केंद्र द्वारा निरस्त किए गए तीन कृषि क़ानूनों पर विचार करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने एक तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था. बीते साल सौंपी गई उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं की गई थी. अब समिति के एक सदस्य अनिल घानवत ने इसे जारी करते हुए कहा कि 85.7 प्रतिशत किसान संगठन क़ानूनों के समर्थन में थे.
कृषि क़ानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के सदस्यों में से एक अनिल घानवत ने यह भी कहा कि कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य को क़ानूनी गारंटी बनाने और एमएसपी पर सभी कृषि फसलों की खरीद सुनिश्चित करने की किसानों की मांग ‘असंभव है और लागू करने योग्य नहीं है.’
शेतकारी संगठन के अध्यक्ष और विवादित कृषि क़ानूनों पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त समिति के एक सदस्य अनिल जे. घानवत ने कहा कि यह प्रधानमंत्री मोदी द्वारा उठाया गया सबसे प्रतिगामी क़दम है, क्योंकि उन्होंने किसानों की बेहतरी के बजाय राजनीति को चुना. समिति सदस्यों ने यह भी कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट उनके द्वारा मार्च में सौंपी गई रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करता है तो वे कर देंगे.
तीन कृषि क़ानूनों पर विचार कर समाधान सुझाने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति के सदस्य और शेतकारी संगठन के अध्यक्ष अनिल घानवत ने अपने पत्र में कहा है कि उनकी रिपोर्ट में किसानों की सभी चिंताओं का हल निकाला गया है. यदि इन्हें लागू किया जाता है तो वे अपना आंदोलन ख़त्म कर देंगे.
वकील के तौर पर काम करने के दौरान जस्टिस एसए बोबडे शेतकारी संगठन से जुड़े थे, जिसके प्रमुख अनिल घनवट कृषि क़ानूनों का विरोध कर रहे किसानों से बात करने के लिए बनाई गई सुप्रीम कोर्ट की समिति में हैं. घनवट बोबडे के संगठन से अलग होने के बाद उभरे, पर वरिष्ठ किसान नेताओं ने उनके चयन पर सवाल उठाए हैं.
भारतीय किसान यूनियन के अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह मान ने कहा कि समिति में उन्हें लेने के लिए वे सुप्रीम कोर्ट के शुक्रगुज़ार हैं लेकिन किसानों के हितों से समझौता न करने के लिए वे उन्हें मिले किसी भी पद को छोड़ने को तैयार हैं. मान ने यह भी कहा कि वे हमेशा पंजाब और किसानों के साथ हैं.
सुप्रीम कोर्ट द्वारा तीन कृषि क़ानूनों पर केंद्र और किसानों के बीच गतिरोध दूर करने के उद्देश्य से बनाई गई समिति में कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, प्रमोद कुमार जोशी, शेतकारी संगठन के अनिल घानवत और भारतीय किसान यूनियन के भूपेंद्र सिंह मान शामिल हैं. किसानों ने इन्हें सरकार समर्थक बताते हुए विरोध जारी रखने की बात कही है. इस बीच भूपेंद्र सिंह मान ने ख़ुद को समिति से अलग कर लिया है.