मधुमिता शुक्ला हत्याकांड में अमरमणि ​त्रिपाठी की समय-पूर्व रिहाई से क्या भाजपा को फायदा होगा?

कहा जा रहा है कि अमरमणि त्रिपाठी को भाजपा विशेषकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ‘अपने ब्राह्मण चेहरे’ के बतौर आगे करेंगे. हालांकि भाजपा का उन्हें राजनीति में आगे बढ़ाना आसान नहीं होगा, क्योंकि विपक्ष इस मुद्दे पर उसे खूब घेरेगा. बृजभूषण शरण सिंह पर महिला पहलवानों के यौन शोषण के आरोप के बाद अब कवयित्री मधु​मिता शुक्ला की हत्या के सज़ायाफ़्ता रहे अमरमणि को आगे लाने का दांव उल्टा भी पड़ सकता है.

मधुमिता हत्याकांड: आजीवन कारावास की सज़ा काट रहे अमरमणि और उनकी पत्नी को सरकार ने रिहा किया

कवयित्री मधुमिता शुक्ला की 9 मई 2003 को लखनऊ में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. उस समय वह गर्भवती थीं. देहरादून की एक अदालत ने अक्टूबर 2007 में हत्या के लिए उत्तर प्रदेश सरकार में मंत्री रहे अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि को आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई थी. सज़ा को उत्तराखंड हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने बरक़रार रखा था.

बच्चों की जान के लिए दोबारा आवाज़ उठानी पड़ी तो उठाऊंगा: डॉ. कफ़ील ख़ान

वीडियो: 2017  में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई ऑक्सीजन त्रासदी पर आई डॉ. कफ़ील ख़ान की किताब 'द गोरखपुर हॉस्पिटल ट्रेजडी: ए डॉक्टर्स मेमॉयर ऑफ ए डेडली मेडिकल क्राइसिस' ने इस घटना को फिर चर्चा में ला दिया है. डॉ. कफ़ील से द वायर की सीनियर एडिटर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी की बातचीत.

क्या बीआरडी ऑक्सीजन त्रासदी को लेकर डॉ. कफ़ील ख़ान को जानबूझकर निशाना बनाया गया

डॉ. कफ़ील ख़ान की किताब ‘द गोरखपुर हॉस्पिटल ट्रेजडी: अ डॉक्टर्स मेमॉयर ऑफ अ डेडली मेडिकल क्राइसिस' अगस्त 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से हुई मौतों के सच को दफ़न करने की कोशिश को बेपर्दा करती है और व्यवस्था द्वारा उसकी नाकामी को छुपाने की साज़िश को सामने लाती है.

उत्तर प्रदेश सरकार ने डॉ. कफ़ील ख़ान को बर्ख़ास्त किया, ख़ान ने कहा- अदालत जाएंगे

2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से एक सप्ताह के भीतर 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत मामले में डॉ. कफ़ील ख़ान को निलंबित किया गया था. ख़ान का कहना है कि क्लीन चिट मिलने के बावजूद उन्हें बर्ख़ास्त किया गया है और उन्हें इस सरकार से न्याय मिलने की उम्मीद नहीं है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ दूसरे निलंबन आदेश पर रोक लगाई

डॉ. कफ़ील ख़ान को अगस्त 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में हुई ऑक्सीजन त्रासदी के बाद निलंबित किया गया था. जुलाई 2019 में बहराइच ज़िला अस्पताल में मरीज़ों का जबरन इलाज करने और सरकार की नीतियों की आलोचना करने के आरोप में डॉ. कफ़ील को दूसरी बार निलंबित किया गया था.

सीएए संबंधी भाषण मामले में हाईकोर्ट ने कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ आपराधिक कार्यवाही रद्द की

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने डॉ. कफ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ दर्ज चार्जशीट और संज्ञान आदेश को रद्द करते हुए कहा कि इसके लिए सरकार की अनुमति नहीं ली गई थी. 29 जनवरी 2020 को यूपी-एसटीएफ ने नागरिकता संशोधन क़ानून के ख़िलाफ़ अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में दिसंबर 2019 में कथित तौर पर भड़काऊ भाषण देने के मामले में कफ़ील ख़ान को मुंबई हवाई अड्डे से गिरफ़्तार किया था. वहां वे सीएए विरोधी रैली में हिस्सा लेने गए थे.

योगी सरकार ने हाईकोर्ट में बताया, क़फ़ील ख़ान के ख़िलाफ़ पुन: जांच के आदेश को वापस लिया गया

साल 2017 में गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से एक सप्ताह के भीतर 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत मामले में डॉ. क़फ़ील ख़ान को निलंबित कर दिया गया था और वह लगभग नौ महीने तक जेल में भी रहे थे. ख़ान ने एक याचिका दायर कर बच्चों की मौत के संबंध में 22 अगस्त, 2017 को उनके निलंबन के आदेश को चुनौती दी है.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी सरकार से पूछा- कफ़ील ख़ान का चार वर्षों तक निलंबन क्यों

डॉ. कफ़ील ख़ान 2017 में उस समय सुर्खियों में आए थे, जब गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में एक सप्ताह के भीतर 60 से ज़्यादा बच्चों की मौत कथित तौर पर ऑक्सीजन की कमी से हो गई थी. इस घटना के बाद इंसेफेलाइटिस वार्ड में तैनात डॉ. ख़ान को निलंबित कर दिया गया था. वह लगभग नौ महीने तक जेल में भी रहे थे.

बहुजनों और मुस्लिमों के लिए इंसाफ की राह मुश्किल क्यों है

एनसीआरबी की एक रिपोर्ट के अनुसार जेलों में बंद दलित, आदिवासी और मुस्लिमों की संख्या देश में उनकी आबादी के अनुपात से अधिक है, साथ ही दोषी क़ैदियों से ज़्यादा संख्या इन वर्गों के विचाराधीन बंदियों की है. सरकार का डॉ. कफ़ील और प्रशांत कनौजिया को बार-बार जेल भेजना ऐसे आंकड़ों की तस्दीक करता है.

क्या रिहाई के बाद और बढ़ सकती हैं डॉ. कफ़ील ख़ान की मुश्किलें

बीते साल ऑक्सीजन हादसे की विभागीय जांच में दो आरोपों में मिली क्लीनचिट के बाद डॉ. कफ़ील ख़ान की बहाली की संभावनाएं बनी थीं, लेकिन सरकार ने नए आरोप जोड़ते हुए दोबारा जांच शुरू कर दी. मथुरा जेल में रिहाई के समय हुई हुज्जत यह इशारा है कि इस बार भी हुकूमत का रुख़ उनकी तरफ नर्म होने वाला नहीं है.

15 दिन में तय करें कि डॉ. कफ़ील को रिहा कर सकते हैं या नहीं: सुप्रीम कोर्ट

उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में पिछले साल दिसंबर में भड़काऊ भाषण देने के आरोप में 29 जनवरी को डॉ. कफ़ील ख़ान को गिरफ़्तार किया गया था. 10 फरवरी को इलाहाबाद हाईकोर्ट से ज़मानत मिलने के बाद रिहा करने के बजाय उन पर रासुका लगा दिया गया था.

‘बेटी को खोए हुए तीन साल हो गए लेकिन अब भी अगस्त आते ही डर लगने लगता है’

विशेष: साल 2017 में 10 से 11 अगस्त के बीच गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन की कमी से क़रीब 34 बच्चों की मौत हुई थी. जान गंवाने वाले बच्चों में शहर के जाहिद की पांच साल की बेटी ख़ुशी भी थी.

क्या ऑक्सीजन कांड में चुप न रहने की सज़ा काट रहे हैं डॉ. कफील ख़ान

गोरखपुर के बीआरडी अस्पताल में हुए ऑक्सीजन कांड के तीन बरस पूरे हो गए. लेकिन इस दौरान हादसे में 'विलेन' बना दिए गए डॉ. कफील ख़ान के अलावा नौ आरोपियों में से कोई इस प्रकरण पर बोलने के लिए सामने नहीं आया. शायद यही वजह है कि इन तीन बरसों में डॉ. कफील ने अधिकतर समय जेल में बिताया है.

‘हैदराबाद से गोरखपुर के लिए 73 हजार रुपये में एम्बुलेंस ली थी, पर भाई पहुंचने से पहले ही चल बसे’

गोरखपुर ज़िले के भटहट क्षेत्र के एक गांव के रहने वाले राजेंद्र और धर्मेंद्र निषाद हैदराबाद में काम करते थे, जहां लॉकडाउन के दौरान राजेंद्र की तबियत बिगड़ी और डॉक्टरों ने जवाब दे दिया. गांव की ज़मीन गिरवी रख और क़र्ज़ लेकर किसी तरह उन्हें घर लाया जा रहा था, जब उन्होंने गांव के रास्ते में दम तोड़ दिया.

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