जब मुंबई में दंगे भड़के, तब सुनील दत्त ने अपनी ही सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोलते हुए संसद से इस्तीफ़ा दे दिया. उनका मानना था कि कांग्रेस ने हालात को सही से नहीं संभाला है और एक सांसद की हैसियत से वे कुछ नहीं कर पा रहे हैं.
रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी ‘काबुलीवाला’ पर आधारित फिल्म ‘बाइस्कोपवाला’ में अभिनेता डैनी डेनजोंग्पा मुख्य किरदार निभा रहे हैं. फिल्म 25 मई को रिलीज़ हो रही है.
गोलमाल, धमाल, आॅल द बेस्ट, वन टू थ्री, फंस गए रे ओबामा में यादगार किरदार निभाने के बाद आंखों देखी, मसान, कड़वी हवा और अंग्रेज़ी में कहते हैं जैसी फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवाने वाले अभिनेता संजय मिश्रा से प्रशांत वर्मा की बातचीत.
पूरब और पश्चिम के गाने को कर्नाटक के संदर्भ में समझते हुए दिखता है कि प्रणय निवेदन हेतु मनोज कुमार के हाथों में एक फाइल है, जिसमें विधायकों के दस्तख़त की कल्पना सहज ही की जा सकती है.
सत्यजीत रे ने देश की वास्तविक तस्वीर और कड़वे सच को बिना किसी लाग-लपेट के ज्यों का त्यों अपनी फिल्मों में दर्शाया. 1943 में बंगाल में पड़े अकाल को उन्होंने ‘पाथेर पांचाली’ दिखाया तो वहीं ‘अशनि संकेत’ में अकाल की राजनीति और ‘घरे बाइरे’ में हिंदुत्ववादी राष्ट्रवाद पर चोट की.
जयंती विशेष: 1944 में उनकी एक गुमनाम शख़्स की तरह मौत हो गई जबकि तब तक उनका शुरू किया हुआ कारवां काफी आगे निकल चुका था. फिल्मी दुनिया की बदौलत कुछ शख़्सियतों ने अपना बड़ा नाम और पैसा कमा लिया था. घुंडीराज गोविंद फाल्के को हम आम तौर पर दादा साहब फाल्के के नाम से जानते हैं. भारतीय सिनेमा की शुरुआत करने वाले इस शख्स की पहचान सिर्फ आज एक अवॉर्ड के नाम तक महदूद रह गई है. भारत सरकार
साक्षात्कार: ‘ये वो मंज़िल तो नहीं’, ‘धारावी’, ‘इस रात की सुबह नहीं’, ‘हज़ारों ख़्वाहिशें ऐसी’ जैसी फिल्में बनाने वाले राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त निर्देशक सुधीर मिश्रा से प्रशांत वर्मा की बातचीत.
हैदर, रईस, काबिल, घायल वंस अगेन और मोहेंजोदाड़ो जैसी फिल्मों में नरेंद्र झा प्रमुख किरदारों ने नज़र आ चुके थे.
महाराष्ट्र के सिनेमाघरों और मल्टीप्लेक्सों में बाहर का खाना ले जाने की मनाही के नियम को बॉम्बे हाईकोर्ट में चुनौती दी गई है.
हृषिकेश सिनेमा के रास्ते पर आम परिवारों की कहानी की उंगली थामे निकले थे. ये समझाने कि हंसी या आंसुओं को अमीर-गरीब के खांचे में नहीं बांटा जा सकता.
साक्षात्कार: सेंसर बोर्ड अध्यक्ष के रूप में पहलाज निहलानी का ढाई साल का कार्यकाल कई तरह के विवादों में रहा. उनसे बातचीत.
जन्मदिन विशेष: गुरुदत्त फिल्म इंडस्ट्री का एक ऐसा सूरज थे, जो बहुत कम वक़्त के लिए अपनी रौशनी लुटाकर बुझ गया पर सिल्वर स्क्रीन को कुछ यूं छू कर गया कि सब सुनहरा हो गया.
सिनेमा निर्माण के इतने दशकों के बाद भी हिंदुस्तानी सिनेमा में महिला निर्देशकों की संख्या को उंगलियों पर गिना जा सकता है. सिनेमाई दुनिया में भी घोर लैंगिक असमानता है.
युद्ध पर आधारित अपनी आने वाली फिल्म ‘ट्यूबलाइट’ की प्रेस वार्ता के दौरान सलमान ने कहा जंग में कोई अपना बेटा खोता है तो कोई अपना पिता.
मूर इकलौते ऐसे अभिनेता थे, जिन्होंने बॉन्ड सीरीज़ की सात फिल्मों में काम किया था.