अमेरिकी प्रवासी संगठनों द्वारा 'भारत में सांप्रदायिकता' पर आयोजित एक कार्यक्रम में भेजे गए संक्षिप्त संदेश में प्रख्यात अकादमिक और भाषाविद नोम चॉम्स्की ने कहा कि पश्चिम में बढ़ रहे इस्लामोफोबिया ने भारत में सबसे घातक रूप ले लिया है, जहां मोदी सरकार व्यवस्थित ढंग से धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र को ख़त्म कर रही है.
देश के लिए निराशा की बात है कि उसके पूर्व उपराष्ट्रपति तक को उसके धर्म के आधार पर देखा जाने लगा है और उनके कथनों से सबक लेने और आईने में हक़ीक़त की शक्ल देखने के बजाय उनसे ठकुरसुहाती की उम्मीद की जा रही है!
हिंदुत्ववादी समूहों के समर्थक और सदस्य पिछले कुछ महीने से अधिक समय से प्रत्येक शुक्रवार को हरियाणा के गुड़गांव में सार्वजनिक स्थानों पर होने वाले नमाज़ स्थलों पर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. पूर्व सांसद मोहम्मद अदीब ने पूर्व के फैसले का पालन नहीं करने के लिए हरियाणा के मुख्य सचिव और पुलिस महानिदेशक के ख़िलाफ़ कार्रवाई की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में अवमानना याचिका दायर की है.
नेताजी सुभाष चंद्र बोस के परपोते और जीवनी लेखक सुगत बोस ने करण थापर के साथ बातचीत में कहा कि अगर नेताजी जीवित होते तो धर्म संसद से मुसलमानों के नरसंहार का आह्वान करने की किसी की हिम्मत नहीं होती.
पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने अमेरिकी सांसदों की मौजूदगी वाली एक डिजिटल चर्चा में देश में बढ़ती सांप्रदायिकता पर चिंता जताते हुए कहा कि हाल के वर्षों में ऐसी प्रवृत्तियां बढ़ी हैं, जो नागरिकों को उनके धर्म के आधार पर अलग करना चाहती हैं. साथ ही असहिष्णुता, अशांति व असुरक्षा को बढ़ावा देती हैं.
पिछले सात साल में बार-बार मुसलमानों और ईसाइयों के ख़िलाफ़ हिंसा के इशारे किए गए और उनके लिए सर्वोच्च स्तर से तर्क दिया गया. जब आप जनसंख्या नियंत्रण के नाम पर, अपनी बेटियों की दूसरे धर्म में शादी रोकने के नाम पर, मुसलमान औरतों को उनके मर्दों से बचाने के नाम पर क़ानून बनाते हैं तो उनके ख़िलाफ़ हिंसा के लिए ज़मीन तैयार करते हैं.
हरियाणा के मनोहर लाल खट्टर ने यह भी कहा कि जिला प्रशासन के खुले स्थानों पर नमाज़ के लिए कुछ स्थानों को आरक्षित करने का पूर्व निर्णय वापस ले लिया गया है और राज्य सरकार अब इस मुद्दे का सौहार्दपूर्ण समाधान निकालेगी. गुड़गांव में पिछले कुछ महीनों में कुछ हिंदू संगठनों के सदस्य उन जगहों पर इकट्ठा हो जाते हैं, जहां मुस्लिम खुले स्थान पर नमाज़ अदा करते हैं और ‘भारत माता की जय’ और ‘जय श्री राम’ के नारे
गुड़गांव मुस्लिम काउंसिल ने कहा कि दो दशकों से अधिक समय से खुले स्थानों पर जुमे की नमाज़ अदा की जा रही है, क्योंकि समुदाय के पास पर्याप्त संख्या में मस्जिद नहीं हैं. मई 2018 के बाद शहर में पहली बार नमाज़ बाधित होने की सूचना मिली थी, जिसके बाद से मुसलमानों को प्रताड़ित करने के कई प्रयास हुए हैं.
गुड़गांव में पिछले कुछ महीनों से दक्षिणपंथी समूह खुले में नमाज़ का विरोध कर रहे हैं. गुरुद्वारा कमेटी साथ ही अक्षय यादव नाम के एक दुकान मालिक ने भी नमाज़ के लिए अपना ख़ाली परिसर देने की पेशकश की है.
वीडियो: दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अपूर्वानंद बता रहे हैं कि किस तरह हिंदू त्योहारों का इस्तेमाल सांप्रदायिक नफ़रत फैलाने और अल्पसंख्यकों को अलग-थलग करने के लिए किया जा रहा है.
वीडियो: बीते पांच नवंबर को बजरंग दल और विहिप के कार्यकर्ताओं ने गुड़गांव के सेक्टर 12ए में उस जगह पर गोवर्धन पूजा का आयोजन किया था, जहां हर शुक्रवार जुमे की नमाज होती थी. ये कार्यकर्ता पिछले कुछ समय से यहां नमाज़ का विरोध कर रहे थे. द वायर ने दिनेश भारती से बात की, जो गुड़गांव में नमाज़ बाधित करने के आरोप में कई बार जेल जा चुके हैं. दिनेश भारत माता वाहिनी के सदस्य हैं और विहिप से
गुड़गांव में पिछले कुछ महीनों से दक्षिणपंथी समूह खुले में नमाज़ का विरोध कर रहे हैं. प्रशासन ने बीते तीन नवंबर को 37 निर्धारित स्थलों में से आठ स्थानों पर नमाज़ अदा करने की अनुमति रद्द कर दी है. इस बीच संयुक्त हिंदू संघर्ष समिति ने सेक्टर-12ए में उस स्थान पर गोवर्धन पूजा का आयोजन किया है, जहां पिछले कुछ दिनों से नमाज़ करने का विरोध किया जा रहा है.
तीन साल पहले हिंदुत्ववादी संगठनों द्वारा विरोध के बाद गुड़गांव ज़िला प्रशासन ने शहर में 37 स्थानों को चिह्नित किया था, जहां पर मुस्लिमों को जुमे की नमाज़ पढ़ने की अनुमति दी गई थी. साल 2018 में गुड़गांव में भी खुले में नमाज़ अदा कर रहे मुस्लिमों पर लगातार हमले हुए थे.
हरियाणा के गुड़गांव सेक्टर 47 में 15 अक्टूबर को खुले में नमाज़ अदा करने वाले मुस्लिमों का कुछ लोगों ने विरोध किया था, जिसके बाद पुलिस को इलाके की घेराबंदी करनी पड़ी. यह लगातार चौथा हफ़्ता है, जब क्षेत्र में जुमे की नमाज़ को निशाना बनाया गया. साल 2018 में भी गुड़गांव में खुले में नमाज़ अदा कर रहे मुस्लिमों पर हमले हुए थे.
मोदी सरकार और उनके समर्थक लगातार मीठा-मीठा गप और कड़वा-कड़वा थू की कहावत को चरितार्थ करते नज़र आ रहे हैं. विचार या निष्कर्ष उनके अनुकूल हुए तो उसके सौ खोट भी सिर माथे और प्रतिकूल हुए तो ईमानदार विश्लेषण भी टके सेर.