पिछले साल बांग्लादेश में दुर्गा पूजा के दौरान हिंदू अल्पसंख्यकों पर हमले के बाद त्रिपुरा में आगज़नी, लूटपाट और हिंसा की घटनाएं हुई थीं, इसके ख़िलाफ़ चार छात्रों ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया था. इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने राज्य में सांप्रदायिक हिंसा पर लोगों को सोशल मीडिया पोस्ट के लिए नोटिस भेजने को लेकर त्रिपुरा पुलिस की खिंचाई की थी.
याचिकाकर्ता वकील एहतेशाम हाशमी के ख़िलाफ़ त्रिपुरा पुलिस ने पिछले साल राज्य में हुई हिंसा पर उनकी रिपोर्टिंग के लिए कठोर गैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) के तहत मामला दर्ज किया है. हाशमी ने एसआईटी द्वारा जांच की मांग की है, जिसमें एक मस्जिद को नष्ट करने सहित मुसलमानों के ख़िलाफ़ हिंसा की घटनाओं को दरकिनार करने में पुलिस और त्रिपुरा सरकार की मिलीभगत का आरोप लगाया गया है.
मामला बीते साल त्रिपुरा में हुई सांप्रदायिक हिंसा के बाद की गई सोशल मीडिया पोस्ट करने वालों से जुड़ा है. कोर्ट के आदेश के बावजूद इन लोगों को नोटिस भेजने को लेकर अदालत ने कहा कि अगर पुलिस ने लोगों को परेशान करना बंद नहीं किया, तो वह राज्य के गृह सचिव और संबंधित पुलिस अधिकारियों को तलब करेंगे.
त्रिपुरा में हुई सांप्रदायिक हिंसा से जुड़ी एक याचिका के जवाब में राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा कि स्वतंत्र जांच की मांग करने वालों की नीयत ठीक नहीं है और वे जनहित की आड़ में कोर्ट का इस्तेमाल कर रहे हैं. इस पर वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने कहा कि अगर सी-ग्रेड न्यूज़ चैनल ऐसे तर्क देते तो समझा जा सकता था, पर किसी राज्य सरकार का ऐसा करना शोभा नहीं देता.
त्रिपुरा में बीते साल हुई सांप्रदायिक हिंसा को लेकर फैक्ट फाइंडिंग रिपोर्ट तैयार करने वाली टीम के सदस्यों में एक वकील एहतेशाम हाशमी की याचिका के जवाब में राज्य सरकार ने कहा कि रिपोर्ट एकतरफा है और इसमें घटनाओं को तोड़-मरोड़कर पेश किया गया है और इसमें कोई सच्चाई नहीं है.