हसरत मोहानी: दरवेशी ओ इंक़िलाब है मसलक मेरा

पुण्यतिथि विशेष: ‘मुकम्मल आज़ादी’ और ‘इंक़लाब जिंदाबाद’ का नारा बुलंद करने वाले हसरत मोहानी के बारे में डाॅ. आंबेडकर कहते थे कि वही एकमात्र ऐसे नेता हैं जो समानता का ढोंग करने के बजाय अपने हर आचरण में उसे बरतते हैं.

अवध के पूर्वी द्वार की ‘कभी ज़मीं, कभी आसमां नहीं मिलता’ वाली नियति कब बदलेगी?

अवध की बलरामपुर रियासत गंगा-जमुनी तहज़ीब का पूर्वी द्वार कही जाती थी. 1997 में कुछ क्षेत्रों को मिलाकर इसे ज़िला बनाया गया तो रहवासियों ने विकास के सपने देखे. पर अब हाल यह है कि 2021 में नीति आयोग द्वारा जारी राष्ट्रीय बहुआयामी गरीबी सूचकांक में यह देश का सबसे बुरा प्रदर्शन करने वाला चौथा ज़िला रहा.

भगत सिंह जानते थे कि असमानता व भेदभाव पर आधारित शोषण निठल्ले चिंतन से ख़त्म नहीं होंगे

विशेष: भगत सिंह चाहते थे कि स्वतंत्र भारत प्रगतिशील विचारों पर आधारित ऐसा देश बने, जिसमें सबके लिए समता व सामाजिक न्याय सुलभ हो. ऐसा तभी संभव है, जब उसके निवासी ऐसी वर्गचेतना से संपन्न हो जाएं, जो उन्हें आपस में ही लड़ने से रोके. तभी वे समझ सकेंगे कि उनके असली दुश्मन वे पूंजीपति हैं, जो उनके ख़िलाफ़ तमाम हथकंडे अपनाते रहते हैं.

अयोध्या का इतिहास अवध के नवाबों और उनकी बेगमों के बग़ैर पूरा नहीं होता

अयोध्या का इतिहास अवध के नवाबों के बग़ैर पूरा नहीं होता. यहां तक कि उनकी बेगमों के बग़ैर भी नहीं. जिस अनूठी तहजीब के कंधों पर इन नवाबों की पालकियां ढोई जाती थीं, उसमें उनकी बेगमें कहीं ज़्यादा आन-बान व शान से मौजूद हैं.

आज़ादी के ‘अमृतकाल’ में ग़ुलामी के दौर के संकटों से पार पाने के आंदोलन याद करना ज़रूरी है

‘अमृतकाल’ में यह याद रखना कहीं ज़्यादा ज़रूरी हो जाता है कि ग़ुलाम भारत ने कैसे-कैसे त्रास झेले और कितना खून या पसीना बहाकर उनसे निजात पाई. इनमें किसानों व मज़दूरों का सबसे बड़ा त्रास बनकर उभरी ‘हरी-बेगारी’ का नाम सबसे ऊपर आता है, जिससे मुक्ति का रास्ता असहयोग आंदोलन से निकला था.

पाकिस्तान में ‘ईशनिंदा’ को लेकर लिंचिंग, क्या है ईशनिंदा क़ानून का इतिहास

वीडियो: पाकिस्तान में ईशनिंदा के आरोपी एक व्यक्ति को बीते दिनों भीड़ ने पीट-पीटकर मार दिया. वहां ईशनिंदा क़ानून विधायिका ने नहीं बनाया है. ब्रिटिश शासन से विरासत में मिले इस क़ानून में जनरल जिया उल हक़ सरकार ने संशोधन किए थे. क्या है यह क़ानून और इसका इतिहास, बता रहे हैं ज़ीशान कास्कर.

पेरियार ललई सिंह को जानना क्यों ज़रूरी है

पुस्तक समीक्षा: पांच भागों में बंटी धर्मवीर यादव गगन की ‘पेरियार ललई सिंह ग्रंथावली’ इस स्वतंत्रता सेनानी के जीवन और काम के बारे में बताते हुए दिखाती है कि आज़ादी के संघर्ष में तमाम आंदोलनकारी कैसे एक-दूसरे से न केवल जुड़े हुए थे बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर बहुजन एका की कार्रवाइयों को अंजाम दे रहे थे.

सावरकर पर हमारी चर्चाओं को अतीत में अटके न रहकर वर्तमान में आगे बढ़ना होगा

'माफ़ीवीर' कहकर सावरकर की खिल्ली उड़ाने की जगह सावरकरवाद के आशय पर बात करना हमारे लिए आवश्यक है. अगर वह कामयाब हुआ तो हम सब चुनाव के ज़रिये राजा चुनते रहेंगे और आज्ञाकारी प्रजा की तरह उसका हर आदेश मानना होगा.

जी-20 लोगो पर आपत्तियों को ख़ारिज कर राजनाथ बोले, कमल भारत की सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक है

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बीते 8 नवंबर को ‘जी-20’ समूह के लोगो का अनावरण किया था. इस पर कमल की तस्वीर होने पर विपक्षी कांग्रेस ने भाजपा पर अपने चुनाव चिह्न को बढ़ावा देने का आरोप लगाया था. भारत एक दिसंबर को ‘जी-20’ के मौजूदा अध्यक्ष इंडोनेशिया से इस समूह की अध्यक्षता ग्रहण करेगा.

अल्लामा इक़बाल: आप ही गोया मुसाफ़िर आप ही मंज़िल हूं मैं…

जन्मदिन विशेष: अपनी शायरी में इक़बाल की सबसे बड़ी ताकत यह है कि वे बेलौस होकर पढ़ने या सुनने वालों के सामने आते हैं. बिना परदेदारी के और अपनी सीमाओं को स्वीकार करते हुए...

बिखराव के बीज बोते हुए सद्भाव का खेल खेलते रहने में संघ को महारत हासिल है

संघ की स्वतंत्रतापूर्व भूमिकाओं की याद दिलाते रहना पर्याप्त नहीं है- उसके उन कृत्यों की पोल खोलना भी ज़रूरी है, जो उसने तथाकथित प्राचीन हिंदू गौरव के नाम पर आज़ादी के साझा संघर्ष से अर्जित और संविधान द्वारा अंगीकृत समता, बहुलता व बंधुत्व के मूल्यों को अपने कुटिल मंसूबे से बदलने के लिए बीते 75 वर्षों में किए हैं.

75 साल पहले गांधी ने जिसे अनहोनी कहा था, वह आज घटित हो रही है

गांधी ने लिखा था कि कभी अगर देश की 'विशुद्ध संस्कृति' को हासिल करने का प्रयास हुआ तो उसके लिए इतिहास फिर से लिखना होगा. आज ऐसा हो रहा है. यह साबित करने के लिए कि यह देश सिर्फ़ हिंदुओं का है, हम अपना इतिहास मिटाकर नया ही इतिहास लिखने की कोशिश कर रहे हैं.

भगत सिंह: वो चिंगारी जो ज्वाला बनकर देश के कोने-कोने में फैल गई थी…

अगस्त 1929 में जवाहरलाल नेहरू ने लाहौर में हुई एक जनसभा में उस समय जेल में भूख हड़ताल कर रहे भगत सिंह और उनके साथियों के साहस का ज़िक्र करते हुए कहा कि ‘इन युवाओं की क़ुर्बानियों ने हिंदुस्तान के राजनीतिक जीवन में एक नई चेतना पैदा की है... इन बहादुर युवाओं के संघर्ष की अहमियत को समझना होगा.’

आज़ादी या बंटवारा: ये वो सहर तो नहीं, जिसकी आरज़ू लेकर चले थे…

आज़ादी ने हमें लोकतंत्र दिया, जबकि नस्लीय राष्ट्रवाद का परिणाम बंटवारा था, जिसने अपने पीछे खून से लथपथ सांप्रदायिक हिंसा के निशान छोड़े. बेशक राष्ट्रवाद अच्छा है- लेकिन इसने नस्लीय अल्पसंख्यकों, कमज़ोरों और जिन्हें यह अपने यहां का नहीं मानता है, के लिए ख़तरे खड़े किए हैं.

गांधी मेमोरियल की पत्रिका ने निकाला विनायक दामोदर सावरकर पर विशेषांक

गांधी स्मृति और दर्शन समिति की हिंदी में प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका 'अंतिम जन' के हिंदुत्व नेता वीडी सावरकर पर निकाले गए विशेषांक की गांधीवादियों ने आलोचना की है. महात्मा गांधी के परपौत्र तुषार गांधी का कहना है कि यह गांधीवादी विचारधारा को भ्रष्ट करने की सुनियोजित रणनीति है.