सुप्रीम कोर्ट की निगरानी समिति ने मध्य प्रदेश हाईकोर्ट को सौंपी रिपोर्ट में गैस पीड़ितों के इलाज में बरती गई कई ख़ामियां दर्ज की हैं. इसने बताया है कि भोपाल गैस त्रासदी राहत और पुनर्वास विभाग द्वारा संचालित अस्पतालों में 1,247 स्वीकृत पदों में से 498 रिक्त हैं. सुपर स्पेशलिस्ट और विशेषज्ञों के ज़्यादातर पद ख़ाली हैं.
बीते 30 दिसंबर को 10 महिलाओं ने अनिश्चितकालीन निर्जला अनशन शुरू किया था. भोपाल शहर के बाहरी इलाके में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड के कीटनाशक संयंत्र से 1984 में दो-तीन दिसंबर की दरम्यानी रात गैस का रिसाव होने से 15,000 से अधिक लोगों की मौत हो गई थी और पांच लाख से अधिक लोग प्रभावित भी हुए.
अनिश्चितकालीन निर्जला अनशन का नेतृत्व कर रहे गैस पीड़ितों के पांच संगठनों की ओर से कहा गया कि सरकार सुप्रीम कोर्ट को बता रही है कि गैस रिसाव में केवल 5,295 लोग मारे गए, जबकि इससे होने वाली बीमारियों से हज़ारों लोग मर रहे हैं और मरने वालों की संख्या 25,000 के क़रीब हो सकती है. उन्होंने सत्तारूढ़ पार्टी पर आरोपी डाव केमिकल से चंदा लेने का भी आरोप लगाया.
जब्बार भाई का जाना भोपाल गैस पीड़ितों के संघर्ष को एक ऐसी क्षति है, जिससे उबरना बहुत मुश्किल होगा.
भोपाल गैस त्रासदी के पीड़ितों को न्याय दिलाने के लिए लड़ने वाले अब्दुल जब्बार बीते 35 सालों से गैस पीड़ितों के लिए काम करते रहे थे. इस हादसे में उन्होंने अपने माता पिता को खो दिया था और उनके स्वास्थ्य पर भी गैस का बुरा असर हुआ था.
ग्राउंड रिपोर्ट: भोपाल में यूनियन कार्बाइड का कचरा भूजल के रास्ते शहर की ज़मीन में ज़हर घोल रहा है. लाखों लोगों की ज़िंदगी दांव पर लगी है लेकिन प्रदेश की राजनीति में मुख्य मुक़ाबले में रहने वाले दोनों दल- भाजपा और कांग्रेस ने गैस पीड़ितों को लेकर चुप्पी साध रखी है.
पीड़ित संगठनों का कहना है कि हमारी कोशिश होगी कि हम मुआवज़े के मुद्दे पर छह लाख गैस पीड़ितों से पिछले तमाम सालों में किए गए झूठे वादों की हक़ीक़त मतदाताओं तक पहुंचाएं.
यूनियन कार्बाइड को औपचारिक रूप से तो ख़त्म मान लिया गया, लेकिन जो ज़हर इस कारखाने ने भोपाल की ज़मीन में बोया, वो अब इस शहर की अगली नस्ल को अपनी चपेट में ले रहा है.
भोपाल के तमाम गैस राहत अस्पतालों में विशेषज्ञ डॉक्टरों और मेडिकल स्टाफ की कमी सालों से बनी हुई है.
त्रासदी के तीन दशक से ज़्यादा बीत जाने के बाद भी यूनियन कार्बाइड में दफ़न ज़हरीले कचरे के निष्पादन के लिए न तो केंद्र सरकार और न ही मध्य प्रदेश सरकार ने कोई नीति बनाई है.