सरकार हमें बार-बार कह रही है कि देशवासियों ने अपने अधिकारों की दुहाई दे-देकर पिछले 75 साल बर्बाद कर दिए हैं. वक़्त आ गया है कि वे अब राज्य के प्रति अपने कर्तव्य को याद करें. कर्तव्य में बहुत आकर्षण है. गीता की याद दिलाई जा सकती है. कर्तव्य का नाम लेकर लोगों को शर्मिंदा किया जा सकता है.
नाम बदलकर बदलाव का भ्रम रचना दरअसल ऐसा करने वालों द्वारा यह स्वीकार लेना है कि उनके पास अपने काम से कोई बदलाव लाने का न बूता बचा है, न विवेक. अन्यथा अब तक वे इतना तो समझ ही गए होते कि ग़ुलामी के प्रतीकों की उनकी समझ कितनी नासमझी भरी है.
नागरिकों को कर्तव्यपरायण होने के लिए प्रोत्साहित करना तानाशाही शासन का एक प्रमुख अंग है. इसे पहली बार आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी द्वारा लाया गया था. तब से जिन सरकारों ने भी आम लोगों के अधिकारों की अवहेलना की, उन्होंने अक्सर अपने फ़र्ज़ की बजाय नागरिकों के कर्तव्यों के महत्व को ही दोहराया.
तक़रीबन 20,000 करोड़ रुपये की लागत के साथ मौजूदा समय में चार परियोजनाएं- नया संसद भवन, सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का पुनर्विकास, तीन कॉमन केंद्रीय सचिवालय इमारतें और उपराष्ट्रपति का आवास निर्माणाधीन हैं.
अनुमानित रूप से कुल 20,000 करोड़ रुपये की लागत के साथ सेंट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना के तहत मौजूदा समय में सिर्फ़ चार परियोजनाएं नया संसद भवन, सेंट्रल विस्टा एवेन्यू का पुनर्विकास, तीन कॉमन केंद्रीय सचिवालय इमारतें और उपराष्ट्रपति का आवास ही निर्माणाधीन हैं.