मृणाल सेन का सिनेमा कलात्मक और बौद्धिक संवेदना का नायाब संयोजन था. वह चाहते थे कि सिनेमा उपेक्षितों के पास और सुदूर देहातों में पहुंचे. उन्हें ‘नए सिनेमा’ से यह उम्मीद थी. उनकी फिल्म देखने के बाद बहुत देर तक उसकी छवियां बेताल की तरह सिर पर नाचती रहती हैं.
सत्यजीत रे ने देश की वास्तविक तस्वीर और कड़वे सच को बिना किसी लाग-लपेट के ज्यों का त्यों अपनी फिल्मों में दर्शाया. 1943 में बंगाल में पड़े अकाल को उन्होंने ‘पाथेर पांचाली’ दिखाया तो वहीं ‘अशनि संकेत’ में अकाल की राजनीति और ‘घरे बाइरे’ में हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद पर चोट की.
साल 1933 में पैदा हुईं सुप्रिया का अभिनय करिअर करीब 50 साल का रहा. पद्मश्री से सम्मानित सुप्रिया को पश्चिम बंगाल सरकार ने उन्हें राज्य के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘बंग विभूषण’ से भी नवाज़ा था.
कोलकाता में हिंदू जागरण मंच के कार्यकर्ताओं ने बांग्ला फिल्म रोंग बेरोंगेर कोरी के ख़िलाफ़ केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के स्थानीय कार्यालय के बाहर प्रदर्शन किया.
खोसला का घोंसला, नो वन किल्ड जेसिका, लव शव ते चिकन खुराना और स्पेशल 26 जैसी फिल्मों में ख़ास भूमिका निभाने वाले अभिनेता राजेश शर्मा से बातचीत.