नोबेल पुरस्कार विजेता ब्राह्मण हैंः गुजरात विधानसभा स्पीकर

गुजरात विधानसभा के स्पीकर राजेंद्र त्रिवेदी ने कहा कि भारत के संविधान का मसौदा बनाने वाले और उसे डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर को सौंपने वाले बीएन राउ भी ब्राह्मण थे. इस कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और उपमुख्यमंत्री नितिन पटेल भी मौजूद थे.

मोदी ख़ुद को आंबेडकर का ‘शिष्य’ बताते हैं, लेकिन मनु पर दोनों के नज़रिये में फ़र्क़ दिखता है

पुस्तक अंश: मोदीनामा किताब का पांचवां अध्याय ‘मनु का सम्मोहन’ बताता है कि भारत के संविधान के ऐलान को डाॅ. आंबेडकर ने मनु के शासन की समाप्ति कहा था, बावजूद इसके मनु की वापसी हो रही है.

सुप्रीम कोर्ट ने पदोन्नति में एससी-एसटी आरक्षण पर कर्नाटक सरकार का फ़ैसला बरक़रार रखा

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कर्नाटक सरकार के 2018 के उस क़ानून को बरक़रार रखा जिसमें अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति के कर्मचारियों को पदोन्नति एवं वरिष्ठता क्रम में आरक्षण की व्यवस्था की गई है.

आंबेडकर को जितना अस्वीकार वर्तमान राजनीति ने किया है, उतना किसी और ने नहीं किया

जब कोई फल पक जाता है, तब उसे तोड़ने के लिए सभी लपक पड़ते हैं. उसी तरह आज राजनीति में आंबेडकर चहेते हो गए हैं, लेकिन आंबेडकर दिखने में चाहे जितने आकर्षक हों, अपनाने में उतने ही कठिन हैं. वर्तमान राजनीतिक दल इस बात को जानते हैं इसीलिए वे 14 अप्रैल और 6 दिसंबर पर उनका नाम तो लेते हैं लेकिन उनकी वैचारिक तेजस्विता से डरते हैं.

अयोध्या विवाद न दो धर्मों का है और न मंदिर-मस्जिद का

फैज़ाबाद से निकलने वाले हिन्दी दैनिक जनमोर्चा के संपादक और वरिष्ठ पत्रकार शीतला सिंह की किताब ‘अयोध्या- रामजन्मभूमि बाबरी मस्जिद का सच’ बताती है कि अयोध्या विवाद में सारी पेचीदगियां राजनीति द्वारा अपनी स्वार्थ साधना के लिए इस मुद्दे के बेजा इस्तेमाल से पैदा हुई हैं.

अगर मेरी किताबों में कोई तत्व नहीं है, तो इन्हें सालों से क्यों पढ़ाया जा रहा था: कांचा इलैया

दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा एमए के पाठ्यक्रम से दलित लेखक और चिंतक कांचा इलैया शेपहर्ड की किताब हटाने के प्रस्ताव पर उनका कहना है कि विश्वविद्यालय अलग-अलग विचारों को पढ़ाने, उन पर चर्चा करने के लिए होते हैं, वहां सौ तरह के विचारों पर बात होनी चाहिए. विश्वविद्यालय कोई धार्मिक संस्थान नहीं हैं, जहां एक ही तरह के धार्मिक विचार पढ़ाए जाएं.

राजस्थान हाईकोर्ट में लगी मनु की प्रतिमा एक बार फिर विवादों में क्यों है

मनु की प्रतिमा को हाईकोर्ट परिसर से हटाने की याचिकाएं वर्ष 1989 से लंबित हैं, जिन पर 2015 के बाद से सुनवाई नहीं हुई है. सोमवार को औरंगाबाद की दो महिलाओं के प्रतिमा पर कालिख पोतने के बाद मामला फिर गर्मा गया है.