केंद्र सरकार ने शिक्षा का अधिकार क़ानून का हवाला देते हुए एक नोटिस जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि वह इस क़ानून के तहत पहली से आठवीं कक्षा तक के छात्रों को अनिवार्य शिक्षा प्रदान कर रही है, इसलिए स्कॉलरशिप दिए जाने की ज़रूरत नहीं है.
अखिलेश यादव का कहना सही है कि अब भाजपा हर हाल में जीतने के लिए चुनावों में लोकतंत्र को ही हराने पर उतर आती है. लेकिन इसी के साथ बेहतर होगा कि वे समझें कि उनकी व पार्टी की अपील का विस्तार किए बिना वे उसे यह सब करने से कतई नहीं रोक सकते.
बहुजन समाज पार्टी अध्यक्ष और यूपी की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने केंद्र द्वारा पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया और इससे जुड़े संगठनों पर लगाए प्रतिबंध को राजनीतिक स्वार्थ से प्रेरित बताते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग का समर्थन किया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 18 पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जातियों की श्रेणी में शामिल करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा 2016 और 2019 में जारी अधिसूचनाओं को चुनौती देने वाली याचिका को स्वीकार करते हुए उन्हें रद्द कर दिया. याचिका डॉ. बीआर आंबेडकर ग्रंथालय एवं जन कल्याण, गोरखपुर और अन्य ने दायर की थी.
उपराष्ट्रपति पद के लिए विपक्ष की संयुक्त उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को आम आदमी पार्टी और झारखंड मुक्ति मोर्चा के समर्थन देने से विपक्षी खेमे को बल मिला, लेकिन निर्वाचक मंडल के आंकड़ों के अनुसार, संख्या बल अब भी एनडीए उम्मीदवार जगदीप धनखड़ के पक्ष में है. उपराष्ट्रपति चुनाव 6 अगस्त को होना है.
बसपा सांसद अतुल राय की ज़मानत अर्ज़ी ख़ारिज करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने कहा कि यह संसद की सामूहिक ज़िम्मेदारी है कि अपराधिक छवि वाले लोगों को राजनीति में आने से रोके और लोकतंत्र बचाए. चूंकि संसद और निर्वाचन आयोग ज़रूरी क़दम नहीं उठा रहे हैं, इसलिए देश का लोकतंत्र अपराधियों, ठगों और क़ानून तोड़ने वालों के हाथों में जा रहा है.
बसपा प्रमुख मायावती ने कहा कि यह फैसला न तो भाजपा या राजग के समर्थन में है और न ही कांग्रेस समर्थित संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के ख़िलाफ़ है. राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार के चयन के समय बसपा को परामर्श से दूर रखने के लिए मायावती ने विपक्षी दलों की आलोचना भी की. उनके अलावा वाईएसआर कांग्रेस ने राष्ट्रपति पद के लिए राजग उम्मीदवार द्रौपदी मुर्मू के समर्थन की घोषणा की है.
विपक्ष की राजनीति का केंद्र मानी जाने वाली आज़मगढ़ लोकसभा सीट पर 23 जून को उपचुनाव होना है. आज तक यहां से कभी जीत हासिल न करने वाली भाजपा ने इस बार अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है, वहीं सपा और बसपा भी अपनी जीत के दावे के साथ जातीय समीकरण साधने में लगे हैं.
चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने कहा है कि भाजपा ने आठ राष्ट्रीय दलों के बीच सबसे अधिक आय वित्त वर्ष 2020-21 के दौरान 752.33 करोड़ रुपये दिखाई है. यह इन दलों की कुल आय का 54.76 प्रतिशत है. इसके बाद 285.76 करोड़ रुपये की आय के साथ कांग्रेस दूसरे और 171.04 करोड़ रुपये की आय के साथ माकपा तीसरे नंबर पर रही.
अखिलेश यादव के भाजपा द्वारा मायावती को राष्ट्रपति बनाए जाने संबंधी बयान पर बसपा सुप्रीमो ने कहा कि समाजवादी पार्टी वाले उन्हें देश का राष्ट्रपति बनाने का सपना इसलिए देखते रहते हैं ताकि उनके लिए उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने का रास्ता साफ़ हो जाए जो कभी संभव नहीं हो सकता.
बताया गया है कि बलिया के जिलाधिकारी और पुलिस अधीक्षक को बुधवार सुबह इसी दिन दूसरी पाली में होने वाले अंग्रेज़ी के पेपर के लीक होने की सूचना मिली थी, जिसके बाद 24 ज़िलों में परीक्षा रद्द कर दी गई. मामले की जांच शुरू हो गई है और बलिया के ज़िला विद्यालय निरीक्षक को निलंबित कर दिया गया है.
भाजपा ने हिस्ट्रीशीटर और बसपा के पूर्व एमएलसी विनीत सिंह उर्फ़ श्याम नारायण सिंह और बाहुबली धनंजय सिंह के क़रीबी बृजेश सिंह प्रिंशु को विधान परिषद चुनाव में उतारा है. कांग्रेस और बसपा ने इस चुनाव में शामिल नहीं होने का फैसला किया है. उत्तर प्रदेश विधान परिषद का चुनाव नौ अप्रैल को होगा, जबकि मतगणना 12 अप्रैल को होगी.
भाजपा को यूपी में बहुमत तो ज़रूर मिला है लेकिन इसकी सहयोगी पार्टियों के वोट प्रतिशत जोड़ लेने पर भी यह केवल 45 प्रतिशत के करीब ही वोट पा सकी है. यह ध्यान में रखते हुए कि किस तरह से चुनाव में सांप्रदायिकता पर ज़ोर दिया गया, ऐसा कहना ग़लत नहीं होगा कि बचे हुए 55 प्रतिशत वोट भाजपा विरोधी थे.
पश्चिमी उत्तर प्रदेश, जहां किसान आंदोलन का असर दिखा था, वहां के 19 विधानसभा क्षेत्रों में से भाजपा सिर्फ़ छह सीटें हासिल कर पाई है. अगर इस चुनावी नतीजे से किसी एक निष्कर्ष पर पहुंचा जाए तो वह यह है कि जनता के मुद्दों पर चला सच्चा जन आंदोलन ही ध्रुवीकरण के रुझानों को पलट सकता है और आगे चलकर यही भाजपा को पराजित कर सकता है.
क्या किसी सत्ता दल को मतदाताओं की नाराज़गी के आईने में अपनी शक्ल तभी देखनी चाहिए, जब वह उसे सत्तापक्ष से विपक्ष में ला पटके?