इमरोज़ की याद में : यूं ही ख़ामोशी से मर जाया करती हैं सच्ची मोहब्बतें…

स्मृति शेष: चित्रकार इमरोज़ नहीं रहे. जिस ख़ामोशी से वे अमृता प्रीतम की ज़िंदगी में रहे, मोहब्बत इतनी ख़ामोश भी हो सकती है, इसे इमरोज़ को जान लेने के बाद ही जाना जा सकता है.

पिकासो और रोथको के कला संसार में विचरण

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पिकासो की ऊर्जा और कल्पनाशीलता अथक और अपरंपार थी. फिर पिकासो से रोथको तक जाना बिल्कुल भिन्न कलासंसार में जाना है. उनके यहां कला गहन विचार, सतत चिंतन और बहुत ठहराव से उपजती है. वह कुछ गहरा और अप्रत्याशित देखती-दिखाती है पर ख़ुद को कुछ कहने से रोकती है.

कल्पना और कौशल के बिना स्वतंत्रता कहीं भी संभव नहीं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: परम स्वतंत्रता न तो जीवन में संभव है और न ही सृजन में. फिर भी सृजन में ऐसी स्वतंत्रता पा सकना संभव है जो व्यापक जीवन में नहीं मिलती या मिल सकती.

जिस विचार-विरोधी उपक्रम में कई तबके शामिल हैं, उसमें लेखक-कलाकार निश्चिंत नहीं बैठ सकते

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: जो हो रहा है और जिसकी हिंसक आक्रामकता बढ़ती ही जा रही है, उसमें लेखकों को साहित्य को एक तरह का अहिंसक सत्याग्रह बनाना ही होगा और यही नए अर्थ में प्रतिबद्ध होना है.

रज़ा का मरणोत्तर कला-जीवन उनके भौतिक जीवन से कहीं बड़ा और लंबा होने जा रहा है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: रज़ा के देहावसान को सात बरस हो गए. इन सात बरसों में उनकी कला की समझ-पहचान और व्याप्ति उनके मातृदेश के अलावा संसार भर में बहुत बढ़ी है. 

जगदीश स्वामीनाथन की कला आधुनिकता का प्रसन्न क्षण है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: जगदीश स्वामीनाथन जैसे आद्यरूपकों का सहारा लेते हुए अपना अद्वितीय आकाश रचते थे, उसके पीछे सक्रिय दृष्टि को महाकाव्यात्मक ही कहा जा सकता है, लेकिन उसमें गीतिपरक सघनता भी हैं. जैसे कविता में शब्द गुरुत्वाकर्षण शक्ति से मुक्त होते हैं, वैसे ही उनके चित्रों में आकार गुरुत्व से मुक्त होते हैं.

कुमार गंधर्व की जीवन कथा संघर्ष और लालित्य की कथा है…

कुमार गंधर्व पर ध्रुव शुक्ल द्वारा लिखित 'वा घर सबसे न्यारा' संभवतः पहली ऐसी हिंदी किताब है जो उनके जीवन, गायकी, परंपरा और संपूर्ण व्यक्तित्व की बात एक जुदा अंदाज़ में करती है.

कुमार गंधर्व: उनका संगीत बहुत सारी अंतर्ध्वनियों से बुना गया संगीत था…

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: कुमार गंधर्व के यहां सौंदर्य और संघर्ष का द्वैत ध्वस्त हो जाता है: वहां संघर्ष है तो सौंदर्य के लिए ही और संघर्ष का अपना सौंदर्य है. उनका सांगीतिक व्यवहार और उनकी सौंदर्य दृष्टि को कई युग्मों के बीच एक अविराम प्रवाह की तरह देखा जा सकता है.

साहित्य को राजनीति की अधीनता से बहुत कुछ मुक्त रखने की कोशिश लगातार करते रहना चाहिए

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: राजनीति अपने आधिपत्य को फैलाने-बचाने के लिए हर दिन कोई नई तरक़ीब इस्तेमाल करती है, वैसे ही साहित्य को नवाचार में संलग्न होना चाहिए. यह कठिन है पर फिर सच्चा और ईमानदार साहित्य लिखना तो हमेशा ही कठिन रहा है. कठिनाई से निपटना साहित्य-धर्म है, उससे भागना नहीं.

पी. साईनाथ की किताब ‘अमृत महोत्सव’ के तमाशाई माहौल में सार्थक हस्तक्षेप की तरह है

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: पी. साईनाथ की नई किताब 'द लास्ट हीरोज़: फुट सोल्जर्स ऑफ इंडियन फ्रीडम' पढ़कर एहसास होता है कि हम अपने स्वतंत्रता संग्राम में साधारण लोगों की हिस्सेदारी के बारे में कितना कम जानते हैं. यह वृत्तांत हमें भारतीय साधारण की आभा से भी दीप्त करता है.

कलाएं हमें अधिक मानवीय, संवेदनशील और सहिष्णु बनाती हैं

कभी-कभार | अशोक वाजपेयी: हिन्दी अंचल की बढ़ती धर्मांधता, सांप्रदायिकता और हिंसा की मानसिकता आदि का एक कारण इस अंचल की मातृभाषा और कलाओं से ख़ुद को वंचित रहने की वृत्ति है. स्वयं को कला से दूर कर हम असभ्य राजनीति, असभ्य माहौल और असभ्य सार्वजनिक जीवन में रहने को अभिशप्त हैं.

आज भी ‘ज़ह्हाक’ की सल्तनत में सवाल जुर्म हैं…

मोहम्मद हसन के नाटक ‘ज़ह्हाक’ में सत्ता के उस स्वरूप का खुला विरोध है जिसमें सेना, कलाकार, लेखक, पत्रकार, अदालतें और तमाम लोकतांत्रिक संस्थाएं सरकार की हिमायती हो जाया करती हैं. नाटक का सबसे बड़ा सवाल यही है कि मुल्क की मौजूदा सत्ता में ‘ज़ह्हाक’ कौन है? क्या हमें आज भी जवाब मालूम है?

प्रसिद्ध गायक केके का कोलकाता में निधन, पुलिस ने अप्राकृतिक मृत्यु का मामला दर्ज किया

केके के नाम से मशहूर 53 वर्षीय गायक कृष्णकुमार कुन्नथ का मंगलवार रात कोलकाता में निधन हो गया. बताया गया है कि अपने शो में क़रीब एक घंटे तक परफॉर्म करने के बाद जब वे वापस अपने होटल पहुंचे तो अस्वस्थ महसूस कर रहे थे. उन्हें एक निजी अस्पताल ले जाया गया, जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया.

रोल ही निभाना हो तो मैं मर्द का रोल भी निभा सकती हूं: रिचा चड्ढा

वीडियो: ‘ओए लकी लकी ओए’, ‘मसान’, ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’, ‘फुकरे’ ज ‘शकीला’ जैसी फिल्मों में अभिनय की छाप छोड़ने वाली रिचा चड्ढा कुछ समय पहले आई फिल्म ‘मैडम चीफ़ मिनिस्टर’ को लेकर चर्चा में हैं. रिचा चड्ढा से दामिनी यादव की बातचीत.

विभिन्न भाषाओं के 115 लेखकों ने की बिहार चुनाव में नफ़रत फैलाने वालों के ख़िलाफ़ वोट करने की अपील

देशभर के 115 से अधिक लेखकों-पत्रकारों-कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों ने बिहार चुनाव से पहले मतदाताओं से अपील की है कि वे विकास का ढोल पीटने और नफ़रत फैलाने वाली ताक़तों के ख़िलाफ़ जनता और धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की पक्षधर शक्तियों को समर्थन दें.