भारत की आपराधिक न्याय प्रणाली को बदलने के लिए लाए गए तीन विधेयक मूल रूप से पुराने क़ानूनों के प्रावधानों की ही प्रति है पर इन नए क़ानूनों में कुछ विशेष बदलाव है जो इन्हें ब्रिटिश क़ानूनों से भी ज़्यादा ख़तरनाक बनाते हैं.
वीडियो: हिट एंड रन मामलों में एक नए दंड प्रावधान के ख़िलाफ़ ट्रक ड्राइवरों के राष्ट्रव्यापी विरोध के बाद केंद्र सरकार ने बीते 2 जनवरी को ट्रांसपोर्टरों को आश्वासन दिया था कि भारतीय न्याय संहिता (बीएनएस) के तहत ऐसे मामलों में कड़े प्रावधानों को लागू करने का निर्णय अखिल भारतीय मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के परामर्श के बाद ही लिया जाएगा.
हिट एंड रन मामलों में एक नए दंड प्रावधान के ख़िलाफ़ ट्रक ड्राइवरों के राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. केंद्र ने उन्हें आश्वासन दिया कि भारतीय न्याय संहिता के तहत ऐसे मामलों में कड़े प्रावधानों को लागू करने का निर्णय अखिल भारतीय मोटर ट्रांसपोर्ट कांग्रेस (एआईएमटीसी) के परामर्श के बाद ही लिया जाएगा.
केंद्र सरकार द्वारा लाई गई नई भारतीय न्याय संहिता में हिट एंड रन के मामलों को लेकर 10 साल की सज़ा और 7 लाख रुपये जुर्माने का प्रावधान किया गया है, जिसके ख़िलाफ़ देशभर के ट्रांसपोर्टर और ड्राइवर हड़ताल पर चले गए हैं. इसके चलते विभिन्न राज्यों में आवश्यक वस्तुओं की आपूर्ति प्रभावित हुई है.
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1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम की जगह लेने वाले भारतीय साक्ष्य (बीएस) विधेयक में कहा गया है कि मंत्रियों और भारत के राष्ट्रपति के बीच किसी भी विशेषाधिकार संचार को किसी भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करने की आवश्यकता नहीं होगी. हालांकि यह संविधान के अनुच्छेद 74 (2) में भी कहा गया है, लेकिन केंद्र इसे साक्ष्य पुस्तिका का हिस्सा बनाकर क़ानूनी समर्थन देना चाहता है.